सुखद दाम्पत्य जीवन !
दाम्पत्य जीवन हमारी संस्कृति और संसृति जा आधार है। ये सम्बन्ध सिर्फ मानव जीवन में ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में भी मिलते हैं । इसके स्थायित्व और मधुरता के लिए ही हमारी संस्कृति में कुछ व्रत और पर्व भी जोड़ रखे हैं और ये विश्वास की एक गहरी नींव है। सुखद दाम्पत्य जीवन का अर्थ पति-पत्नी के मध्य प्रेम, सम्मान और समझदारी और सामंजस्य का भाव हो। इसके लिए कुछ बिंदु ऐसे हैं कि अगर अपनी समझदारी से हम इनपर ध्यान दें तो दंपत्ति का जीवन सुखमय होगा।
समय के साथ और दंपत्ति की जिम्मेदारियों और कार्यक्षेत्र के विस्तार से दाम्पत्य जीवन कठिन हो रहा है। खासतौर पर जब परिवार संस्था एकल रह गयी हो., लेकिन इसको भी अगर समझदारी से चलाया जाय तो कोई भी कटुता या दुरूहता आएगी ही नहीं।
1.- आपसी सामंजस्य :- पति-पत्नी के बीच हर क्षेत्र में सामजस्य होना जरूरी है। इसमें संयुक्त परिवार , रिश्ते और बच्चों के करियर से लेकर उनके प्रति जिम्मेदारी भी आती है। दोनों के माता-पिता और भाई-बहनों के प्रति प्रेम और रिश्तों की गरिमा बनाये रखना ही एक मजबूत स्तम्भ है।
2 - निजता का सम्मान :- एक दूसरे कार्यक्षेत्र की बातों पर भी निजता को पूरा सम्मान करना चाहिए, वैसे तो कोई ऐसी बात होनी ही नहीं चाहिए कि एक दूसरे से छिपा कर रखी जाय। विश्वास एक बहुत गहरी भावना होती है, जिससे परे कोई गलत बात या आक्षेप पर विश्वास करे ही नहीं।इसमें एक उदहारण आज के मोबाइल हैं। एक दूसरे के मोबाइल को खोल कर उससे देख रेख करना और फिर विश्वास या अविश्वास निजता जा उल्लंघन होता है।
3 - आपसी समझदारी :- आपस में समझदारी होना इतनी मजबूत नीव होती है कि अगर बड़ी बड़ी मुसीबत या जिम्मेदारी आये वे मिलकर उसे सुलझा ही लेते हैं। दोनों का ऑफिस समय अलग अलग होता है तो पति और पत्नी को सारे काम मिलकर ही निपटाने चाहिए। अगर पत्नी नाश्ता बनाती है तो पति दोनों के और अगर बच्चे हैं तो सबके लंच पैक कर सकता है। किसी को देर नहीं और किसी पर भार नहीं। एक दूसरे की अपेक्षाओं और जरूरतों को समझ कर चलेंगे तो सुखमय जीवन व्यतीत होगा।
4 .- प्रेमाभिव्यक्ति :- जीवन कितना ही व्यस्त क्यों न हो इस दाम्पत्य की इमारत तो प्रेम और विश्वास की नीव पर ही खड़ी होती है। आपस में प्रेम की अभिव्यक्ति भी इस रिश्ते को बाँधे रखने में उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि एक पौधे के लिए खाद और पानी। जीवन रुपी वृक्ष भी तभी हरा भरा और फलित होता रहता है।
5 - करियर में सहयोग :- दोनों के ही कार्य स्वरूप में हमेशा एकरूपता नहीं होती है , अलग अलग व्यवसाय में भी होते हैं तो अगर किसी के कार्य में सहयोग संभव है तो अवश्य ही करना चाहिए। इससे विश्वास और गहरा होता है और वे एक ही गाड़ी के दो पहियों वाली अवधरणा को सत्य सिद्ध करते हैं। इसका एक बहुत अच्छा उदहारण है कि पति डॉक्टर और पत्नी आईटी क्षेत्र की हो तो जब जब पति को जरूरत पड़ती है वह उसके जनरल , आलेखों का निर्माण और संपादन करती रहती है।
6 - प्रेरित करना :- पति- पत्नी को एक दूसरे की चाहे व्यावसायिक प्रगति हो या फिर सामाजिक। उसमें नया और आगे बढ़ने के लिए एक दूसरे को प्रेरित ही नहीं करना चाहिए बल्कि सहयोग देना चाहिए। इससे दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति ही नहीं बल्कि समाज में भी एक सार्थक सन्देश जाता है।
7 - निजी जीवन को समय देना :- पति-पत्नी दोनों ही अलग अलग जॉब में होते है तो उनकी व्यस्तता अलग अलग होती है और उनके आने-जाने का समय भी। इसमें उन्हें साथ समय बिताने के अवसर कम ही मिलते हैं तो ऐसे में दोनों को सुनियोजित कार्यक्रम बना कर निजी जीवन के कुछ दिन इन सबसे दूर एक दूसरे के साथ बिताना का समय जरूर रखना चाहिए। इससे एक नई ऊर्जा और उत्साह आ जाता है।
8 - परिवार की जिम्मेदारी :- परिवार की जिम्मेदारी भी मिल बाँट कर उठानी चाहिए। परिवार में सिर्फ एकल नहीं बल्कि संयुक्त परिवार को भी उचित सम्मान देना और कुछ अवसरों पर उनको सम्मानित करने में दोनों को ही एक दूसरे के लिए प्रेम और आदर का भाव रखने से ही आपस में रिश्ते सुदृढ़ होते हैं। बच्चों की पढाई और उनके करियर के बारे में भी दोनों को अपनी अपनी राय देकर और विचार विमर्श करके अपने दायित्व को पूर्ण करना चाहिए।
इन सबके साथ ही हमारी धार्मिक आस्थाएं और सुदृढ़ करती हैं। जब पत्नी पति के लिए हरितालिका, करावा चौथ और वट सावित्री जैसे व्रत करती है तो उनकी गहराई वह दोनों ही महसूस करते हैं।

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