शनिवार, 3 नवंबर 2012

अधूरे सपनों की कसक (26) !

                 
सपने तो सपने हैं चाहे छोटे हों या बड़े , हर मन में बसते हैं . उम्र के साथ ये भी बढ़ाते जाते हैं। कभी हमने बच्चों से पूछा होता की क्या चाहते हैं ? तो वे अपने सपनों को आकार  देते हुए कुछ न कुछ जरूर बता देते - जैसे किसी को उड़ने वाला जहाज चाहिए , किसी को बार्बी की गुडिया चाहिए और अपने परिवार की स्थिति के अनुसार ही उनके सपने होते हैं। हम बड़े अपने हिसाब से सपने देखते हैं। अगर सपने नहीं देखेंगे तो फिर कुछ पाने के लिए प्रयास कैसे करेंगे ? बस यही तो एक रास्ता है मंजिल तक जाने का , ये जरूर नहीं की बुने हुए सपने के अनुसार ही मंजिल मिले और फिर वही कसक देने वाले बन जाते हैं। 

                           आज अपने सपनों को लेकर आये हैं  -- यशवंत माथुर 






जीवन के प्रारम्भ से जीवन के अंत तक एक काम जो हम निरंतर करते हैं वो है सपने देखना। कुछ पूरे हो जाते हैं और कुछ अधूरे रह जाते हैं। जो पूरे हो जाते हैं उनके पूरा होने की उपलब्धि और जो अधूरे रह जाते हैं उनके पूरा न होने की कसक रह रह कर जीवन के मोड़ों पर अपना एहसास कराती ही रहती है। सपने देखने की इस स्वाभाविक मानव प्रवृत्ति से मैं भी अछूता नहीं हूँ ;शायद कुछ अटपटा लगे सुनकर लेकिन सच कहूँ तो अक्सर दिन में खुली आँखों में भी सपने देखता हूँ।

जीवन का दूसरा दशक समाप्ति से कुछ ही दिन की दूरी पर है और ज़्यादा बड़े सपने कभी देखे नहीं। लोग इस उम्र मे आई. ए . एस ,पी सी एस बनने के सपने देखते हैं मैंने अभी तक ऐसी की कोई परीक्षा ही नहीं दी। आगरा में बड़ी रिटेल कंपनी मे काउंटर सेल्स की नौकरी से कैरियर शुरू करने के बाद कस्टमर सर्विस पर बैठे साथियों की कार्य शैली ने बहुत आकर्षित किया था । ग्राहकों से मिलना और पब्लिक एड्रेस सिस्टम से स्टोर मे चल रहे ओफर्स का प्रभावशाली बखान ऐसा लगता था जैसे रेडियो पर कोई बोल रहा हो।एक तरह से मैंने लक्ष्य बना लिया था कि एक दिन कस्टमर सर्विस डेस्क पर मैं भी बैठूँगा। आगरा से मेरठ ट्रांसफर हुआ शुरू मे कुछ दिन सेल्स मे रहने के बाद एक दिन आखिरकार किस्मत ने साथ  दिया और अचानक ही 'ओफिशियल पॉलिटिक्स'  के तहत कस्टमर सर्विस की कुर्सी  जो मिली  सो वहाँ से कानपुर आने तक और नौकरी छोडने तक मेरे साथ बनी रही । क्यों और कैसे माइक पर मेरा लाइव परफ़ोर्मेंस ,प्रेजेंटेशन और वॉयस मोड्यूलेशन बॉस लोगों के साथ ही आने वाले कस्टमर्स को भी अच्छा लगने  लगा,मैं कह नहीं सकता।  कानपुर में इसी कस्टमर सर्विस पर बैठे बैठे न जाने किस घड़ी में कुछ कस्टमर्स मुझे एफ एम रेडियो के लिये ट्राई करने को उकसाने लगे। लगभग हर दिन ही कोई न कोई मेरी आवाज़ के बारे में प्रशंसा के शब्द कस्टमर फीडबैक बुक में लिख कर या कह कर जाने लगा और इसके चलते मैं भी आर जे बनने के हसीन सपने मे खोने लगा। प्रशंसा के यह शब्द यहाँ क्लिक कर के फेस बुक पर आप भी देख सकते हैं। कुछ कारणों से कानपुर में ही रिज़ाइन करना पड़ा लेकिन यह सपना साथ रहा और तब तक रहा जब तक अपनी आवाज़ रिकॉर्ड कर के कई जगह भेज नहीं दी। 'बड़े लोगों' ने छोटे की ईमेल का रिप्लाई तक करने की ज़रूरत नहीं समझी और 2-4 मेल के बाद लगा कि शायद लोगों ने फर्जी ही उकसा दिया था।
बहरहाल कुछ सपने,सपने ही रह जाने के लिये होते हैं और आर जे या कहें कि रेडियो अनाउंसर बनने का सपना एक ऐसे मीठे सपने की तरह है जिसे अब मैं खुद भी सपना ही बने रहने देना चाहता हूँ।

15 टिप्‍पणियां:

  1. हम जीवन भर सपने देखते हैं जरुरी नहीं की हर सपना पूरा हो, प्रयास जारी रहे... शुभकामनायें

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  2. अभी सपने देखने और काम करने की ही उम्र है आपकी ..
    उम्र बढते ही पूरे होंगे ..
    शुभकामनाएं ..

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  3. सपने को पलने दें मन के भीतर.....
    सभी जानते हैं कि अमिताभ बच्चन जी को रेडियो अनाउंसर के लिए रिजेक्ट किया गया था...और आज उनकी आवाज़ ही के सब दीवाने हैं....

    कौन जाने कब कहाँ कैसे तुम्हारे सपनों की राह का सिरा तुम्हारे क़दमों तले खुद ही आ जाए...
    सस्नेह
    अनु

    (आपका बहुत आभार रेखा जी )

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के चर्चा मंच पर ।।

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  5. अभी कौन सा समय निकल गया है -अभी तो बहुत कुछ करेंगे आप !

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  6. अभी कौन सी उम्र निकल गयी तुम्हारी………कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती …………हम सबकी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं।

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  7. वंदना की बात से सहमत .... शुभकामनायें

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  8. बस यही कह सकती हूँ कि सपनों के आने का एहसास जितना प्यारा होता है उसके पूरे होने का एहसास बहुत सुकून देता है ..... अभी भी हो सकता है कुछ रूप बदल कर तुम्हारा ये सपना भी पूरा हो और तुम ये सुकून महसूस कर सको ....शुभकामनायें !!!

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  9. प्रिय यशवंत कभी कभी भगवान् फल देने में देर करते हैं पर इसका मतलब यह नहीं की प्रयास करना छोड़ दो अभी भी बहुत वक़्त है तुम्हारे पास कोशिश जारी रखो हम सब का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है

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  10. लेख और उस पर 12 टिप्पणियों के अध्यन से मैं तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि यह सपना अधूरा रहना/टूटना शिक्षाप्रद रहा है। खुद को 'तपस्वी' घोषित करके 'दर्शनिकता' का तमगा बटोरने वाले ठग जो भूख-प्यास छीनने मे कामयाब रहे 'जोंक' की भांति खून चूस कर ज़िंदगी ही छीन डालते जैसा कि अपने IBN7 वाले प्यादे से धमकी दिलाई थी यदि पहले ही इस सपने के टूटने से सबक न मिला होता तो।

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  11. हर चीज़ अपने समय से होती है ...इंसान लाख हाथ पैर मारता रहे ...वह उसकी नहीं सुनती ..पर जब सही समय आता है ...तो खुद -ब-खुद हो जाती है .....इसलिए हिम्मत मत हारना ...न ही इस सपने को मारना ....बस कुछ इंतज़ार की दरकार है ....उसके बाद बहार ही बहार है

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