बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

ऐसा क्यों?

              भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन पालन शिक्षा दीक्षा में उतना ही खर्च करते हैं जितने की लड़के की शिक्षा में , चाहे वह उनका अपना बेटा हो या फिर उनका दामाद . शादी के बाद बेटी परायी हो जाती हैं - ये हमारी मानसिक अवधारणा है और बहू हमारी हो जाती है. हमारी आर्थिक  सोच भी यही रहती है कि कमाने वाली बहू आएगी तो घर में दोहरी कमाई आएगी और उनका जीवन स्तर अच्छा रहेगा. होना भी ऐसा ही चाहिए और शायद माँ बाप आज कल बेटी को  इसी लिए उनके आत्मनिर्भर होने वाली शिक्षा दिलाने का प्रयास करते हैं. वे अपनी बेटी से कोई आशा भी नहीं करते हैं. लेकिन कभी कभी किसी का कोई व्यंग्य सोचने पर मजबूर कर देता है.
          "तुम्हारे बेटा तो कोई है नहीं तो क्या बेटी के घर कि रोटियां तोडोगी? " 
          "तुमने जीवन में कुछ सोचा ही नहीं, सारा कुछ घर के लिए लुटा दिया , अब बुढ़ापे में कौन से तुमको पेंशन मिलनी है कि गुजारा कर लोगे." 
         "मैं तो सोचता हूँ कि ऐसे लोगों का क्या होगा, जीवन भर भाग भाग कर कमाया और बेटी को पढ़ा तो दिया अब कहाँ से शादी करेगा और  कैसे कटेगा इनका बुढ़ापा. "
            बहुत सारे प्रश्न उठा करते हैं, जब चार लोग बैठ कर सामाजिकता पर बात करते हैं. ऐसे ही मेरी एक पुरानी कहानी कि पात्र मेहनतकश माँ बाप की बेटी थी और माँ बाप का ये व्यंग्य कि कौन सा मेरे बेटा बैठा है जो मुझे कमाई खिलायेगा. 
उसने अपनी शादी के प्रस्ताव लाने वालों से पहला सवाल यह किया कि मेरी शादी के बाद मैं अपनी कमाई से इतना पैसा कि मेरे माँ बाप आराम से रह सकें इनको दूँगी. 
          लड़के वालों के लिए ये एक अजीब सा प्रश्न होता और वे उसके निर्णय से सहमत नहीं होते क्योंकि शादी के बाद उसकी पूरी कमाई के हक़दार वे ही होते हैं न. 
           एक सवाल सभी लोगों से यह पूछती हूँ कि अगर माँ बाप ने अपनी बेटी को इस काबिल बना दिया है कि वह कमा कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके तो फिर शादी के बाद वह अपने माँ बाप का भरण पोषण का अधिकार क्यों नहीं रखती है? ऐसे मामले में ससुराल वालों को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए. जिस शिक्षा के बल पर वह आत्मनिर्भर है वह उसके माता पिता ने ही दिलाई है न. फिर उनके आर्थिक रूप से कमजोर होने पर वह अपनी कमाई का हिस्सा माता पिता को क्यों नहीं दे सकती है? बेटे को आपने पढ़ाया तो उसकी कमाई पर आपका पूरा पूरा हक़ है और उन्होंने बेटी को पढ़ाया तो उसकी कमाई पर भी आपका ही पूरा पूरा हक़ है. आखिर क्यों? हम अपनी इस मानसिकता से कब मुक्त हो सकेंगे कि बेटी विवाह तक ही माता पिता की देखभाल कर सकती है और उसके बाद वह पराई हो जाती है.

9 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्ट अच्छी लगी।
    मुझे लगता है परिवार में विघटन की वजह से आज बेटियां ही अधिकतर मां-बाप का सहारा बन रही हैं।

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  2. आपकी बात से मै भी सहमत हूँ . लेकिन मनोज जी ने जो कहा है वो शनैः शनैः बढ़ रहा है , हो सकता है एक दिन ये समाज में हर परिवार द्वारा मन लिया जाए .

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  3. हालात बदलेंगे जरुर ..कोशिश युवाओं को करनी होगी.

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  4. बहुत सुंदर लेख, वेसे बेटी हो य बेटा जो बुढापे मे मां बाप के सहारा बने वही लायक होता हे, आज कल क्या पहले भी मैने देखा हे बेटे ही अपनी बीबी के बहकावे मे आ कर मां बाप को दुतकार देते हे, अब जब एक लडकी अपने सास ससुर की देख भाल नही कर सकती, वो अपने मां बाप की देख भाल भी नही करेगी, यह मेरा देखा हुआ हे, ओर जो लडकी अपने सास ससुर की देख भाल करती हे, उस के दिल मे भावनाये होती हे, प्यार ओर संस्कार होते हे, वो अपने मां बाप की भी सेवा करे तो लडके को या उस के परिवार को कोई ऎतराज नही हो सकता, लेकिन वक्त से पहले ही शर्ते रखना उचित नही लगता.... मेरे मित्र ससुर उस के घर पर रहते हे, क्योकि उन के लडके की बहु ने उन्हे घर से निकाल दिया, ओर मेरे मित्र या उस के परिवार को कोई अप्पति नही हे, यह सब संस्कारो की बात हे

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  5. मैं बेटियों की माँ हूँ लेकिन कुछ नही कह सकती। पता नही लोगों की सोच कब बदलेगी। बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है।ाभार।

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  6. prashn to sochniy hai.ye to sadiyon se chali aayee dharnayen hai.jo dhire dhire badlega.ye ladki ke sasuraal walon par nirbhar karta hai ki woh kya sochte hain. humara to ye hi sochna hain beti ho ya beta old age main parents ka sahaara banna chahiye.

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  7. सरल, स्वछन्द व् सटीक विचार
    पर हालात बदल रहे हैं !

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  8. आपकी बातों से मैं 100 फीसदी सहमत हूं। अपने अधिकार व सदियों पुरानी व्यवस्था को बदलने के लिए युवा वर्ग को ही नहीं बल्कि, महिलाओं को कमर कसकर आगे आना होगा। पुरानी व्यवस्था में बहुत सारी बुराईयां है, जिनमें बदलाव होना ही चाहिए।

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