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रविवार, 21 दिसंबर 2008

धर्म की आड़ में!

क्या इतने ऊपर जाकर भी नारी किसी की नजर में आज भी उपभोग की वस्तु बन कर रह रही है कि जब तक उसका मन चाहा उपभोग किया और जब ऊब गए तो जब चाहा छोड़ दिया। दूसरी औरत जो उसकी जिन्दगी में आ जाती है। उस पत्नी को कानूनी पत्नी का हक़ दिलाने के लिए सबसे आसन और त्वरित अस्त्र है ' इस्लाम धर्म' कबूल करके अपने सम्बन्ध पर वैधता की मुहर लगवा ली। न "तलाक़" जैसी प्रक्रिया में फंसने की जरूरत और न ही इन्तजार में सालों गुजारने की जहमत।

आप लोग समझ गए होंगे कि यह कोई नया किस्सा नहीं है लेकिन किसका कौन सा वाक्य जेहन में घुस कर बवंडर मचा दे यह कहा नहीं जा सकता है - यह किस्सा है हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्र मोहन उर्फ चाँद मोहम्मद के वाकये को लेकर यह सवाल उठा है।

वैवाहिक जीवन और विवाह संस्था हर धर्म में उतनी ही महत्वपूर्ण है, चाहे हिंदू धर्म हो या फिर इस्लाम। मौकापरस्ती में फायदा उठाने के लिए इस्लाम कुबूल कर लिया और नाम बदल कर निकाह कर लिया।

कभी उस धर्म में बहु विवाह कि अनुमति दिए जाने के साथ जुड़े दायित्वों को पढने कि कोशिश की शायद नहीं, न वे अपने ईमान से हिंदू रहे और न ही मुस्लिम बन पाये।
क्या वे नमाज अदा करेंगे?
क्या वे इदुल्फितर और मुहर्रम को मानेगे?
क्या उन्होंने इससे पहले शरीयत का अध्ययन किया है?
शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि वे इस धर्म को इसलिए अपनाएंगे। इस्लाम भी दूसरे विवाह कि अनुमति देने के साथ साथ पहली पत्नी के सारे 'हक' अदा करने कि बात करता हैं , न कि अपनी सुख और सुविधा के अनुसार पहली पत्नी और बच्चों को त्यागने की।
चंद्र मोहन उर्फ चाँद मोहम्मद का यह बयान कि पहली पत्नी और बच्चे अगर आए भी तो उनको भगा दूँगा। उनके मानसिक दिवालियेपन को दिखाता है। इस्लाम धर्म के जुड़े नैतिक मूल्यों के प्रति अनभिज्ञता को प्रदर्शित करता है। चाहे जो भी धर्म हो उसके नैतिक और सामजिक मूल्य एक ही होते है , उनमें फर्क नहीं होता। अन्याय का सभी में विरोध किया जाता है।
कोई धर्म और धर्माचार्य इसको धर्म सांगत नहीं कहेगा तो धर्म की आड़ में होने वाले इस खेल पर अंकुश लगना चाहिए। सिर्फ स्वार्थ के लिए धर्म परिवर्तन करके विवाह करना चाहें उन्हें धर्म अनुमति न दे। विवाह से पहले उन्हें कम से कम एक साल पहले धर्म को बदलकर उसके धार्मिक नियमों को पालन करते हुए आचरण करना चाहिए तभी उन्हें इस धर्म के नियमानुसार विवाह की अनुमति प्रदान की जाए। धर्म के नियमों का उल्लंघन करने पर उन्हें दण्डित किया जाए।

सामाजिक, धार्मिक और नैतिक मूल्य तथाकथित 'माननीयों' पर लागू नहीं होते । इनको भी क़ानून की हद में लाना होगा। स्वार्थ या फिर धन के लालच में उनका साथ देने वालों पर लानत है, जो एक धर्म की आड़ में अनैतिकता के इस व्यापार को हवा देते हैं.

3 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

नववर्ष की शुभकामनाएँ

Dev ने कहा…

First of all Wish u Very Happy New Year...

Achchha lekh laga...

Regards...

सुशांत सिंघल ने कहा…

रेखा जी,

IPC देश के समस्त नागरिकों पर लागू होती है, पर CPC नहीं होती - इसके पीछे जो वोट बैंक की मानसिकता छिपी है, वही हमारे देश में अनेकों बीमारियों की जड़ बनती जा रही है।

मैं किन्ही और रेखा श्रीवास्तव का ब्लॉग समझ कर गलती से आपके द्वारे चला आया, पर यहां जो कुछ देखा, पढ़ा, समझा - उसके बाद यहां से जाने का मन नहीं हुआ।

यदि फुरसत मिले तो कभी www.sushantsinghal.blogspot.com पर भी विज़िट करें। शायद आपको अपने ही विचारों की प्रतिध्वनि वहां सुनाई दे। आपके प्रोफाइल में आपके द्वारा हिन्दी हेतु किये जा रहे आपके प्रयासों के बारे में पढ़ कर बहुत प्रसन्नता एवं संतुष्टि हुई। आपका कोटिशः अभिनन्दन !

सुशान्त सिंहल