आज तो यह आम हो चुका है कि बच्चे माँ - बाप को छोड़ कर पढने चले गए या फिर नौकरी के लिए चले गए। सभी बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार जाना ही है। यह भी आम बात में शुमार हो चुका है कि बच्चे विदेश पढने या नौकरी के लिए जा रहे हैं और माँ-बाप अकेले घर में रहा जाते हैं। यह तो प्रकृति का नियम है - पशु और पक्षी भी पर निकलने तक माँ-बाप से दाने लेते और फिर अपने पर फैला कर उड़ जाते हैं। नया घौसला बनाने के लिए।
शर्मा दंपत्ति , गुप्ता दंपत्ति, सिंह दंपत्ति सभी ऐसे ही है और न जाने कितने लोग जो कि अब अकेले रह रहे हैं. मैं भी इसी श्रेणी में आती हूँ। फिर ऐसे लोग क्या करते हैं ?
अरे क्या बच्चे हैं नहीं हम दोनों हैं कुछ भी बना लिया और खा लिया।
घर में ही पड़े रहते हैं ,न कहीं जाने का मन करता है और न घूमने फिरने का।
दिन में कुछ भी नहीं बनती हूँ , बस एक बार शाम को बना लेती हूँ।
दिन भर घर में पड़े पड़े बोरे हो जाती हूँ।
दिन काटे नहीं कटता है, शाम होने के इन्तजार में बैठी रहती हूँ।
टीवी भी कहाँ तक देखें, सभी सीरियलों में एक ही कहानी होती है।
खाली घर काटने को दौड़ता है।
यह नहीं सोचा था कि बिल्कुल अकेले रह जायेंगे।
यह सोच है , अधेड़ उम्र के लोगों कि, जहाँ पर वे अकेले रह गए हैं, उन लोगों ने इस एकाकीपन को अपना प्रारब्ध मान लिया है या फिर इस ढर्रे पर जीवन को ढाल लिया है। जीवन के इस पड़ाव का भी अपना एक अलग उद्देश्य बनाइये। हम स्वार्थी तो नहीं हो सकते हैं कि बच्चों को बाहर न जाने दें या फिर उनको कहें कि यही कोई नौकरी खोज लो। कम मिलेगा घर में तो रहोगे घर का कम ही ठीक है। बाहर का हजार घर में सौ अच्छे होते हैं। यह भी धारणा होती है लोगों में.
लेकिन उक्त दंपत्तियों की श्रेणी में इस लिहाज से मैं नहीं आती हूँ कि हम दोनों उनकी तरह से घर में कैद नहीं हैं या फिर अगर नौकरी में न होते तो क्या घर में कैद होना ठीक है। जीवन को अब अपने नजरिये से देखिये, बच्चों का अपना भविष्य बनाने का समय है और उन्हें कुछ बनने के लिए ही तो हम ने इतनी मेहनत कि है, उन्हें समय से नाश्ता देना , स्कूल और कोचिंग भेजना तब जाकर उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया है। यह लक्ष्य सिर्फ उनका ही नहीं था हमारा भी एक सपना था कि हमारे बच्चे भविष्य में यह बनें ।
अपने जीवन में प्रवेश करने से लेकर आज तक क्या आपको समय मिला अपने बारे में सोचने का। आते ही बहू के दायित्वों को उठा लिया फिर धीरे धीरे बच्चे और उनका बचपन देखने में निकल गया जीवन। बच्चों के बड़े होने तक अपने सारे शौक भूल कर उनको आगे ले जाने कि फिक्र में ही तो जीते रहते हैं माँ-बाप। अब इस पड़ाव पर जब अपने माँ-बाप के साए से भी आप वंचित हो गए है और बच्चों के साथ से भी , तब क्या जीवन कि इतिश्री यही हो जाती है। नहीं अब शुरू होता है अपने जीवन का असली सफर , कोई चिंता नहीं। इसको पूरी तरह से एन्जॉय कीजिये। जिस साथ के लिए अब तक समय नहीं मिला , वह अवसर अब ही तो मिला है। कहीं भी घूमने निकल जाइये। शहर के अन्दर या शहर के बाहर। समय कम लगने लगेगा इन सब चीजों के लिए। अगर आप समर्थ तो फिर उसको दूसरे तरीके से एन्जॉय कीजिये। एक निश्चित ध्येय बनाइये कि हफ्ते में एक दिन हमें गरीबों कि बस्ती में जाना है और उनके लिए भी कुछ करना है। कभी उनके लिए बच्चों के पुराने कपडे निकाल लीजिये और जाकर उनको बाँट दीजिये। मौसम के अनुसार उनके लिए फल लेकर जा सकती हैं। आपको यह पता ही होगा कि यह सब चीजें इन बच्चों के लिए सपना होती हैं। रोटी के लिए वे माँ बाप सुबह से शाम तक बच्चों को छोड़ कर चले जाते हैं तब उन्हें शाम को खाना मिल पता है। कभी अनाथालयों में चले जाइए और देखिये कितने बच्चे दो प्यार भरे बोलों को तरस रहे हैं । उन्हें अपना दोस्त बना लीजिये, बाँट लीजिये उनके मन के भरे गुबार को। वे नहीं जानते कि प्यार क्या होता है? अपनों से तो वे महरूम होते ही हैं, दो मीठे बोल से भी महरूम होते हैं।
पति ऑफिस चले गए आप यदि कामकाजी नहीं हैं तो दिन भर क्या करेंगी? टीवी देखेंगी या फिर पड़ोस में चली जायेंगी, वह भी हर जगह उपलब्ध नहीं होता है। तब आप अपने आपको इस तरह से व्यस्त रख सकती हैं। मेरी शुरू से ही आदत है कि मेरे कार्य स्थल पर बाहर से बच्चे आते हैं , जितने दिन उनको काम करना हुआ किया और फिर चले गए।
अगर मुझे उनकी पसंद पता है तो मैं कभी कभी उनको घर से वाही चीज बनाकर लाती हूँ और खिलाती हूँ। अपने घर से दूर होस्टल में रहते हुए उन्हें घर कि याद आती है। जिसने अपनत्व रखा अच्छा है और नहीं तो और बच्चों कि तरह से ही वे भी चले गए कोई बात नहीं। पर आज मेरा इतना बड़ा परिवार है कि वे बच्चे कहीं भी रहें। विदेश में हैं तो और यहाँ हैं तो नेट से हमेशा जुड़े रहते हैं। आंटी मेरी शादी है आना जरूर है, आप नानी बन गई , दादी बन गई। क्या है यह सब है प्यार देने का पारितोषक। जिसने कभी मुझे अकेले रहने ही नहीं दिया है। इसके लिए उम्र आडे नहीं आती है आप बड़ों के साथ बड़े बन कर उनके हमराज बन जाइए और छोटों के साथ छोटे बनकर । आप अकेले कब हैं? दुनिया बहुत बड़ी है बस उसको अपनी नजर से देखना होगा।
देखिये जीवन कितना सुखमय बन जायेगा। लगेगा ही नहीं कि हम अकेले हैं।
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
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2 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया प्रेरणा दायक उनके लिए जो अपने आप के अकेले व असहाय समझते हैं
सही कहा आपने
बच्चे बडे होते हैं
और पंख फैलाकर उड जाते हैं
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