परिवार संस्था आदिकाल से चली आ रही है और उसके अतीत को देखें तो दो और चार पीढ़ियों का एक साथ रहना कोई बड़ी बात नहीं थी। पारिवारिक व्यवसाय या फिर खेती बाड़ी के सहारे पूरा परिवार सहयोगात्मक तरीके से चलता रहता था। उनमें प्रेम भी था और एकता की भावना भी। धीरे धीरे पीढ़ियों की बात कम होने लगी और फिर दो - तीन पीढ़ियों का ही साथ रहना शुरू हो गया। जब परिवार के बच्चों ने घर से निकल कर शहर में आकर शिक्षा लेना शुरू किया तो फिर उनकी सोच में भी परिवर्तन हुआ और वे अपने ढंग से जीने की इच्छा प्रकट करने लगे।
आज छोटे परिवार और सुखी परिवार की परिकल्पना ने संयुक्त परिवार की संकल्पना को तोड़ दिया है। समय के साथ के बढती महत्वाकांक्षाएं, सामाजिक स्तर , शैक्षिक मापदंड और एक सुरक्षित भविष्य की कामना ने परिवार को मात्र तीन या चार तक सीमित कर दिया है।
इस एकाकी परिवार ने समाज को क्या दिया है? परिवार संस्था का अस्तित्व भी अब डगमगाने लगा है। पहले पति-पत्नी के विवाद घर से बाहर कम ही जाते थे, उन्हें बड़े लोग घर में ही सुलझा देते थे और अब विवाद सीधे कोर्ट में जाते हैं और विघटन की ओर बढ़ जाते हैं या फिर किसी एक को मानसिक रोग का शिकार बना देते हैं।
एक दिन एक लड़की अपनी माँ के साथ आई थी और माँ का कहना था कि ये शादी के लिए तैयार नहीं हो रही है। उस लड़की का जो उत्तर उसने मेरे सामने दिया वह था - 'माँ अगर शादी आपकी तरह से जिन्दगी जीने का नाम है तो मैं नहीं चाहती कि मेरे बाद मेरे बच्चे भी मेरी तरह से आप और पापा की लड़ाई के समय रात में कान में अंगुली डाल कर चुपचाप लेटे रहें। इससे बेहतर है की मैं सुकून से अकेले जिन्दगी जी लूं। '
आज लड़कों से अधिक लड़कियाँ अकेले जीवन जीने के लिए तैयार हैं क्योंकि वे अपना जीवन शांतिपूर्वक जीना चाहती हैं। आत्मनिभर होकर भी दूसरों की इच्छा से जीने का नाम अगर जिन्दगी है तो फिर किसी अनाथ बच्चे को सहारा देकर अपने जीवन में दूसरा ले आइये ज्यादा सुखी रहेंगे।
एकाकी परिवार में रहने वाले लोग सामंजस्य करने की भावना से दूर हो जाते हैं क्योंकि परिवार में एक बच्चा अपने माता पिता के लिए सब कुछ होता है और उसकी हर मांग को पूरा करना वे अपना पूर्ण दायित्व समझते हैं । बच्चा भी सब कुछ मेरा है और किसी के साथ शेयर न करने की भावना से ग्रस्त हो जाता है। दूसरों के साथ कैसे रहा जाय? इस बात से वह वाकिफ होते ही नहीं है। जब वह किसी के साथ रहा ही नहीं है तो फिर रहना कैसे सीखेगा?
परिवार संस्था पहले तो संयुक्त से एकाकी बन गयी और अब एकाकी से इसका विघटन होने लगा तो क्या होगा? क्या सृष्टि के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न न लगने लगेगा। ऐसा नहीं है कि घर में माँ बाप की आज की पीढ़ी को जरूरत महसूस नहीं होती है लेकिन वे उनको तभी तक साथ रखने के लिए तैयार होते हैं जब तक की उनके छोटे बच्चों को घर में किसी के देखभाल की जरूरत होती है या फिर नौकरी कर रहे दंपत्ति को घर में एक काम करने वाले की तरह से किसी को रखने की जरूरत होती है। अगर अपनी सोच को विकसित करें और परिष्कृत करें तो माता पिता की उपस्थिति घर में बच्चों में संस्कार और सुरक्षा की भावना पैदा करती है और उनके माता पिता के लिए एक निश्चिन्त वातावरण की बच्चा घर में सुरक्षित होगा किसी आया या नौकर के साथ उसकी आदतों को नहीं सीख रहा होगा।
इसके लिए हमें अपनी सोच को मैं से निकल कर हम पर लाना होगा। ये बात सिर्फ आज की पीढ़ी पर ही निर्भर नहीं करती है इससे पहले वाली पीढ़ी में भी पायी जाती थी।
'मैं कोई नौकरानी नहीं, अगर नौकरी करनी है तो बच्चे के लिए दूसरा इंतजाम करके जाओ।'
'कमाओगी तो अपने लिए बच्चे को हम क्यों रखें? '
तब परिवार टूटे तो उचित लेकिन अगर हम अपनी स्वतंत्रता के लिए परिवार के टुकड़े कर रहे हैं तो हमारे लिए ही घातक है। इसके लिए प्रौढ़ और युबा दोनों को ही अपनी सोच को परिष्कृत करना होगा। घर में रहकर सिर्फ अपने लिए जीना भी परिवार को चला नहीं सकता है और ऐसा परिवार में रहने से अच्छा है कि इंसान अकेले रहे। वैसे आप कुछ भी करें लेकिन घर में रह रहे माँ बाप के सामने से आप छोटी छोटी चीजें अपने कमरे तक सीमित रखें और उन्हें बाहर वाले की तरह से व्यवहार करें तो उनको अपने सीमित साधनों के साथ जीने दीजिये। यही बात माता पिता पर भी लागू होती है ऐसा नहीं है कि हर जगह बच्चे ही गुनाहगार हैं। दो बच्चों में आर्थिक स्थिति के अनुसार भेदभाव करना एक आम समस्या है फिर चाहे कोई कमजोर हो या फिर सम्पन्न ऐसे वातावरण में रहने से वह अकेले नामक रोटी खाकर रहना पसंद करेगा।
कल जब परिवार टूट रहे थे तो ऐसी सुविधाएँ नहीं थीं। आज तो ऐसे सेंटर खुल चुके हैं कि जो आप को आपकी समस्याओं के बारे में सही दिशा निर्देश देने के लिए तैयार हैं और आपको उनमें समाधान भी मिल रहा है। फिर क्यों भटक कर इस संस्था को खंडित कर रहे हैं। इसको बचाने में ही सबका हित है और हमेशा रहेगा। इसके लिए सिर्फ एक पीढ़ी ही प्रयास करे ऐसा नहीं है दोनों को पहल करनी होगी और अपनी सोच को बदलना होगा क्योंकि परिवार से वे हैं और उनसे ही परिवार है।
आँख खोलने वाला आलेख...
जवाब देंहटाएंसंयुक्त परिवार के अपने गुण दोष होते है लेकिन मुझे लगता है की गुण ज्यादा होते है . एकांकी परिवार हमारी आत्म उन्मुखी प्रवृति का फल है .
जवाब देंहटाएंचिंतन करने को बाध्य करता लेख..
जवाब देंहटाएंविचारणीय लेख ...कोई भी बात एकतरफा नहीं होती ...दोनों पीढ़ियों को समझना होगा ...अच्छा लेख
जवाब देंहटाएंवाह जी एक अति सुंदर विचार संयुक्त परिवार के दोष ओर गुणो को दर्शाता, लेकिन संयुक्त परिवार मे दोष कम हे लाभ ज्यादा,गर संयुक्त परिवार हे तो मेरे ख्याल मे नारी को नोकरी की जरुरत ही नही होती, क्योकि हम नोकरी किस लिये करते हे, सुखी जीवन ओर पैसो के लिये( सेवा भाव से कोई नही करता) ओर जब हम कम मैसो मे ही सुखी जीवन जी सकते हे, तो खाम्खा मे दोड धुप किस लिये, बच्चो का बचपन क्यो तबाह करे, क्योकि बच्चे मां ओर दादी से बहुत कुछ सीखते हे, अच्छे संस्कार मां दादी या संयुक्त परिवार से ही मिल सकते हे, किसी संस्था या किराये की दाई या आय़ा से नही, ओर ना हॊ किताबो से.
जवाब देंहटाएंबाकी जब हम संयुक्त परिवार मे रहते हे तो हम सब की डुय्टी बनती हे कि हम सब अपनी अपनी जिम्मेदारी भी इमान दारी से निभाये,
भाटिया जी,
जवाब देंहटाएंसंयुक्त परिवार कभी बुरे नहीं रहे, हाँ कुछ तो बंधन और कुछ ज्यादतियां होती रही हैं. ये इस लिए कह रही हूँ कि मैंने खुद इसको झेला है और फिर भी आज भी संयुक्त परिवार में रह रही हूँ. सिक्के का एक ही पहलू नहीं देखा जाता है, अगर हममें सहनशीलता और सामंजस्य की भावना है तो फिर बड़ों की भावनाओं और उनके प्रति दायित्व को हम बखूबी निभा सकते हैं. नौकरी करें भी तो फिर दोनों पक्षों को एक दूसरे के साथ सहयोग अपेक्षित है. बच्चों को सुरक्षा और संस्कार घर में ही मिलते हैं. मान अगर बाहर निकल भी जाति है तो भी बच्चे सुरक्षित और संस्कारित होते रहते हैं.
yahi sach hai..!
जवाब देंहटाएंsochna parega..
दोनों पीढ़ियों में सामजस्य जरुरी है.परिवार कोई स भी हो.
जवाब देंहटाएंविचारणीय लेख.
दोनों पीढ़ियों में सामंजस्य की भावना हो तभी अच्छी तरह निबाह हो सकता है ..
जवाब देंहटाएंसंयुक्त परिवार की अपनी खूबियाँ रही होंगी , मगर आज अधिकांश संयुक्त परिवार में बुजुर्गों की दुर्दशा होते ही देखने को मिलती है ...कभी कभी तो यही लगता है की इससे अच्छा तो वे एकल परिवार में होते , क्योंकि ऐसी स्थिति में पडोसी फिर भी काफी मदद कर देते हैं ...
जिस तरह दोनों पक्ष खुश रहे , एक दूसरे पर बोझ या दबाव बने बिना , वही अच्छा है ...चाहे संयुक्त परिवार हो या एकल !
आदरणीय रेखा जी नमस्कार बहुत सुन्दर विचार आप के और एक बहुत ही सार्थक लेख आप का पारिवरिक विघटन पर -आज हमारे सामने ये एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रही है -दो पीढ़ियों के विचारों का तालमेल न होना या पति पत्नी की अलग अलग सोच -पुरुष और नारी की कुछ आज की स्थिति में बदली सोच -अपनी संस्कृति का कुछ क्षीण होना आदि कई कारन हैं -आज हर चीज पर कुछ न कुछ उदारवादी दृष्टिकोण रखना होता है -थोडा लचीलापन हो तो बिना किसी बाहरी संस्था की मदद के बिना भी मसला सुलझ सकता है नहीं तो फिर आप ने जो सुझाया बाहरी संस्था का सहारा -कुल मिलकर परिवार का बने रहना बहुत जरुरी है हमें एक स्वस्थ समाज देने के लिए
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक पीढ़ी ही प्रयास करे ऐसा नहीं है दोनों को पहल करनी होगी और अपनी सोच को बदलना होगा क्योंकि परिवार से वे हैं और उनसे ही परिवार है।
धन्यवाद
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
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बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
आपकी चिंता जायज़ है... हमें इस संस्था को बचाना चाहिए...
जवाब देंहटाएंदुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
पारस्परिक समझ के साथ तालमेल बिठाना होगा ...........................
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