शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

अधूरे सपनों की कसक (13) !

                         ये अपनी अपनी सोच है कि सपने  पूरे नहीं होते और अगर पूरे 
हो गए तो फिर सपना नहीं रहता वह तो यथार्थ बन जाता है।उसके स्वरूप 
के बयान से हमारी भावनाएं जुडी रहती हैं। मुझे ख़ुशी इस बात की है कि 
सतीश जी ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर कुछ तो  कर भेजा और हम सब को और   उनके कुछ गहन विचार जानने का मौका मिला 

                            आज अपने विचारों के साथ है -- सतीश सक्सेना जी .



परिचर्चाओं में, मैं भाग न लेने का प्रयत्न करता हूँ , मुझे लगता है, शायद ही कोई सच कहने का साहस कर पाता हो !सत्य कहने वाला या तो वेचारा होगा अथवा बहुत सारी अचंभित आँखों का आकर्षण ....

स्वप्न ....शायद किसी के पूरे नहीं होते और जिन स्वप्नों को पूरा बताया जाता है मेरे विचार से वे स्वप्न नहीं, मात्र इच्छाएं होती हैं, जो कभी अपने किये गए कर्मों अथवा कभी संयोग से पूरे होते पाए जाते हैं !

मानव जीवन में शायद इंसान सबसे अधिक मन से, भरपूर साथ देने वाले, जीवनसाथी का स्वप्न देखता है जो अक्सर सपना ही सिद्ध होता है ! पूरे जीवन, हम दुनिया के आगे, एक मधुर मुस्कान के साथ, उस सपने के साकार होने का, भ्रम दिलाते रहते हैं और मरते दम तक यह नहीं कह पाते कि  हम जीवन में अपने आपको कितना बड़ा धोखा देते रहे ! शायद हम में से किसी की यह हिम्मत नहीं कि हम अपना दुःख , अपने परिवार में भी बाँट सकें कि जिसके साथ बरसों से, मरने जीने की कसमें खायीं हैं उनके साथ जीवन मात्र एक दिखावा है वास्तविक प्यार कहीं दूर तक नहीं नज़र आता ! 

इसी तरह कभी बच्चों के कारण और कभी परिवार के बड़ों के सहारे हम लोग जीवन भर नाटक करते हुए, अपने दिन, पूरे करने में सफल हो जाते हैं ! किसी शायर की एक शेर याद आ गया सुनिए ...

अभी से क्यों छलक आये तुम्हारी आँख में आंसू ?
अभी छेड़ी  कहाँ है ? दास्तानें - ज़िन्दगी  हमने !

सो लोगों से आवाहन करें कि  सच सच बताएं कि जीवन के सपने , कितने पूरे , कितने अधूरे हैं ! सत्य में आकर्षण है मगर कहेंगे कितने ? 
मुझे संशय है :)
अधिकतर महिलायें अपने पतियों की तारीफें करेंगी और पति किसी और विषय पर अधूरा सपना सुनायेंगे ! 

स्वप्न पूरे न भी हों तब भी इंसान हँसते हँसते, दुनिया में अपने कार्य पूरे करे और निराश लोगों को हंसा कर, विदा ले, तब उसे मानव जीवन योग्य माना जाए !

खैर यह सब स्वप्नों की बाते हैं अब आपके अनुरोध के बारे में कुछ सुनाने का प्रयत्न करता हूँ !
गौर करें रेखा जी !    
आज की रात में , 
कुछ नया सा लगा 
थक गया था बहुत 
आंख बोझल सी थी 
स्वेद पोंछे,  किसी हाथ  ने,  प्यार  से  !
फिर भी लगता रहा कुछ,अधूरा अधूरा !

कुछ पता ही नहीं, 
कौन सी गोद थी ,
किसकी थपकी मिली 
और  कहाँ  सो गया !
एक अस्पष्ट चेहरा  दिखा    था,   मुझे    !
पर समझ  न  सका, सब  अधूरा अधूरा !


आज   सोया, 
हजारों बरस बाद मैं ,
जाने कब से सहारा,
मिला ही  नहीं  ,
रंग गीले अभी,  विघ्न  डालो नहीं ,
है अभी चित्र  मेरा, अधूरा अधूरा !

स्वप्न आते नहीं थे,
युगों से  मुझे   !
आज सोया हूँ मुझको 
जगाना नहीं  !
क्या पता ,आज  राधा मिले नींद में 
है अभी स्वप्न मेरा, अधूरा अधूरा  !

इक मुसाफिर थका  है ,
यहाँ   दोस्तों   !
जल मिला ही नहीं 
इस बियाबान में  !
क्या पता कोई भूले से, आकर मेरा  
कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !

8 टिप्‍पणियां:

  1. अभी से क्यों छलक आये तुम्हारी आँख में आंसू ?
    अभी छेड़ी कहाँ है ? दास्तानें - ज़िन्दगी हमने
    ....क्या बात है!
    ....बहुत सुन्दर प्रस्तुति के साथ सार्थक रचना प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी ..

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  2. सतीश जी का मैं प्रशंसक हूं
    आज उनके बारे में और कुछ भी जाना
    बहुत सुंदर

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  3. अधूरे सपनों की कसक सक्सेना साहब की ज़बानी सुनी बांची ,गुनी .........बहुत लगी गुन - गुनी ,बातें सारी अनकही ,साफ़ गोई से कहिन (कहिन ,कहीं ).

    बढ़िया प्रस्तुति .

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  4. अपनी अपनी सोच अपने अपने वि्चार ………सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. इक मुसाफिर थका है ,
    यहाँ दोस्तों !
    जल मिला ही नहीं
    इस बियाबान में !
    क्या पता कोई भूले से, आकर मेरा
    कर दे पूरा सफ़र जो, अधूरा अधूरा !---सतीश जी आपकी इन पंक्तियों ने ही सारी दास्तान कह डाली आपका लेखन बहुत प्रभावित करता है आपके गीत भी दिल तक पहुचते हैं शुभकामनायें रेखा जी को आभार

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  6. जीवन की एक अधूरी कसक हर किसी के भीतर है
    पर कहने का हिम्मत कोई नहीं कर पाता ...शायद आपने भी अपनी बात को कविता के माध्यम से कहने की कोशिश की है....पर अब भी वो अधूरी है ...अपनी बात को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में लिखा दिया भैया आपने...सादर

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  7. वाकई. सच अक्सर मौन में ही रहता है. और हर इंसान के सच का अपना अलग-अलग वर्सन है.

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