सबके सपनों को प्रस्तुत करते करते आज अपने सपने को भी बांटने का मन हो गया और फिर बस मैंने सोचा कि अपना वह सपना भी सबके साथ बाँट लूं। बस एक सपना देखा था और उसके बाद से आज के जीवन में तो जो है वह आज है - कल के बारे में की जरूरत नहीं समझती क्योंकि न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो? इस लिए जो करना है आज ही कर लें और करते रहें . चाहे किसी को प्यार देने का काम हो, किसी को टूटने से बचाने का काम जो या फिर किसी के रोते हुए चेहरे पर मुस्कान लाने का काम . आज मैं खुद हूँ आप लोगों के सामने .
शायद ही कोई होगा जिसने बचपन से लेकर अब तक अपने भविष्य के प्रति कोई सपने न देखे हों या फिर कुछ बनने और करने न सोची हो। मैं इससे अलग तो नहीं थी और इसी के चलते मैंने भी एक सपना देखा था . चूंकि संवेदनशीलता तो मनुष्य में होती है सो सबके प्रति सहानुभूति और दया के भाव ने कुछ बनाने का सपना मन में दिया था।
ये सपना, अपनी आँखों से देखे कुछ औरतों के साथ हुए अन्याय से, पैदा हुआ था . मैं वकील बनकर औरतों के लिए मुफ्त मुकद्दमा लड़ कर न्याय दिलाने का सपना लिए थी। मेरी तार्किक शक्ति , पढ़कर बटोर हुआ अनुभव मेरे सपने के बड़े संबल थे। लेकिन मेरी सीमायें इस रास्ते में आकर उसके चूर चूर होने की कारण बनी . मेरे पापा मेरी पढाई के समर्थक थे और मेरा वादा था कि अगर मैं कभी फेल हुई तो पढाई छोड़ दूँगी लेकिन अपने सीमित साधनों से मैं जब दो विषय में एम ए कर चुकी तो पापा ने कहा कि बी एड कर लूं, लेकिन मुझे बी एड से चिढ थी क्योंकि मैं सिर्फ और सिर्फ वकालत पढ़ कर वकील या फिर जज बनना चाहती थी। पापा ने कहा कि अगर उरई में एल एल बी आ जाएगी तो मैं करवा दूंगा लेकिन बाहर जाकर पढने के लिए न साधन थे और न ही विचार . बस फिर शादी होकर कानपूर आ गयी . जिससे चिढती थी उसी बी एड करने के लिए में कहा गया क्योंकि मेरी जेठानी कई साल से फॉर्म रही थी और मेरिट कम होने के कारण नहीं हो पा रहा था . इस बार मुझसे भी फॉर्म भरने के लिए कहा गया और मैंने सोचा भर देते हैं और मेरिट के हिसाब से तुरंत एडमिशन भी मिल गया और उसके तुरंत बाद एम् एड में . संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों में भी मैंने अपनी इच्छा अपने पतिदेव से जाहिर की तो वह तैयार हो गए लेकिन तब ये था कि एल एल बी के क्लास शाम को लगते थे। जो मेरे लिए संभव न था क्योंकि संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों में कर कुछ भी लू लेकिन अपने को अतिरिक्त परिश्रम के बाद ही संभव था।
वह सपना बिखरा तो उसके विकल्प को मैं अपनाने के लिए खुद को तैयार करने में सफल हो गयी और मैं काउंसलिंग के काम में लग गयी . ये मेरे लिए व्यवसाय नहीं है बल्कि मेरे मन को एक संतुष्टि देने वाला काम है। अब इससे खुश हूँ लेकिन वह कसक आज भी मन में कभी उठ जाती है।
शायद ही कोई होगा जिसने बचपन से लेकर अब तक अपने भविष्य के प्रति कोई सपने न देखे हों या फिर कुछ बनने और करने न सोची हो। मैं इससे अलग तो नहीं थी और इसी के चलते मैंने भी एक सपना देखा था . चूंकि संवेदनशीलता तो मनुष्य में होती है सो सबके प्रति सहानुभूति और दया के भाव ने कुछ बनाने का सपना मन में दिया था।
ये सपना, अपनी आँखों से देखे कुछ औरतों के साथ हुए अन्याय से, पैदा हुआ था . मैं वकील बनकर औरतों के लिए मुफ्त मुकद्दमा लड़ कर न्याय दिलाने का सपना लिए थी। मेरी तार्किक शक्ति , पढ़कर बटोर हुआ अनुभव मेरे सपने के बड़े संबल थे। लेकिन मेरी सीमायें इस रास्ते में आकर उसके चूर चूर होने की कारण बनी . मेरे पापा मेरी पढाई के समर्थक थे और मेरा वादा था कि अगर मैं कभी फेल हुई तो पढाई छोड़ दूँगी लेकिन अपने सीमित साधनों से मैं जब दो विषय में एम ए कर चुकी तो पापा ने कहा कि बी एड कर लूं, लेकिन मुझे बी एड से चिढ थी क्योंकि मैं सिर्फ और सिर्फ वकालत पढ़ कर वकील या फिर जज बनना चाहती थी। पापा ने कहा कि अगर उरई में एल एल बी आ जाएगी तो मैं करवा दूंगा लेकिन बाहर जाकर पढने के लिए न साधन थे और न ही विचार . बस फिर शादी होकर कानपूर आ गयी . जिससे चिढती थी उसी बी एड करने के लिए में कहा गया क्योंकि मेरी जेठानी कई साल से फॉर्म रही थी और मेरिट कम होने के कारण नहीं हो पा रहा था . इस बार मुझसे भी फॉर्म भरने के लिए कहा गया और मैंने सोचा भर देते हैं और मेरिट के हिसाब से तुरंत एडमिशन भी मिल गया और उसके तुरंत बाद एम् एड में . संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों में भी मैंने अपनी इच्छा अपने पतिदेव से जाहिर की तो वह तैयार हो गए लेकिन तब ये था कि एल एल बी के क्लास शाम को लगते थे। जो मेरे लिए संभव न था क्योंकि संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों में कर कुछ भी लू लेकिन अपने को अतिरिक्त परिश्रम के बाद ही संभव था।
वह सपना बिखरा तो उसके विकल्प को मैं अपनाने के लिए खुद को तैयार करने में सफल हो गयी और मैं काउंसलिंग के काम में लग गयी . ये मेरे लिए व्यवसाय नहीं है बल्कि मेरे मन को एक संतुष्टि देने वाला काम है। अब इससे खुश हूँ लेकिन वह कसक आज भी मन में कभी उठ जाती है।
रेखा दी ...आपका सपन कभी पूरा ना हुआ हो ...पर पूर्णता के बहुत करीब है ....आज एक बार आपको फिर से आपके ही शब्दों में पढ़ कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंdi... kasak apni jagah.. par aapne jindagi jeeyee hai, wo kam nahi!!
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen...
बेशक सपने ने रूप बदल लिया है मगर आज भी आप कर वो ही कार्य रही हैं और उससे बेहतर तरीके से ये क्या कम है…………
जवाब देंहटाएंआपके शब्द शब्द आज न्याय कर रहे हैं .... कभी कभी सपने घूमकर पूरे होते हैं .
जवाब देंहटाएंआपके मन की जान कर अच्छा लगा दी....
जवाब देंहटाएंकुछ अधूरा सा ही सही मगर बहुत सा पूरा तो हुआ आपका सपना...
सादर
अनु
सपनो का इस रूप में पूरा होना भी बुरा नहीं :).
जवाब देंहटाएंरेखा जी, आपके सपने ने अपना रूप बदल लिया तो क्या.यह भी तो आपके उद्देश्य को पूरा कर रहा है .दृढ़ इच्छाशक्ति अपने लिये कोई न कोई राह निकाल ही लेती है.
जवाब देंहटाएंआपके वक्तव्य की प्रतीक्षा थी ,पढ़ कर प्रसन्नता हुई आभार!
किसी की बात सुन लेना भर भी बहुत सुकून देता है फिर आप तो उससे भी आगे हैं. शुभेच्छाएं.
जवाब देंहटाएंक्या पता वकालत में आप वो न कर पातीं जो आज कर रही हैं ... कुछ तो संतुष्टि का जरिया मिला ...
जवाब देंहटाएंab sapne agar sab pure ho jaye to woh sapne nhi rahenge na .......... .
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga aapko parna
सपनो को पूरा करने की राह मे चलना उनके पूर्ण होने ही जैसा है दी.
जवाब देंहटाएंकाउंसलिंग अपने आप में कितना बड़ा जरिया है ...लोगों के संत्रास को कम करने का ..यह मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ ....और आजकल की पीढ़ी को इसकी कितनी ज़रुरत है यह भी समझती हूँ....मुझे बहुत ख़ुशी हुई जानकार की आप इतना बढ़िया काम कर रही हैं...शुभकामनाएं !
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जवाब देंहटाएंशायद सही है ये , जो हम आज कर रहे वो अपने सपने को पा कर नहीं कर पाते .....