सपने की बात करे तो फिर सपने अपने अपने और अलग अलग शब्दों में व्यक्त किये जाते हैं क्योंकि ये वह चीज है जो निजी होते हैं वह बात और ही की यही सपना किसी और आँखों में पलता हुआ मिल जाय तो उससे कितना महसूस होता है। कभी कई लोगों के सपनों में झाँका तो लगा की अरे ये ही तो मैंने भी देखा था और दूसरे में भी अपना ही अक्श दिखाई दे जाता है।
कभी किसी नवजात शिशु को देखा है ...गहरी नींद में भी अंगडाई लेते कितनी बार अधमुंदी पलकों में ही मुस्कुराता है , कभी जोर से हँसता भी है , तो कभी मुंह बिसरा कर रोना भी ... कहते हैं नवजात के सपने में बेमाता बात करती है बच्चे से , उसके साथ खेलती है , डरती है , गुदगुदाती है . हर आँख में सपना उस बचपन से ही पलने लगता है , जो बड़े होते खुली आँखों के सपने में बदलता है उस सपने को पूरे करने में हर जीवन की जद्दोजहद होती है .
आज अपने सपनों के साथ है -- वाणी शर्मा जी
कभी किसी नवजात शिशु को देखा है ...गहरी नींद में भी अंगडाई लेते कितनी बार अधमुंदी पलकों में ही मुस्कुराता है , कभी जोर से हँसता भी है , तो कभी मुंह बिसरा कर रोना भी ... कहते हैं नवजात के सपने में बेमाता बात करती है बच्चे से , उसके साथ खेलती है , डरती है , गुदगुदाती है . हर आँख में सपना उस बचपन से ही पलने लगता है , जो बड़े होते खुली आँखों के सपने में बदलता है उस सपने को पूरे करने में हर जीवन की जद्दोजहद होती है .
जीवन सिर्फ एक सपने पर नहीं रखता , एक पूरा हुआ तो दूसरा , एक पूरा नहीं
हुआ तो दूसरा सपना , समय के साथ सपने नए रुख लेते हैं ,नयी मंजिलों की राह
पर बढ़ते हैं . उम्र के इस मोड़ पर अब याद भी नहीं की बहुत छुटपन से क्या
सपने देखे थे नुशासनप्रिय नाना जी के सानिद्य में कल्याण पत्रिका पढने का
शौक जगा , या मजबूरी समझे क्योंकि उनके पास और कोई पत्रिका होती नहीं थी .
पत्रिका ने बचपन को आध्यात्मिकता के रंग में रंगा तो सोचा की सन्यासियों
जैसा ही जीवन बेहतर होता है . बचपन की ही सखी ब्रह्मकुमारी बनने की
प्रक्रिया या प्रशिक्षण से गुजर रही थी , तिसपर ब्रह्मकुमारियों की सफ़ेद
झक पोशाक और मीठी वाणी प्रभावित करती रही . मुजफ्फरपुर प्रवास में एक
दिन ब्रह्मकुमारी आश्रम में रहना पड़ा , शांत वातावरण , दीदी और दादी का
ममत्व और अपनापन बहुत भाया .सबको भाई बहन मानना और कहने तक तो ठीक था मगर
जब जाना कि मनोरंजन के लिए रेडियो पर फ़िल्मी गाने सुनना , फिल्मे देखना ,
धर्म से इतर अन्य साहित्य पढने की इज़ाज़त नहीं है , उन्हें सिर्फ धार्मिक
पुस्तक पढने या प्रवचन सुनने होते हैं , उनका ही प्रचार करना होता है , तो
ऐसे किसी संन्यास का भूत एक झटके से सर से उतर गया .
अगला सपना था इंजिनीअरिंग की पढ़ाई करने का , सपना ही रह गया , यही
कहना ठीक होगा कि शायद हमारी योग्यता ही नहीं थी . अविवाहित रहकर समाजसेवी
बनना , अनाथ बच्चों , विशेषकर लड़कियों को घर जैसा स्नेह और माहौल उपलब्ध
करने के साथ उनकी उचित शिक्षा का प्रबंध करना भी तरुणावस्था में देखा गया
एक सपना था . विवाह हुआ , अपने बच्चे हुए तो आर्थिक निर्भरता या बच्चों
की परवरिश दोनों में से एक को चुनते हुए शिक्षा पूर्ण कर व्याख्याता बनने
का सपना अपने घर और दो बच्चों से बढ़कर उनके सपने तक ही सीमित हो गया .
अब तक एकमात्र सपना जो पूर्ण हुआ, वह था बच्चों की अच्छी परवरिश और उनमे
सदगुणों का विकास .
इस तरह समय के साथ सपने बदलते रहे . बच्चे थोड़े बड़े हुए , कुछ अपने
बारे में सोचना शुरू किया, अपने नाम से जाने जाने का सपना जगा तो ब्लॉग
पर लिखना प्रारम्भ हुआ , पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ छपने से एक
कवियत्री या ब्लॉग लेखिका के रूप में यह सपना भी पूरा हुआ .
आज का अपना अगला सपना यही है कि अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा ,
आत्मनिर्भरता और सुरक्षित भविष्य के लक्ष्य के बीच भी अनाथ या अल्प आय
वर्ग की लड़कियों की उच्च शिक्षा में अपना योगदान , समाज में उपेक्षित
वृद्ध /वृद्धों के लिए कुछ किया जा सके . किस तरह पूरा होता है , समय
कहेगा !
10 टिप्पणियां:
ये ब्रहम कुमारी वाला सपना तो वाकई बहुत मुश्किल था :). बाकी कुछ पूरे हो गए और कुछ पूरे हो जायेंगे.बहुत है जीने के लिए ..नहीं?
Sab sapne pure hon- shubhkamnayen.
Brahmkumari ho jatin to blog bhi nahi likh pati :)
समय के सपने भी बदल ही जाते हैं..... खासकर महिलाओं के
शुभकामनायें
आपके लिए शुभेच्छा और शायद ये भी सच है...
सादर कहना चाहूंगी...
स्वप्न और आस,
मन में द्रवित अहसास !
टूटे तो वेदना का मौन,
अनगनित तरल उच्छ्वास !!
...वन्दना...
पल पल सपनों की बदलती परिभाषा
kuch sapne jo hoge apne ........... aise sshubhkamnaye
सच कहा शिखा , अब अधूरे रह जाने वाले सपनों का कोई मलाल ना रहा !
जिंदगी ने जो दिया , बहुत दिया !
ब्रह्मकुमारी बनना वाकई मुश्किल था , समीरजी ने आँखें खोल दी , ब्लॉग लिखना भी नहीं हो पाता :)
रेखा जी , मोनिकाजी , अंजू जी , नीलिमा जी , वंदना जी
आप सबका बहुत आभार !
वाकई ...सपनों का क्या है ...बचपन से ही यह सिलसिला शुरू हो जाता है ...जब जो चीज़ भा गयी...वही सपना बन गयी....और सपनों की यह लड़ी वक़्त के साथ लम्बी होती रही .....बढ़िया लगा लेख ....साभार !
एक टिप्पणी भेजें