अक्सर अख़बार में देखने को मिलता है कि किसी गरीब या फिर बीमारी से तबाह हो चुके व्यक्ति कोआर्थिक सहायता की जरूरत है। मीडिया ने उसको सुर्ख़ियों में ला दिया तो फिर कुछ न कुछ उसको सहायता मिलही जाती है और नहीं तो कितने दम तोड़ देते हैं , कितने घरों के चिराग बुझ जाते हैं और कितने घरों के चूल्हे मेंपानी पड़ जाता है। डॉक्टर जरूरत बता कर हट जाते हैं क्योंकि उनकी भी अपनी सीमायें होती हैं। वे अपने प्रयाससे जितना कर सकते हैं कर देते हैं लेकिन जरूरी धन तो वे नहीं जुटा सकते हैं। उस परिवार की हालात क्या होतीहै? ये तो कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है किन्तु सिर्फ पैसे के अभाव में हम किसी अपने को मरते हुए देखते रहें - इस विवशता का भान मनुष्य को खुद ही जीते जी मार देता है।
अभी पिछले दिनों एक घटना हुई कि एक महिला खिलाडी रेल से गिर कर अपना पाँव गवां बैठी । उसको पहले लखनऊ और फिर एम्स दिल्ली ले जाया गया। उसकी सहायता के लिए क्रिकेट खिलाडी युवराज वहरभजन सिंह ने एक एक लाख रुपये दिए। ये उसके खिलाडी होने के नाते या फिर उसकी सहायता मानवता केनाते करने का भाव उपजा ये तो वही बता सकते हैं लेकिन मेरे मन में जरूर ये विचार उपजा और जो एक लेख केरूप में आप लोगों के विचारार्थ प्रस्तुत है।
एक आम आदमी इससे अधिक भयावह स्थितियों से गुजरता है और किसी से सहायता नहींमिलती है। वह असहाय से अपने बेटे , बेटी , माता -पिता या पति को अपनी आँखों के समक्ष तिल तिल मरते हुएदेखता रहता है और कुछ भी नहीं कर पाता है। इतना सब लिखने का मेरा उद्देश्य मात्र एक विचार है जो कौंधा तोसोचा कि इसके बारे में सब से विचार करवाया जाय। क्या एक पहल ऐसी नहीं हो सकती है कि एक आपातकालीनकोष की स्थापना की जाय, जो इस तरह के लोगों के जीवन को बचाने में प्रयोग की जा सके । प्रश्न यह है कि वे लोगजो करोड़ों और लाखों रुपये कमा रहे हैं, उनके लिए कुछ हजार रुपये की राशि कुछ भी नहीं है और वे दे भी सकतेहैं। मंदिरों में करोड़ों का दान देने वाले इसमें भी कुछ दान दे सकते हैं । अगर हम यथार्थ की बात करें तो हर आस्थामें विश्वास रखने वाला ये जानता है कि ईश्वर या वह सर्वशक्तिमान यही कहता है कि मैं जीव में ही बसता हूँ औरजीव के प्रति दया मेरी सबसे अच्छी पूजा है। उसकी सेवा ही मेरी सेवा है। फिर मंदिरों में हम किस लिए इतना दानदेते हैं? अगर हम सिर्फ कुछ अंश ऐसे कोष में दान दे दें तो उससे कितने लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। वेजो करोड़ों रुपये आयकर में दे सकते हैं वे इसमें भी दे सकते हैं। एक विशाल कोष तैयार होगा जिससे कितने गरीबोंके घर के रोटी कमाने वाले और कितने असहायों के सहाय बच सकते हैं।
प्रश्न यह है कि ऐसे कोष की पहल किस के अंतर्गत हो? ऐसे एक कोष कि स्थापना मानवाधिकारआयोग के अंतर्गत होनी चाहिए । जिसमें धन जमा करने वालों को आयकर से मुक्त धन देने का प्राविधान हो, इससे लाभ प्राप्त करने के लिए एक डॉक्टर की टीम सिफारिश करेगी वह टीम कहीं की भी हो सकती है। अब प्रश्न येहै कि इसके लिए पात्रता कैसे निर्धारित कि जा सकती हैं क्योंकि यहाँ भी रसूख वाले येन केन प्रकारेण इससे धनराशि प्राप्त करने के लिए जीभ लपलपाने लगेंगे। फर्जी प्रमाणपत्र और निर्धनता दिखाने वाले पैसे वालों की कमीनहीं है। इसके लिए मरीज कि स्थिति और उसके तीमारदारों कि स्थिति डॉक्टर से छिपी नहीं होती है और अगरडॉक्टर का पैनल इस पर विचार करते हुए अनुशंसा करे तो इसकी कार्यवाही आगे बढाई जाए , वही टीम मरीज केबारे में पूरा पूरा विवरण प्रस्तुत करके उसके लिए अनुमानित सहायता राशि के लिए लिख सकती है और फिरआयोग का डॉक्टर का पैनल इसकी आवश्यकता पर विचार करते हुए जारी करने कि सिफारिश करे।
कितने जीवन इससे बच सकते हैं, जो करोड़ों कमा रहे हैं उनके लिए छोटी सी राशि देना कोई बड़ीबात नहीं है और इसके साथ ही खुद को जनसेवक कहलाने वाले हमारे विधायक और सांसद जो साल में सिर्फ कुछदिन अपनी ड्यूटी के लिए संसद या विधानसभा में आते हैं और शेष पूरे वर्ष का वेतन लेते हैं उनके वेतन सेअनिवार्यतः वर्ष में कुछ दिनों का वेतन इस कोष में जमा करवाने की सिफारिश भी की जानी चाहिए। सच्चीजनसेवा इसी में है। तभी उनका जनसेवक कहलाने का कुछ अंश तक अर्थ जाना जा सकता है। मेरे विचार से येप्रस्ताव विचारणीय होना चाहिए।
गुरुवार, 26 मई 2011
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