चिट्ठाजगत www.hamarivani.com

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षा बंधन त्यौहार या अहसास !




rakshaa बंधन हम एक पर्व की तरह से मनाते हैं एक निश्चित दिन लेकिन ये एक अहसास भी है - बहन के द्वारा भाई की कलाई पर बंधा हुआ रेशमी धागा इस बात का प्रतीक है कि बहन ने भाई को अपने रक्षा दायित्व में बाँध लिया है लेकिन उस दायित्व को निभाना भी एक बहूत बड़ा काम होता है। कभी कोई अपना कुछ न होते हुए भी बहूत कुछ बन जाता है। ये एक अहसास है क्योंकि कभी कभी ऐसा भी देखने को मिल जाता है जो हम अपने खून के रिश्तों में नहीं देख पाते हैं। कभी जायदाद को लेकर , कभी माता - पिता की परवरिश को लेकर या फिर कभi छोटे या बड़े मनमुटाव को लेकर खून के रिश्तों में तो दरार आ जाती है लेकिन इन धागों के रिश्तों में शायद ये दरार कभी नहीं आती है। क्योंकि ये रिश्ते किसी स्वार्थ से नहीं जुड़े होते हैं।


मेरे अपने भाई हैं हर समय नहीं जा पाती हूँ , लेकिन मेरे पास में ही मेरा एक माना हुआ भाई रहता है। वह नहीं है लेकिन काफी समय मेरे घर आता रहा और फिर एक दिन बातों बातों में पता चला कि वह कहीं से मेरे रिश्ते में भाई होता है। उसने रक्षा बंधन के दिन खबर भिजवा दी कि आज दीदी मेरे घर आकर रखी बांधेंगी नहीं तो फिर मैं कभी नहीं आऊंगा। इत्तेफाक से उसके कोई बहन भी नहीं है। मुझे वर्ष तो नहीं याद है लेकिन इतना कि मैंने कभी ये महसूस नहीं किया कि ये मेरा खून के रिश्ते वाले भाई से कभी कम है। खून के रिश्ते तो सब निभाते हैं , अगर ये रिश्ते जीवन भर निभाए जाएँ तो प्यार को सन्देश मिलता है जिसकी कोई सीमा नहीं है।ये एक अहसास है जिसे हम प्यार से जी लें तो उससे अच्छा कुछ भी नहीं।


इस पावन पर्व पर मैं अपने सभी भाइयों को हार्दिक शुभकामनाएं भेज रही हूँ। सभी के जीवन में ख़ुशी और समृद्धि बनी रहे। ईश्वर एक स्वस्थ और सुखमय जीवन प्रदान करे ।






शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

लोकतंत्र में सुधार चाहिए!

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने अपने पोर्टल पर और फेसबुक के सहारे इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा प्रणाली के विषय में मत संग्रह किया - जान सामान्य के विचार जानने के लिए यह एक बहुत ही अच्छा तरीका रहा इस तरीके के पढ़ते पढ़ते ऐसा ही ख्याल आया कि पुरानी परिभाषाओं को परिमार्जित करके नया कलेवर दिया जा सकता है लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप की जो दुर्दशा हो रही है, उससे हर कोई वाकिफ है वंशानुगत दलों की बागडोर सभांलने वाले राजनेता और भावनाओं में बहने वाला मतदाता को जो अपने छाले जाने का अहसास होता तब तक वह पांच साल के लिए मजबूर हो चुका होता है फिर भले ही वे अपने प्रतिनिधि को उनके ही पेट में लात मारकर अपनी तिजोरियां भरते हुए देखें या फिर निरंकुश शासक बन आने ही घर को कांचन महल बनाकर अंगूठा दिखाते रहें
उनके चुने हुए प्रतिनिधि दलों के निर्जीव मुहरे होते हैं जिन्हें पार्टी हाई कमान अपनी इच्छानुसार नाचता रहता है और सत्ता पर काबिज पटरी अपनी इच्छानुसार विधेयक बनाकर पेश करती रहती है जिसमें लाभान्वित चाहे कोई भी हो लेकिन अपनी सत्ता के भविष्य में काबिज रहने की संभावनाओं को पुख्ता करने के साधन जुटाए जाते हैं
अब लोकतंत्र को वास्तव में जनता के लिए जनता के द्वारा शासन की परिभाषा को सत्य तो होने दीजिये उसके अब सुधार की जरूरत हो रही है जब समय के साथ हर क्षेत्र में क्रांति हो रही है फिर ये क्षेत्र अछूता क्यों रहे? अब इसको भी परिमार्जित किया जाना चाहिए अब विधेयक का प्रारूप तैयार करने के बाद सदन में रखने से पूर्व ठीक इसी तरह से सरकारी पोर्टल और अन्य सोशल नेट वर्क पर डाल कर जनमत संग्रह होना चाहिए ये सारे विधेयक सिर्फ सदन या संसद में लागू नहीं होने है ये बनाये तो उनके प्रतिनिधियों के द्वारा ही हैं लेकिन उसके ही गले को काटने की तैयारी भी की जा रही है ये सत्य है की ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोग इन सब चीजों से वाकिफ नहीं है, वे कैसे भाग ले सकते हैं तो इसके लिए ग्राम पंचायतों में कंप्यूटर की व्यवस्था होनी चाहिए ऐसे विधेयक या नए विधेयक की सम्पूर्ण रूपरेखा सार्वजनिक तौर पर प्रकाशित या प्रदर्शित की जानी चाहिए टी वी तो आजकल हर घर में है चाहे वे झुग्गी झोपड़ी में ही क्यों रहते हों? उसकी जानकारी दी जानी चाहिए सिर्फ जानकारी नहीं बल्कि उसमें मतदान के लिए भी रूचि जाग्रत किया जाना चाहिए आरम्भ में इस प्रक्रिया को जटिल कह कर रद्द किया जा सकता है लेकिन इसको सहज भी बनाया जा सकता है अपनी राय देने के साथ राय देने वाले का नाम और मतदाता संख्या का उल्लेख भी हो तो उसकी उपयोगिता और उसकी सत्यता को आँका जा सकता है नहीं तो ये टी वी सीरियल की तरह फर्जी या फिर कई कई बार वोटिंग करके जनमत का मखौल उठाया जा सकता है अगर इस प्रक्रिया को अपना लिया जाय तो फिर किसी अन्ना हजारे या रामदेव को अनशन या प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी किसी विधेयक को न्यायालय में चुनौती देकर न्यायिक सक्रियता के दायरे में नहीं लाया जाएगा सदन के बहुमत पर ये मतदान भरी पड़ेगा विधेयक की सार्थकता को समझाने वाला बुद्धिजीवी वर्ग ही अगर इसमें शामिल हो जाता है तो फिर इसके सार्थक होने में संदेह नहीं किया जा सकता है विधेयक राजनेताओं के स्वार्थ पूर्ति के लिए नहीं बल्कि प्रजा के कल्याण के लिए बनाये जाते हैं यहाँ संसद में सत्तारूढ़ दल अपनी मनमानी और अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए अपने अधिकारों का दुरूपयोग नहीं कर पायेंगे सार्वजनिक तौर पर रखे गए विधेयक में सुधार भी प्रस्तावित किये जा सकते हैं इस प्रक्रिया से गुजर कर जो विधेयक बनेगा वह लोकहित में होगा
यहाँ कुछ विषयों को तुरुप का पत्ता बना कर बाजी हमेशा अपने पक्ष में ही नहीं रखी जायेगी
सत्तारूढ़ दल के निरंकुश होते रवैये पर अंकुश लगाया जाना जरूरी है लोक विरोध करता हुआ छटपटाता रहता है और हासिल उसको कुछ भी नहीं होता है लोकपाल बिल, सांप्रदायिक हिंसा निषेध बिल के लिए किसी अन्ना हजारे या कालेधन के लिए किसी रामदेव बाबा को इस तरह से अनशन करने पड़ते और ही सरकार के कुकृत्यों के द्वारा लोक को लज्जित होना पड़ा
अब लोक को ही जागरूक होना पड़ेगा, तभी तो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ये जागरूकता हस्तांतरित होगीऔर फिर आज नहीं तो कल आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ समाज और सरकार मिल सकेगीएक काले कारनामों से रहित और लोकहित के लिए सोचने वाली सरकारक्या ऐसा संभव है? असंभव तो कुछ भी नहीं है और मुझे लगता है किआने वाली पीढ़ी पिछली पीढ़ी से अधिक विस्तृत सोच रखती हैफिर इसके लिए ये प्रस्ताव कैसा है?