शुक्रवार, 7 मई 2010

जनगणना और जाति सहित जनगणना !

                             देश में जनगणना का कार्य आरभ्य होने जा रहा है, हमारा गृह मंत्रालय इसके लिए प्रारूप तैयार कर चुका है. कल ये प्रश्न उठा कि इनमें जाति के उल्लेख के लिए कोई कॉलम नहीं है और गृह मंत्री इसके लिए तैयार भी नहीं है. लेकिन जाति के उल्लेख के बारे में सभी विपक्षी दल ही नहीं बल्कि सत्ता दल के  लोग भी एक मत हैं. हमारी व्यवस्था में इसको बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. 


क्योंकि प्रारूप तैयार हो चुका है और प्रिंट होकर तैयार भी हो चुके हैं. 

                              जनगणना कोई रोज होने वाली प्रक्रिया नहीं है और न ही किसी एक व्यक्ति के निर्णय से होने वाला काम है. गहन विचार के बाद ही प्रारूप तैयार होना चाहिए था और जब हमारे देश में जती के आधार पर कुछ क्षेत्रों में सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं तो फिर इसका संज्ञान तो बहुत जरूरी हो जाता है. हमारे देश में कितनी पिछड़ी जातियाँ है और उनकी संख्या कितनी है? इसी तरह से जनजातियों , अनुसूचित जातियों और इससे भी बढ़कर अल्पसंख्यक वर्ग की गणना कि जानकारी भी बहुत जरूरी है. 
                            हमारे संविधान में अल्पसंख्यक वर्ग को विशिष्ट सुविधाएँ और आरक्षण प्रदान किया गया है और इतने वर्षों में ये अल्पसंख्यक कहलाने वाले वर्ग उस सीमा से आगे बढ़ चुके हैं लेकिन आरक्षण के अधिकारी बने हुए हैं क्यों कि उनको संविधान में  घोषित किया गया. इस अल्पसंख्यक वर्ग को भी पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है. वर्षों से चली आ रही परंपरा को अब ख़त्म करना भी आवश्यक हो चुका है. या फिर इस जाति व्यवस्था को ही समाप्त कर दिया जाय और इसका उल्लेख कहीं भी नहीं होना चाहिए . अगर इसको जारी रखना है तो हमें ज्ञात होना चाहिए कि हम कितने हैं ? हमारा पूरे देश में क्या  प्रतिशत है ? और क्या प्रतिनिधित्व है.
                             वैसे इस जनगणना के साथ यदि वाकई जाति के स्थान पर राष्ट्रीयता को महत्व दिया जाय तो देश का कल्याण हो सकता है.  जो गणना हो वह भारतियों की हो,  कोई जाति  नहीं ,कोई वर्ग नहीं. हाँ अगर उत्थान की दृष्टि से देखना है तो हमें ये स्तर और वर्ग आर्थिक विकास की दृष्टि से बनाने चाहिए ताकि जो पिछड़े हैं या आर्थिक तौर से कमजोर हैं , उनको आरक्षण का लाभ मिल सके.  सिर्फ जाति के नाम पर आरक्षण लेने वालों में समृद्ध और समृद्ध होता जा रहा है और जो पिछड़े हैं वे वहीं के वही हैं उन तक लाभ पहुँच ही नहीं पाता है.

10 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी जानकारी दी...वह तो आदर्शरूप है..अगर सिर्फ राष्ट्रीयता को महत्त्व दिया जाए, पर पता नहीं ऐसा कब होगा..

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  2. जाती सहित जनगणना में वैसे तो कोई हर्ज नहीं है ,लेकिन डर है की भ्रष्ट और स्वार्थी लोग कहीं उसका उपयोग अपने फायदे के लिए न करने लगे /

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  3. सही है. लेकिन ये सम्भव ही नहीं. जिस देश में जातिगत राजनैतिक दल हों, वहां राष्ट्रीयता को कौन पूछे!!

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  4. इसी पता नहीं की खोज में तो हम प्रजातन्त्र में जी रहे हैं, संसद गैर जरूरी बिल पास हो जाते हैं और ऐसा नहीं है कि इन मुद्दों को जब आम आदमी महसूस कर रहा है , ये तथाकथित नेता न कर रहे हों, लेकिन पहल कौन करे, कहीं जनाधार न खो दें? सबको अपनी कुर्सी कि पड़ी है, देश जाए भाड़ में और देशवासी तो अगर मतदाता न हों तो उनकी गणना की भी जरूरत नहीं है.

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  5. बहुत अच्छी जानकारी है... लेकिन आजकल तो लोग जातियां भी बदल रहे हैं...
    पहले एक सोढ़ी अंकल हुआ करते थे... अब वो शर्मा अंकल हो गए हैं...

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  6. फिरदौस जी,

    ये जाति नहीं , उपजाति हो जाती है, जैसे ब्राह्मण में मिश्रा, तिवारी , अवस्थी आदि अलग अलग उपजातियां हैं लेकिन उनकी जाति में ब्राह्मण ही लिखा जाता है. जाति नहीं लोग धर्म परिवर्तन कर लेते हैं. फिर नाम के पीछे तो लोग कुछ भी प्रतीकात्मक लिखने लगते हैं.

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  7. वंदना,

    इसी जातिगत राजनीति ने ही तो देश का बेडा गर्क किया है. इसी लिए जाति शब्द ही हट जाना चाहिए , सब सिर्फ भारतीय हों. हम व्यक्तिगत स्तर पर कुछ भी करते रहे लेकिन ये जाति सूचक शब्दों का प्रयोग ख़त्म नहीं होगा तो हम कभी एक हो ही नहीं सकते हैं. हमारी मानसिकता बदल नहीं सकती है और सबसे बड़ा तो देश में राजनीति और विकास देश के नाम पर नहीं, जाति के नाम पर ही होने लगे हैं. जो कुर्सी पर काबिज है, जो मिल गया किसी ने मूर्तियां स्थापित कर दी और किसी ने अपना ही गाँव चमका लिया. प्रतिनिधित्व किसका कर रहे हैं, ये उनको पता नहीं है. आम आदमी मतदान के बाद से रोना शुरू करता है और पांच साल रोता ही रहता है. उसके हाथ में सिर्फ बटन दबाना होता है और बाकी तो जीतने वाले दबाने लगते हैं.
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  8. Jangadna Form me Rashtriyata ka bhi column hai. Aur SC/St/others ka column bhi hai. iske alawa jati ki aur koi detail nahi puchhi ja rahi hai.

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