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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

तरवा चाट चमचा भये - चमचा बन भये ...............

           ये नेतन कि जातउ  न बड़ी खुशामद चाहत है, नेतन कि तारीफ के पुल बांधत रहौ धीरे धीरे गाँव से निकर के शहर और शहर  से निकर के दिल्ली पहुंचई जैहौ. जा में तनकौ शक या शुबहा नहीं.
                               एसइं  हमाए  गाँव के प्रधान जी के लड़का आवारा और निठल्ले हते, बिचरऊ  बड़े परेशान रहें. बाप की इज्जत मिट्टी में मिलाय रहे है. प्रधान जी के चम्चन ने प्रधान जी को जा सलाह दइ  - प्रधानजी काय को फिकर करत हो, इनका न तरवा चाटे कि आदत डार देओ. 
 "जासे का होई."
"समझत नईं हो, आज नेताजी के चम्चन के तरवा चाट है तो उ आपन संगे ले जैहै - काय के लाने अरे अपनी छवि बनान के लाने."
"हमें कछु समझ नहीं आत , तुमाई  जा गणित." 
" अरे शुरू तो करो, हमाए बाप जई कहत रहे कि तरवा चाटे सिंहांसन मिले. कछु दिन तरवा चाट  लेओ , कल जरूरै हाथ पकड़ बगल  में बिठैहै और बाके बाद साथ साथ ले जैहै. कछु दिनन में पक्के चमचा बन गए सोई पार्टी के काम देंन  लगहें  - बस सफेद कुरता पजामा बनवाय लेव और बन गए पक्के नेता."
"फिर का होय"
"लेओ अभऊ न समझे - अरे प्रधान जी दस सालन में तुमाव लड़का जीपन में घूमन लगहै और पचास चमचा बउके  हो जैहैं . फिर चुनाव लड़हैं   अपने ही घर से सो वाको को  हरा सकत है." 
"बात कछु कछु समझ में आत है." प्रधान जी कुछ समझने लगे थे.
"आत नहीं, अब आयई जाय - जामे भविष्य बन जैहै . एक की जगह चार ट्रेक्टर हौहे और चारऊ तरफ तुम्हरेई खेत . बेटा नेता भओ तो काहे को डर. लएँ बन्दूक हमऊ ऊके साथ घूमत रैहैं. "
"औ सुनो जो जा महिला विधेयक आ गयो तो भौजी बनही प्रधान और बहुरिया बनहै  पार्टी की मंत्री. पाँचों अँगुरी घी में और सिर कढ़ाई  में. "
"ऐ ननकउ  तुम्हाएं तो बड़ी अक्ल है, हम तो तुम्हें बुद्धूई  समझत ते. "
" प्रधान जी, सब तुमाई संगत कौ असर है, नईं तो ढोर चराउत रहे. अरे पाथर पीट पीट के सिल बन जात सो हमउ बन गए.' 

"ये बताव की ये ससुरऊ कर पैहैं की हमें सब्ज बाग़इ दिखात हौ. "
"पक्की बात कहत है -'इ नेता की जात चाहे जूता खाय या लात ' आपन घर का कौनौ कोना खाली न रहन देत. अरे बाग़ - बगीचा और वा फार्म हॉउस  तो बन है शहर में , दुई चार माकन होंहिं और एक दो तो दिल्ली मेंउ  हौहें. "
"अरे टिकट को दैहे इ  निठल्लन को ."
"बस तरवा चाटवो सीख लें , दो चार साल में टिकट न मिल जाय तो मूंछ मुड़ा दैहैं. "
"तौ देखो ये तरवा चाटवो तुमई सिखाव हमाई न सुन हैं."
"अरे चच्चा काय के लाने हैं हम, सब सिखा दैहैं औ भौजाईउ को टरेनिंग  दे लैहैं. "
"चल ननकउ  अब हमाई फिकर ख़त्म भाई - ये हमर खोटे सिक्का खरे बना देव."
 "अच्छा प्रधान जी, अब चलत हैं - लड़कन से बात कर लैहैं. "
"अरे सुन ननकउ , ये और बताय जाव कि  जब सबरे मतलब तुमाई भउजी प्रधान भईं  और बहुरिया मंत्री , लड़का बन गए चमचा तो हम का करहैं  . "
"लेओ - अब का बचौ , हम दोउ जने इतें चौपाल पे हुक्का गुड़गुड़ेंहैं औ हम तमाखू बने हैं औ तुम  खइयो . सब को दै दई जिम्मेवारी  और हम दोउ भए आजाद." 
                 हम दोउअन  को तो देश तभी आजाद हौहै, जब हमारी सरकार बन जैहै.  कबहूँ हम गाँव में , कबहूँ शहर में और कबहूँ दिल्ली में घूमहैं .

5 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर व्यंग्य।
आभार

Mithilesh dubey ने कहा…

अरे दीदी आप भोजपूरी में भी लिखती है , ये तो मुझे पता ही नहीं था , बहुत बढ़िया लगा ।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

मिथलेश भाई,

ये भोजपुरी नहीं है, ये तो बुन्देलखंडी है. हम वही की पैदाइश है सो अब याद कर कर के लिखना पड़ता है. पसंद आया यह जानकर ख़ुशी हुई.

rashmi ravija ने कहा…

"तरवा चाटे सिंहांसन मिले. कछु दिन तरवा चाट लेओ , कल जरूरै हाथ पकड़ बगल में बिठैहै और बाके बाद साथ साथ ले जैहै"....ये तो बड़े पते की बात कह दी आपने...
बिलकुल गाँव की सोंधी मिटटी लिए हुए है ये रचना...पर साथ में मारक व्यंग भी...बहुत खूब

Vinay Gupta ने कहा…

ekdum satya likha aur bundelkhandi bhi bilkul jabardast