- लेकिन क्या और दिवसों की तरह से इन मजदूरों का भी कहीं सम्मान किया जाएगा?
- सरकार आज का वेतन इनको मुफ्त में बांटेगी?
- वे संस्थाएं जो मजदूर दिवस का ढिंढोरा पीटती रहती हैं, इनको एक दिन कहीं होटल में सही ढाबे में ही मुफ्त खाना खिलवायेंगी ?
- इनके इलाके में कोई ठेकेदार या पैसे वाला मुफ्त में मिठाई बांटेगा?
- आज इनके मनोरंजन के लिए कोई कार्यक्रम इनकी झुग्गी - झोपड़ियों के आस-पास किये जायेंगे?
बड़ी बड़ी फैक्ट्री और मिलों में तो उनको बोनस भी मिल जाता है लेकिन ये जो वाकई मजदूर है, इनके लिए न कोई भविष्य है और नहीं वर्तमान. जब तक इनके हाथ पैर चल रहे हैं, ये कमाते रहेंगे और फिर इसके बाद इनके बच्चों को भी यही करना होता है.
हाँ इन मजदूरों के संदर्भ ये जरूर जिक्र करना चाहूंगी की आई आई टी में निर्माण कार्य में काम करने वाले मजदूरों के बच्चों के लिए यहाँ के छात्र शिक्षित करने में खुद अपना समय देते हैं और उनके लिए जरूरी सामग्री की व्यवस्था भी करते हैं. अगर वे स्वयं यहाँ तक पहुंचे हैं तो उनमें मानवता के ये गुण शेष हैं. उनका यही प्रयास इस मजदूर दिवस के लिए सबसे सार्थक है. क्योंकि इन मजदूरों से उनका सिर्फ मानवता का रिश्ता है. वे उनके नौकर नहीं है, उनके लिए काम नहीं करते हैं फिर भी ये छात्र चाहते हैं की उनके बच्चे इतना पढ़ लें की पिता की तरह ईंट गारा ढो कर जीवनयापन न करें.
majdoor divas sirf kaagajo me chalta h
जवाब देंहटाएंaaj bhi bebas h ye
इन बेचारे मजदूरों को पता भी नहीं होगा, कि इनके नाम पर कितने कागज़ काले किए जा रहें हैं और एयर कंडीशंड रूम में बैठकर धूप में तपते उन मजदूरों के नाम पर भाषण दिए जा रहें हैं..और दावत उडाई जा रही है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा जान आई. आई. टी. के छात्र इनका इतना ख़याल रखते हैं और इनके अच्छे जीवन के लिए प्रयासरत हैं.
और दिवसों की तरह भाषणबाजी करते हुए ये दिवस भी बीत जायेगा. मजदूर जहां था वहीं रह जायेगा.
जवाब देंहटाएंआई आई टी में काम कर रहें मजदूरों के बच्चों के लिए होता सार्थक प्रयास प्रेरणादायी है. कुछ आशा की किरण बाकी है अभी.
जवाब देंहटाएंसमीर जी,
जवाब देंहटाएंइस मामले में आई आई टी में अभी बहुत मानवता बाकी है , हमारे पूर्व राष्ट्रपति वेंकट रमण कि बेटी श्रीमती रामचंद्रन भी यहाँ पर गरीब बच्चों के लिए स्कूल चलाती थी. जब तक वह कानपुर में रही अपने काम को अच्छी तरह करती रही.
रेखा जी ! बहुत अच्छा लगा पढ़ कर कि कम से कम नई पीडी के पड़े लिखे नौज़बानो में ये जज्बा तो है..
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