शनिवार, 12 मार्च 2016

लकीरें !

                                    ये तो विश्वास की बात है कि हमारे जीवन में लकीरों का कितना महत्व है और हमारे हाथ की लकीरें को पढने वाले बहुत मिल जाते हैं।  माथे की लकीरें भी पढ़ना प्रबुद्ध जन जानते हैं और उनका आकलन  कितना सही है? इस बात को वही बता सकता है जो इसका भुक्तभोगी हो। कहते हैं कि हाथ की लकीरे बनती बिगड़ती रहती हैं और बच्चों के हाथ की लकीरें तो १२ वर्ष की उम्र तक बनती हैं। 
                                    आज अपना अनुभव बता रही हूँ कि रेखाओं की भाषा जिसे आती है उसे खूब आती है।  ये बात तब फिर से याद आई जब इस बार मेरी बेटी ने कहा - 'माँ हम लोग चाहते हैं कि आप और पापा एक बार पुर्तगाल आने का प्रोग्राम बना लें और हमें बता दें।  हम उसी के अनुसार टिकट करवा देंगे। '  उसके इस कथन ने मुझे ३४ साल पहले लाकर खड़ा कर दिया।  जब मेरी इस बेटी का जन्म हुआ था और मैं उसे अस्पताल से लेकर घर आई थी तो हमारे एक परिचित की बेटी घर आई थी।  सुना था कि उसको ज्योतिष का बड़ा अच्छा ज्ञान है लेकिन लकीरों का इतना गहन ज्ञान और वह भी उतनी कम उम्र में मुझे विश्वास नहीं था। 
         बेटी लेटी थी तो उसके पैर की लकीरों को उसने बहुत दूर से देखा और बोली - 'भाई साहब आपकी ये बेटी आपको विदेश घुमाएगी। ' 
                   तब हम लोग हँस दिए थे क़ि अभी  वक्त है। पता नहीं तब कौन कहाँ होगा ? बात मेरे दिमाग में घर कर गयी थी लेकिन जीवन के संघर्षों और उतार -चढ़ाव  के बीच ये  ये कथन भी धुंधला गया बल्कि कहें हम भूल ही गए।  हमारी ऐसी स्थिति न थी कि हम अपनी बेटी को बाहर पढने भेज पाते लेकिन लकीरें उसे विदेश ले गयीं और अब गीता की कही लकीरों की गणना भी पूर्ण होने वाली है।