संतान माता पिता या अभिभावकों के लिए सबसे प्रिय होती है और उसके लिए ही
वो कठिन परिश्रम करते है और अपने सुख को भूल जाते हैं। उनके सुन्दर
भविष्य की कल्पना करना उनका सबसे बड़ा सपना होता है। भविष्य के लिए सपनों
वो बच्चे भी देखते हैं लेकिन वह उनके जीवन की वह उम्र होती है , जिसे किशोर
वय कहते हैं और इसमें वे इतने अनिश्चय के दौर से गुजर रहे होते हैं कि
कभी वे ऐसा निर्णय ले बैठते हैं जो न उनके लिए उचित होता है और न
अभिभावकों के लिए है।
जब बच्चे जीवन के इस मोड़ पर होते हैं , तब उनके लिए परीक्षा का वह समय आ जाता है जिसमें अपनी अपेक्षा के अनुसार परिणाम की आशा करते हैं और कुछ बच्चे तो अपने माता पिता के सपनों को पूरा करने के लिए सब कुछ लगा लेते हैं। उनकी उम्र के हिसाब से भी बहुत नाजुक होता है और माता पिता के लिए भी ये बहुत कठिन घडी होती है। इस उम्र में वे कोई ऐसी परीक्षा दे रहे होते हैं , जो उनके आगे के भविष्य के लिए एक मील का पत्थर साबित होता है या फिर शिक्षा की नींव बनती है। पहली हो या दूसरी या फिर भविष्य के सपनों से जुडी कोई भी परीक्षा , उनके लिए जीवन मरण का प्रश्न बन जाती है।
सतर्क रहें : ये वह समय है जब कि माता - पिता को बहुत ही सतर्क रहने की जरूरत है। अधिकांशतः मार्च से लेकर जुलाई तक का समय होता है जबकि स्कूली परीक्षा , कॉलेज की परीक्षा या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं का समय होता है। पहले परीक्षाएं और फिर परिणाम। बच्चे जी तोड़ परिश्रम करते हैं लेकिन अगर पेपर ख़राब होने पर या परिणाम के आने से पूर्व असफलता की आशंका उनके कोमल मष्तिष्क पर छायी रहती है और ऐसे समय में उन्हें भावात्मक सम्बल की जरूरत होती है और साथ ही माता पिता के सतर्क रहने की भी जरूरत होती है। बच्चा यदि स्वभाव के विपरीत कुछ भी करता नजर आता है तो आप भी कोशिश करें कि उस पर विशेष ध्यान दें. उन्हें अकेले रहने का अवसर न दें
बाल मनोविज्ञान : बाल और किशोर मनोविज्ञान से आप अवगत होंगे और कभी अगर इस और ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी है तो अब समझें। अगर आपका बच्चा अंतर्मुखी स्वभाव का है तो ऐसे बच्चे अपने मन की बात कोई प्रकट नहीं करते हैं और अप्रत्याशित कदम भी उठा लेते हैं। उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने की आदत नहीं होती है और ऐसी आदत के चलते अगर आपको भी ये लगे कि आपका बच्चा अंतर्मुखी है तो उसको किशोर वय में प्रवेश करने से पहले उन्हें अभिव्यक्ति का माध्यम सुझा दें. उन्हें संगीत , लेखन या फिर डायरी लिखने की आदत डाल देनी चाहिए। इससे उन्हें अपने तनाव या अवसाद को व्यक्त करने का माध्यम मिल जाता है और इससे वह कुछ हद तक अपने उसे तनाव से मुक्त हो जाते हैं।
बच्चों पर अपना निर्णय न थोपें : यह अधिकांशतः देखा जाता है कि माता पिता जो खुद बनना चाहते हैं और नहीं बन पाते हैं तो वे अपनी दमित इच्छा को बच्चों में साकार देखना चाहते हैं और इस बात को वे बच्चों से इस तरह कहते हैं कि बच्चों के ऊपर एक मानसिक दबाव आ जाता है और वे भी उसकी पूर्ति के लिए जी जान से जुट जाते हैं लेकिन इसमें अगर कहीं उनको लगता है कि वे सफल नहीं हो पाएंगे और कभी पेपर सहीं न होने पर तो कभी परिणाम आने के पहले ही वह कभी कभी आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए बच्चे की रूचि और क्षमताओं का आकलन करते हुए ही अपेक्षा रखे और उनको आश्वासन देते रहें कि जो भी परिणाम हो उनको ख़ुशी होगी क्योकि तुमने पूरी शक्ति से तयारी की है।
तुलना न करें : बच्चे की प्रगति और परिणाम में अक्सर माता पिता बच्चों की तुलना उनके मित्रों या अपने मित्रों के बच्चों के साथ करने लगते हैं। जीवन में हर बच्चे की अपनी अलग क्षमता होती है और उसकी मेधा भी अलग होती है तो तुलना तो बिलकुल ही व्यर्थ है बल्कि इससे आप अपने बच्चे को अवसाद और तनाव का शिकार बना देंगे और कभी कभी तो तुलना की भावना बच्चे में हिंसा का भाव तक ला देता है। उन्हें स्वाभाविक तरीके से पालें और बड़ा होने दें।
जब बच्चे जीवन के इस मोड़ पर होते हैं , तब उनके लिए परीक्षा का वह समय आ जाता है जिसमें अपनी अपेक्षा के अनुसार परिणाम की आशा करते हैं और कुछ बच्चे तो अपने माता पिता के सपनों को पूरा करने के लिए सब कुछ लगा लेते हैं। उनकी उम्र के हिसाब से भी बहुत नाजुक होता है और माता पिता के लिए भी ये बहुत कठिन घडी होती है। इस उम्र में वे कोई ऐसी परीक्षा दे रहे होते हैं , जो उनके आगे के भविष्य के लिए एक मील का पत्थर साबित होता है या फिर शिक्षा की नींव बनती है। पहली हो या दूसरी या फिर भविष्य के सपनों से जुडी कोई भी परीक्षा , उनके लिए जीवन मरण का प्रश्न बन जाती है।
सतर्क रहें : ये वह समय है जब कि माता - पिता को बहुत ही सतर्क रहने की जरूरत है। अधिकांशतः मार्च से लेकर जुलाई तक का समय होता है जबकि स्कूली परीक्षा , कॉलेज की परीक्षा या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं का समय होता है। पहले परीक्षाएं और फिर परिणाम। बच्चे जी तोड़ परिश्रम करते हैं लेकिन अगर पेपर ख़राब होने पर या परिणाम के आने से पूर्व असफलता की आशंका उनके कोमल मष्तिष्क पर छायी रहती है और ऐसे समय में उन्हें भावात्मक सम्बल की जरूरत होती है और साथ ही माता पिता के सतर्क रहने की भी जरूरत होती है। बच्चा यदि स्वभाव के विपरीत कुछ भी करता नजर आता है तो आप भी कोशिश करें कि उस पर विशेष ध्यान दें. उन्हें अकेले रहने का अवसर न दें
बाल मनोविज्ञान : बाल और किशोर मनोविज्ञान से आप अवगत होंगे और कभी अगर इस और ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी है तो अब समझें। अगर आपका बच्चा अंतर्मुखी स्वभाव का है तो ऐसे बच्चे अपने मन की बात कोई प्रकट नहीं करते हैं और अप्रत्याशित कदम भी उठा लेते हैं। उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने की आदत नहीं होती है और ऐसी आदत के चलते अगर आपको भी ये लगे कि आपका बच्चा अंतर्मुखी है तो उसको किशोर वय में प्रवेश करने से पहले उन्हें अभिव्यक्ति का माध्यम सुझा दें. उन्हें संगीत , लेखन या फिर डायरी लिखने की आदत डाल देनी चाहिए। इससे उन्हें अपने तनाव या अवसाद को व्यक्त करने का माध्यम मिल जाता है और इससे वह कुछ हद तक अपने उसे तनाव से मुक्त हो जाते हैं।
बच्चों पर अपना निर्णय न थोपें : यह अधिकांशतः देखा जाता है कि माता पिता जो खुद बनना चाहते हैं और नहीं बन पाते हैं तो वे अपनी दमित इच्छा को बच्चों में साकार देखना चाहते हैं और इस बात को वे बच्चों से इस तरह कहते हैं कि बच्चों के ऊपर एक मानसिक दबाव आ जाता है और वे भी उसकी पूर्ति के लिए जी जान से जुट जाते हैं लेकिन इसमें अगर कहीं उनको लगता है कि वे सफल नहीं हो पाएंगे और कभी पेपर सहीं न होने पर तो कभी परिणाम आने के पहले ही वह कभी कभी आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए बच्चे की रूचि और क्षमताओं का आकलन करते हुए ही अपेक्षा रखे और उनको आश्वासन देते रहें कि जो भी परिणाम हो उनको ख़ुशी होगी क्योकि तुमने पूरी शक्ति से तयारी की है।
तुलना न करें : बच्चे की प्रगति और परिणाम में अक्सर माता पिता बच्चों की तुलना उनके मित्रों या अपने मित्रों के बच्चों के साथ करने लगते हैं। जीवन में हर बच्चे की अपनी अलग क्षमता होती है और उसकी मेधा भी अलग होती है तो तुलना तो बिलकुल ही व्यर्थ है बल्कि इससे आप अपने बच्चे को अवसाद और तनाव का शिकार बना देंगे और कभी कभी तो तुलना की भावना बच्चे में हिंसा का भाव तक ला देता है। उन्हें स्वाभाविक तरीके से पालें और बड़ा होने दें।
4 टिप्पणियां:
सहमत आपकी बात से ...
बच्चों के मनोविज्ञान को पढना जरूरी होता है हर अवस्था में ...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि - मनोहर पर्रिकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सटीक
बहुत सही और सटीक सलाह दी है आपने। बधाई।
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