लेखन : एक चिकित्सा विधि !
लेखन एक ऐसी विधा है, जो औषधि है - मन मस्तिष्क को शांत करने वाली एक प्रणाली है। मन और मस्तिष्क को तनाव से मुक्त करने का एक उपाय भी है। कुछ लोग मजाक में उड़ते हुए लिखते हैं कि दाल भात नहीं कि चढ़ाया और पका कर रख दिया। बिल्कुल सच है लेकिन कौन कहता है कि आप साहित्य की रचना करते हैं। ये एक सवाल है कि हर किसी में कोई कहानी, कविता, पेपर पेपर लेने की क्षमता नहीं है, लेकिन कौन कहता है कि आप साहित्य रचिये - आप बस एक कला और कॉपी बैठ जाइये बस थोड़ा सा स्वयं को संयत करने की जरूरत है। पढ़ना शुरू हुआ जो भी मन में आये।
तनाव, अवसाद कभी-कभी किसी भी उम्र में हो सकता है और इसका निदान भी हम एक ही बिल्डिंग में कर सकते हैं। पुरुष, महिला, युवा या किशोर कोई भी हो सिर्फ एक कागज और कलम से अपने को तनाव और अवसाद से मुक्त हो सकता है। कठिन परिस्थितियाँ ऐसी आती हैं कि बीमार को लेकर काउंसलर के पास जाता है और वह फिर से उनके निदान के लिए खोज करता है। सबसे पहले इन लोगों से उनकी बात उगलवाना थोड़ा सा टेढ़ा काम होता है। जो लोग अंतर्मुखी होते हैं वे ही ज्यादातर इनमें सभी नीरसता का शिकार होते हैं क्योंकि वे अपने सुख दुख तनाव और अवसाद खुद ही अकेले झेलते हैं। डॉक्टरों के साथ अपनी बात शेयर न करने की आदत ही यहां दी गई मानसिक समस्याओं से जुड़ी है। यही लोग आत्महत्या तक के प्रयास को समाप्त कर रहे हैं। कभी सफल हो जाते हैं तो हम चले जाते हैं और कभी हम सफल हो जाते हैं उन्हें बचा लेते हैं।
सागर के पति का निधन अचानक हो गया, केवल पति-पत्नी थे लेकिन संयुक्त परिवार के साये में थे। सरिता के उद्यमों में भी कोई नहीं था। बस वे दोनों अपना काम मिल कर कर रहे थे। इसे समझने के लिए किसी के पास कोई शब्द नहीं था और उसके पास कोई दूसरा दरवाजा भी नहीं था कि वह विक्रेता कुछ दिन रह आती। घर वालों की पैनी नजरें उस पर हमेशा टिकी रहीं क्योंकि उसके दुख की हालत से वह वाक़िफ़ थे। एक दिन रात में छत से नीचे कूदने की स्थिति का सामना करना पड़ा। वह कारखाने से निकल ही नहीं पा रही थी या कहती थी कि कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। मिलने वाले और उनके और पति के जीवन के बारे में बातें उकेर कर चले जाएँ। वह फिर अवसाद में घर चली गई।
एक दिन उसके ननदससे काउंसलर के पास ले जाया गया और उसने पूरी जानकारी लेने के बाद सलाह ही नहीं दी बल्कि अपनी तरफ से एक डायरी दी और एक कलम भी दिया। उन्होंने कहा कि वह इस रोज कुछ न कुछ लिखते हैं।
"मैं क्या लिखता हूँ?"
"कुछ भी।"
"मतलब मुझे तो कुछ भी नहीं लिखा आता?"
"कुछ शौक़ीन हैं? मेरा मतलब कहानी, कविता या लेख लिखना है। "
"नहीं।"
"अच्छा तुम जब भी फुरसत मिले तो खोल कर बैठ जाना और जो भी पढ़ने का मन आया। कुछ वो बातें जो तुम किसी से कहते थे पसंद हो। तुम्हारे पति की तस्वीर जैसी तुम्हारी जैसी बातें करती हो वैसी ही बातें इस डायरी में राइटिंग। दिन भर की अपनी गलत राइटिंग। पूछा क्या कहा? कौन घर में आया, उसकी क्या बात आपको अच्छी लगी या फिर बुरी लगी। आपके मन में उठा रहे विचार कुछ भी। नामांकित कोई भी नहीं देखेगा और अगले दिन आप मेरे पास आओगी तो ये डायरी लेकर आओगी। हर दिन के बाद आप लिखती हैं कि आपका मन अब कैसा अनुभव करता है? हर रोज की फाइलिंग में आप लिख लेंगी। " "
फिर आपने उसकी रचना क्या की?"
"मैं उसे ही फिर आगे लिखूंगा और देखूंगा कि आपका अवसाद कितना कम हुआ है?"
उन्होंने सरिता की नंद को भी ये निर्देश दिया कि जब भी वह घर जाएं तो पद के लिए नामांकन करें।
एक दिन बाद जब सागरतट आया तो वह बीस पन्ने लिखे थे। शामिल है उसने अपने दिल को खोल कर रख दिया था। अभी भी पति के साथ मिल कर क्या करना था? अगर वह अभी भी रहती है तो उसके जीवन के दिन कैसे गुजरात में रहते हैं? अभी भी उनके राम राम जाने के वादे को पूरा करना भी अधूरा ही छोड़ कर चले गए।
वह सब वीडियो के बाद अवसाद से काफी मुक्त दिख रही थी। उसकी ननद से जब पूछा गया तो उसने भी यही कहा कि अब पहले से बेहतर है।
बच्चों
की जिंदगी का एक ऐसा दौर होता है कि वे एक असमंजस की स्थिति से गुजर रहे होते हैं। वह अपनी मां-बाप से भी कभी शेयर करना पसंद नहीं करतीं। अपने-अपने बहुत से सामान्य संकेत दिए गए हैं और कभी-कभी इस उम्र में माता-पिता के निर्देशों या फिर कुछ भी सामान गलत माना जाता है और उनके ठीक विपरीत व्यवहार किए जाते हैं। इस समय यदि उनके पास अभिव्यक्ति का कोई साधन होता है तो वे अपनी बातों को शामिल कर सकते हैं, रचना कर सकते हैं, या अन्य प्रेरक कार्य करके अपना सहयोग कर सकते हैं तो उन्हें अपने भविष्य के प्रति एक दिशा दिखाने की सलाह दी जाती है। इसी समय उनकी संगति सही और गलत बनाने का समय होता है और वे अगर इस दिशा में मुड़ जाते हैं तो चर्या को लिपिबद्ध करके रख कर वापस ले लिया जाता है तो वह बहुत सारी बातें जो कभी-कभी अपने माता-पिता को समझ में नहीं आती हैं या फिर जुड़ेतम जीवन में उन्हें समय नहीं दे दिया जाता है तो वे अपना समय अन्य कार्यों में लगाने के बजाय इसमें लगा देते हैं। कई बार किशोर या किशोरी अपने अंतर्मन के द्वंद्व को अपनी मंजिल से नहीं कह पाते हैं और अंदर घुघुघुती कर गलत निर्णय ले लेते हैं।
इसके लिए आप अपने बच्चों के स्वभाव को बचपन से ही जान सकते हैं। उनके किशोरवस्था में प्रवेश करने से पूर्व ही उन्हें पद या अभिव्यक्ति का कोई रास्ता नहीं दिखाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि बच्चे को अपनी दुकान के अनुसार अधिक ध्यान देना चाहिए।
असहमति को सिर्फ आत्महत्या के लिए ही नहीं बल्कि पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति परेशानी, अवसाद या तनाव को गंभीरता से लेना चाहिए। आत्महत्या की ओर ऐसा ही होता है। सब को तो ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है।
लेखन एक ऐसी विधा है, जो औषधि है - मन मस्तिष्क को शांत करने वाली एक प्रणाली है। मन और मस्तिष्क को तनाव से मुक्त करने का एक उपाय भी है। कुछ लोग मजाक में उड़ते हुए लिखते हैं कि दाल भात नहीं कि चढ़ाया और पका कर रख दिया। बिल्कुल सच है लेकिन कौन कहता है कि आप साहित्य की रचना करते हैं। ये एक सवाल है कि हर किसी में कोई कहानी, कविता, पेपर पेपर लेने की क्षमता नहीं है, लेकिन कौन कहता है कि आप साहित्य रचिये - आप बस एक कला और कॉपी बैठ जाइये बस थोड़ा सा स्वयं को संयत करने की जरूरत है। पढ़ना शुरू हुआ जो भी मन में आये।
तनाव, अवसाद कभी-कभी किसी भी उम्र में हो सकता है और इसका निदान भी हम एक ही बिल्डिंग में कर सकते हैं। पुरुष, महिला, युवा या किशोर कोई भी हो सिर्फ एक कागज और कलम से अपने को तनाव और अवसाद से मुक्त हो सकता है। कठिन परिस्थितियाँ ऐसी आती हैं कि बीमार को लेकर काउंसलर के पास जाता है और वह फिर से उनके निदान के लिए खोज करता है। सबसे पहले इन लोगों से उनकी बात उगलवाना थोड़ा सा टेढ़ा काम होता है। जो लोग अंतर्मुखी होते हैं वे ही ज्यादातर इनमें सभी नीरसता का शिकार होते हैं क्योंकि वे अपने सुख दुख तनाव और अवसाद खुद ही अकेले झेलते हैं। डॉक्टरों के साथ अपनी बात शेयर न करने की आदत ही यहां दी गई मानसिक समस्याओं से जुड़ी है। यही लोग आत्महत्या तक के प्रयास को समाप्त कर रहे हैं। कभी सफल हो जाते हैं तो हम चले जाते हैं और कभी हम सफल हो जाते हैं उन्हें बचा लेते हैं।
सागर के पति का निधन अचानक हो गया, केवल पति-पत्नी थे लेकिन संयुक्त परिवार के साये में थे। सरिता के उद्यमों में भी कोई नहीं था। बस वे दोनों अपना काम मिल कर कर रहे थे। इसे समझने के लिए किसी के पास कोई शब्द नहीं था और उसके पास कोई दूसरा दरवाजा भी नहीं था कि वह विक्रेता कुछ दिन रह आती। घर वालों की पैनी नजरें उस पर हमेशा टिकी रहीं क्योंकि उसके दुख की हालत से वह वाक़िफ़ थे। एक दिन रात में छत से नीचे कूदने की स्थिति का सामना करना पड़ा। वह कारखाने से निकल ही नहीं पा रही थी या कहती थी कि कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। मिलने वाले और उनके और पति के जीवन के बारे में बातें उकेर कर चले जाएँ। वह फिर अवसाद में घर चली गई।
एक दिन उसके ननदससे काउंसलर के पास ले जाया गया और उसने पूरी जानकारी लेने के बाद सलाह ही नहीं दी बल्कि अपनी तरफ से एक डायरी दी और एक कलम भी दिया। उन्होंने कहा कि वह इस रोज कुछ न कुछ लिखते हैं।
"मैं क्या लिखता हूँ?"
"कुछ भी।"
"मतलब मुझे तो कुछ भी नहीं लिखा आता?"
"कुछ शौक़ीन हैं? मेरा मतलब कहानी, कविता या लेख लिखना है। "
"नहीं।"
"अच्छा तुम जब भी फुरसत मिले तो खोल कर बैठ जाना और जो भी पढ़ने का मन आया। कुछ वो बातें जो तुम किसी से कहते थे पसंद हो। तुम्हारे पति की तस्वीर जैसी तुम्हारी जैसी बातें करती हो वैसी ही बातें इस डायरी में राइटिंग। दिन भर की अपनी गलत राइटिंग। पूछा क्या कहा? कौन घर में आया, उसकी क्या बात आपको अच्छी लगी या फिर बुरी लगी। आपके मन में उठा रहे विचार कुछ भी। नामांकित कोई भी नहीं देखेगा और अगले दिन आप मेरे पास आओगी तो ये डायरी लेकर आओगी। हर दिन के बाद आप लिखती हैं कि आपका मन अब कैसा अनुभव करता है? हर रोज की फाइलिंग में आप लिख लेंगी। " "
फिर आपने उसकी रचना क्या की?"
"मैं उसे ही फिर आगे लिखूंगा और देखूंगा कि आपका अवसाद कितना कम हुआ है?"
उन्होंने सरिता की नंद को भी ये निर्देश दिया कि जब भी वह घर जाएं तो पद के लिए नामांकन करें।
एक दिन बाद जब सागरतट आया तो वह बीस पन्ने लिखे थे। शामिल है उसने अपने दिल को खोल कर रख दिया था। अभी भी पति के साथ मिल कर क्या करना था? अगर वह अभी भी रहती है तो उसके जीवन के दिन कैसे गुजरात में रहते हैं? अभी भी उनके राम राम जाने के वादे को पूरा करना भी अधूरा ही छोड़ कर चले गए।
वह सब वीडियो के बाद अवसाद से काफी मुक्त दिख रही थी। उसकी ननद से जब पूछा गया तो उसने भी यही कहा कि अब पहले से बेहतर है।
बच्चों
की जिंदगी का एक ऐसा दौर होता है कि वे एक असमंजस की स्थिति से गुजर रहे होते हैं। वह अपनी मां-बाप से भी कभी शेयर करना पसंद नहीं करतीं। अपने-अपने बहुत से सामान्य संकेत दिए गए हैं और कभी-कभी इस उम्र में माता-पिता के निर्देशों या फिर कुछ भी सामान गलत माना जाता है और उनके ठीक विपरीत व्यवहार किए जाते हैं। इस समय यदि उनके पास अभिव्यक्ति का कोई साधन होता है तो वे अपनी बातों को शामिल कर सकते हैं, रचना कर सकते हैं, या अन्य प्रेरक कार्य करके अपना सहयोग कर सकते हैं तो उन्हें अपने भविष्य के प्रति एक दिशा दिखाने की सलाह दी जाती है। इसी समय उनकी संगति सही और गलत बनाने का समय होता है और वे अगर इस दिशा में मुड़ जाते हैं तो चर्या को लिपिबद्ध करके रख कर वापस ले लिया जाता है तो वह बहुत सारी बातें जो कभी-कभी अपने माता-पिता को समझ में नहीं आती हैं या फिर जुड़ेतम जीवन में उन्हें समय नहीं दे दिया जाता है तो वे अपना समय अन्य कार्यों में लगाने के बजाय इसमें लगा देते हैं। कई बार किशोर या किशोरी अपने अंतर्मन के द्वंद्व को अपनी मंजिल से नहीं कह पाते हैं और अंदर घुघुघुती कर गलत निर्णय ले लेते हैं।
इसके लिए आप अपने बच्चों के स्वभाव को बचपन से ही जान सकते हैं। उनके किशोरवस्था में प्रवेश करने से पूर्व ही उन्हें पद या अभिव्यक्ति का कोई रास्ता नहीं दिखाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि बच्चे को अपनी दुकान के अनुसार अधिक ध्यान देना चाहिए।
असहमति को सिर्फ आत्महत्या के लिए ही नहीं बल्कि पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति परेशानी, अवसाद या तनाव को गंभीरता से लेना चाहिए। आत्महत्या की ओर ऐसा ही होता है। सब को तो ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है।