वाकई सपने तो सपने हैं और वह जरूरी नहीं की हमारी इच्छा के पूरे हो जाएँ . किसी के सपने अधूरे ही रहकर कुछ और करने की प्रेरणा देते रहते हैं। लेकिन एक मुकाम नहीं मिला तो क्या मंजिले और हैं, चलते रहिए - उनके टूटने से सब ख़त्म नहीं जाता . नए रास्ते और भी हैं जो उनसे बेहतर मंजिलों तक जाते हैं। आज सपनों से परिचय करा रही हैं - अर्चना चावजी .
सपने तो सब देखते हैं और पूरा करने की कोशिश भी करते हैं ...लेकिन मैंने सपने बदलने शुरू कर दिये उनके टूटते रहने पर ....सबसे पहले जब सपना देखा तो खुद को एक खिलाड़ी पाया ....लेकिन अच्छे कोच की सुविधा के अभाव में राज्य स्तर से आगे नहीं बढ पाई ..हालांकि खेल बदलती रही ,शायद लड़की होना भी एक वजह रही लेकिन घर से भरपूर प्रोत्साहन मिला...
पढ़ाई करते करते कब वकालात की पढ़ाई कर ली पता ही नहीं चला पिताजी वकील थे तो सोचा था वकील बन सकती हूँ पर कहाँ ....तो लड़की होने से लड़का मिलते ही शादी हो गई और घर आ गये हम नये .....यहाँ नया घर....नई भाषा...सपना देखा घर पर रहकर घर की मालकिन बनने का.... एक अच्छी पत्नी ..अच्छी माँ ..और गृहिणी बनने का ..वो भी ईश्वर को रास नहीं आया ..कुछ ऐसे हालात बने कि घर से बाहर नौकरी की तलाश करना जरूरी हो गया गुजर-बसर करने को ....
तो पहले बन गए टीचर ...यहाँ भुनाने की कोशिश की अपना सपना ढेर सारे बच्चों की माँ बनने का मौका मिला वार्डन के रूप में ......फ़िर तलाश हुई छत की और आ गये एक नये घर पर यहाँ आकर पहले और दूसरे सपने को पूरा करने की कोशिश करती रही ...
तो काम आज तक जारी है और खेल भी ...कभी हार मिलती है तो कभी जीत........
सपने तो अब भी देखती हूं ...सबको खुश रखने के ...सबके चेहरे पर मुस्कान लाने के ....पर जाने कब वो दिन आए जब कोई दुखी न हो....और मेरा सपना पूरा हो .....
सपने तो सब देखते हैं और पूरा करने की कोशिश भी करते हैं ...लेकिन मैंने सपने बदलने शुरू कर दिये उनके टूटते रहने पर ....सबसे पहले जब सपना देखा तो खुद को एक खिलाड़ी पाया ....लेकिन अच्छे कोच की सुविधा के अभाव में राज्य स्तर से आगे नहीं बढ पाई ..हालांकि खेल बदलती रही ,शायद लड़की होना भी एक वजह रही लेकिन घर से भरपूर प्रोत्साहन मिला...
पढ़ाई करते करते कब वकालात की पढ़ाई कर ली पता ही नहीं चला पिताजी वकील थे तो सोचा था वकील बन सकती हूँ पर कहाँ ....तो लड़की होने से लड़का मिलते ही शादी हो गई और घर आ गये हम नये .....यहाँ नया घर....नई भाषा...सपना देखा घर पर रहकर घर की मालकिन बनने का.... एक अच्छी पत्नी ..अच्छी माँ ..और गृहिणी बनने का ..वो भी ईश्वर को रास नहीं आया ..कुछ ऐसे हालात बने कि घर से बाहर नौकरी की तलाश करना जरूरी हो गया गुजर-बसर करने को ....
तो पहले बन गए टीचर ...यहाँ भुनाने की कोशिश की अपना सपना ढेर सारे बच्चों की माँ बनने का मौका मिला वार्डन के रूप में ......फ़िर तलाश हुई छत की और आ गये एक नये घर पर यहाँ आकर पहले और दूसरे सपने को पूरा करने की कोशिश करती रही ...
तो काम आज तक जारी है और खेल भी ...कभी हार मिलती है तो कभी जीत........
सपने तो अब भी देखती हूं ...सबको खुश रखने के ...सबके चेहरे पर मुस्कान लाने के ....पर जाने कब वो दिन आए जब कोई दुखी न हो....और मेरा सपना पूरा हो .....