हिन्दू धर्म के अनुसार चैत्र मास की प्रतिपदा से नव वर्ष आरम्भ होता है और इसी दिन से हमारे नए पंचांग का निर्माण होता है और नवग्रहों की स्थिति को लक्षित किया जाता है।आज से विक्रम संवत्सर २०७१ का शुभारम्भ हो रहा है। वैसे मेरा कुछ अनुमान है कि हमारे देश का जो शासकीय वर्ष अप्रैल से आरम्भ होता है उसके पीछे हिंदी वर्ष की अवधारणा ही रही होगी।
इसको हमारी पीढ़ी जानती लेकिन क्या इसके बारे में हमारी नयी पीढ़ी जानती है। गहन ज्ञान न सही लेकिन बच्चों को इस बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। हम अंग्रेजी साल और अंग्रेजी महीनों को अपने जीवन में इतनी गहराई से उतार चुके हैं कि इसके बारे हम लोगों में भी कुछ लोग ऐसे है जिन्हें ज्ञात नहीं होता है कि हिंदी महीनों का क्रम क्या है? हमारी हिंदी तिथियों के बारे में भी पूरी जानकारी नहीं है। ग्रह और नक्षत्रों की बात तो बहुत दूर की होती है।
जब से हमारे देश में पब्लिक स्कूल की संस्कृति आरम्भ हो चुकी है , वहाँ तो हम अपनी संस्कृति की जानकारी की आशा कर ही नहीं सकते हैं। जब कि वो पब्लिक स्कूल हम लोग ही चला रहे हैं लेकिन व्यापार में तो वह सब प्रयोग किया जाता है जिससे लाभ हो और छवि प्रगतिशील होने की बन रही हो। हम अपनी छवि खुद ही धूमिल करने पर तुले हुए हैं। उन्हें तो हम बदल नहीं सकते हैं लेकिन घर के बड़े होने के नाते अगर हमारे बच्चों को ये ज्ञान नहीं है तो ये हम उनको दे सकते हैं। ये गर्व की बात है कि हम अपनी एक अलग पहचान भी रखते हैं। वैसे तो अब नेट पर सर्च करने से सब कुछ मिल जाता है लेकिन ऐसी जानकारी प्राप्त करने में बच्चे कितने उत्सुक हैं ये बात और है। फिर भी हमें इसकी जानकारी जरूर देनी चाहिए। हमें अपने से अपना परिचित होना बहुत जरूरी है।
इसको हमारी पीढ़ी जानती लेकिन क्या इसके बारे में हमारी नयी पीढ़ी जानती है। गहन ज्ञान न सही लेकिन बच्चों को इस बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। हम अंग्रेजी साल और अंग्रेजी महीनों को अपने जीवन में इतनी गहराई से उतार चुके हैं कि इसके बारे हम लोगों में भी कुछ लोग ऐसे है जिन्हें ज्ञात नहीं होता है कि हिंदी महीनों का क्रम क्या है? हमारी हिंदी तिथियों के बारे में भी पूरी जानकारी नहीं है। ग्रह और नक्षत्रों की बात तो बहुत दूर की होती है।
जब से हमारे देश में पब्लिक स्कूल की संस्कृति आरम्भ हो चुकी है , वहाँ तो हम अपनी संस्कृति की जानकारी की आशा कर ही नहीं सकते हैं। जब कि वो पब्लिक स्कूल हम लोग ही चला रहे हैं लेकिन व्यापार में तो वह सब प्रयोग किया जाता है जिससे लाभ हो और छवि प्रगतिशील होने की बन रही हो। हम अपनी छवि खुद ही धूमिल करने पर तुले हुए हैं। उन्हें तो हम बदल नहीं सकते हैं लेकिन घर के बड़े होने के नाते अगर हमारे बच्चों को ये ज्ञान नहीं है तो ये हम उनको दे सकते हैं। ये गर्व की बात है कि हम अपनी एक अलग पहचान भी रखते हैं। वैसे तो अब नेट पर सर्च करने से सब कुछ मिल जाता है लेकिन ऐसी जानकारी प्राप्त करने में बच्चे कितने उत्सुक हैं ये बात और है। फिर भी हमें इसकी जानकारी जरूर देनी चाहिए। हमें अपने से अपना परिचित होना बहुत जरूरी है।
2 टिप्पणियां:
sahmat hun aapse .vastav me nayi peedhi ko ye sab sanskaar preshit karna poorv peedhi ka kartavy hai .
सार्थक और विचारणीय बात ...
नव वर्ष कि बधाई और शुभ-कामनाएं ...
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