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शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

कुछ नहीं रखा है?

                      "मैं बी ए कर रहा हूँ, आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग से सम्बन्ध रखता हूँ. सब लोग कह रहे हैं की 'यहाँ (भारत में) कुछ नहीं रखा है, बाहर निकल जाओ बहुत बहुत पैसा है.' आप बतलाइये मैं क्या करूँ?"


                            ये पत्र था एक लड़के का, जो करियर काउंसलर को लिखा गया था. ऐसे ही कितने युवा है, जो गुमराह किये जाते हैं. जिनकी शिक्षा का अभी आधार भी नहीं बना होता  है. जिन्हें व्यावसायिक शिक्षा का ज्ञान तक नहीं होता है और उन्हें सिर्फ ढेर से पैसे की चाह होती है या फिर उनको ऐसे ही लोग सब्ज बाग़ दिखा  कर दिग्भ्रमित कर देते हैं. इसमें इस युवा का भी दोष नहीं है क्योंकि सीमित साधन वाले माता पिता अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए बहुत क़तर ब्यौत करके खर्च पूरा करते हैं और बच्चे इस बात से अनभिज्ञ नहीं होते हैं. इस बात से उनको बहुत कष्ट होता है (सब को नहीं ) और वे जल्दी से जल्दी पैरों पर खड़े होकर बहुत सा पैसा कामना चाहते हैं. इसमें बुरा कुछ भी नहीं है किन्तु उसके लिए सही शिक्षा और सही मार्गदर्शन भी जरूरी है. 
                       'यहाँ कुछ नहीं रखा है." कहने वाले वे लोग होते हैं जो ऐसे युवाओं को विदेश का लालच देकर वहाँ बंधुआ मजदूर बनवा कर खुद कमीशन हड़प जाते हैं. उनके दिमाग में इस तरह की बात डालना उनके भविष्य को गर्त में डालना है. पैसा कमाने का शार्ट कट या तो अपराध की दुनियाँ में कदम रखवा  सकता है या फिर ऐसे ही लोगों के जाल में फँस कर अपने को बेच देने के बराबर होता है. अब तो हर क्षेत्र में आप चाहे कला, वाणिज्य या फिर विज्ञान स्नातक हों - करियर की इतनी शाखाये खुल रही हैं कि उसमें से  चुनाव आपकी रूचि पर निर्भर करता है. इस दिशा की ओर ले जाने वाले संस्थान अपने देश में भी हैं, जो आपको नौकरी के साथ तकनीकी या विशिष्ट शिक्षा के अवसर प्रदान कर रहे हैं. आप काम करते हुए भी अपने करियर को अपने रूचि के अनुसार संवार सकते हैं.. इग्नू जैसे संस्थान है जो विश्व स्तर पर अपनी शिक्षा के लिए मान्य है. 
                                    वह तो अच्छा हुआ की उसने करियर काउंसलर से सलाह ले ली और उसे सही दिशा निर्देश प्राप्त हो गया अन्यथा ये युवा आसमां में उड़ने का सपना लिए अपने पर तक कटवा बैठते हैं कि एक बार उड़ने के बाद फिर पैरों पर चलने के काबिल भी नहीं रहते . इस विषय में  मेरे अन्य ब्लॉग पर दी गयी पोस्ट इसका सत्य एवं ज्वलंत प्रमाण है.

विदेश में नौकरी : एक खूबसूरत धोखा !

16 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बिल्कुल सही कहा…………आजकल इसी भ्रम जाल मे युवा फ़ंस जाता है इससे बचने के लिये जरूरी है कि पेरेंट्स अपनी इच्छाओ पर काबू रखे और बच्चो को भी समझ दें ना कि गलत रास्ते के लिए प्रोत्साहित करें ये सिर्फ़ पेरेंट्स ही कर सकते हैं। बच्चो को सही दिशा और ज्ञान देना उन्ही की जिम्मेदारी है उसके बाद काउंसलर का नम्बर आता है।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दूर के ढोल सुहावने...सभी बच्चे जो बाहर नौकरी करने जाते हैं सुखी नहीं होते और न ही पैसे कमा पाते हैं...हमारी नज़र में सिर्फ वो ही नज़र आते हैं जो अच्छा कमाते खाते हैं...मैंने विदेशों में बहुत भारतीय ऐसे मिले जो यूरोप अमेरिका आस्ट्रेलिया इंग्लॅण्ड जैसे समृद्ध देशों में नौकरी पा कर भी पछता रहे हैं...

नीरज

shikha varshney ने कहा…

बिलकुल ठीक कह रही हैं आप.विदेशों का लालच दिशा भ्रमित कर देता है.सच्चाई जब तक उन्हें पता चलती है बहुत देर हो चुकी होती हैं.जरुरत है सही मार्गदर्शन की.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

नहीं वंदना ऐसे बात नहीं है, कई बार बच्चे दूसरों की बात बहुत सही मान लेते हैं. बच्चों की मानसिकता अलग अलग होती है. मेरे पारिवारिक मित्र है उनका बेटा बी टेक कर रहा हटा और उसकी संगति बिगड़ गयी. माँ बाप से सीधे बात ही न करे. कालेज में क्लास अटेंड न करे . तब वो मेरे पास आते की आप उसको समजैये वह आपको बहुत इज्जत देता है. मैंने हर हफ्ते जाती और उसकी पढ़ाई की प्रोग्रेस पूछती और ग्रेड बढ़ाने के लिए बोलती. उसकी काउंसलिंग करती . अब वह नौकरी करने लगा है.

ashish ने कहा…

हमारे देश का दुर्भाग्य है की ज्यादातर युवा दिग्भ्रमित है अपनी करियर के मामले में . कुछ माता पिता के कहने पर अपनी योग्यता और इच्छा के विपरीत गलत व्यवसाय में चले जाते है और बाद में पछताते है. येन केन पैसे कमाने की प्रवृति ही तो समाज में भ्रस्टाचार की वाहक है .हमारे देश में अब पारंपरिक व्यवसायों से हटकर बहुत सारे रस्ते खुल गए है , जरुरत है अपने रूचि और योग्यता के हिसाब से चुनने की . सटीक ब्लॉग्गिंग .

vandana gupta ने कहा…

रेखा जी,
मेरा मतलब था कि अगर पेरेंट्स शुरु से ही अपने बच्चों को सही दिशा प्रदान करते रहें सही और गलत समझाते रहें तो ये नौबत आये ही नही…………बच्चे तो होते ही कच्ची मिट्टी के हैं और उन्हे सही राह दिखाना सबसे पहले उन ही का काम होता है ………दूसरी बात गलत संगत मे भी तभी पडते है जब कहीं न कहीं कोई उपेक्षा या आकांक्षा होती है फिर चाहे घर से हो या बाहर से …………कारण तो अनेक हैं मगर निवारण की शुरुआत घर से ही हो सकती है ये है मेरे कहने का मतलब्।

Narendra Vyas ने कहा…

दूर के ढोल सुहावने...सभी बच्चे जो बाहर नौकरी करने जाते हैं सुखी नहीं होते और न ही पैसे कमा पाते हैं...हमारी नज़र में सिर्फ वो ही नज़र आते हैं ..यूरोप अमेरिका आस्ट्रेलिया इंग्लॅण्ड जैसे समृद्ध देशों में नौकरी पा कर भी पछता रहे हैं...

आशीष मिश्रा ने कहा…

यही तो बदकिस्मती है अपने देश की यहाँ के लोग सोचते हैं कि विदेश में पढ़ना और कमाना लाभप्रद है, ऊपर लिखे गये सभी टिप्पणीयों से सहमत

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज़रूएई है सही दिशा निर्देशन ...और यह भी सच है कि कभी कभी माता पिता की बात से ज्यादा दूसरों की बात समझ आती है ...और यदि कोई भेम में पड़ गया हो तो बहुत मुश्किल हो जाता है समझाना ...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

rekha di, kaash koi ek baar aisa rashta dikhata to sahi...:D
graduation ho gayee...........naukri dhundhte rah gaye.......lekin videsh jaane ka sapna........bhi nahi dekh paye...........kash aisa koi milta to kam se kam sapna to dekh lete........:)

mujhe nahi lagta aisa kuchh hota hai, aur agar hota hai to uski sankhya 100 me nahi 10000 me ek hogi...:)

aur wo ek aise hi hote hai, fasne ke layak...:D

unke liye sirf god bless kahenge..:)

तिलक राज कपूर ने कहा…

मिश्रित स्थिति है। इसमें तो कोई शक नहीं कि शिक्षा की दुकानें दुनिया भर में फैली हुई हैं जो डिग्री तो बॉंट रही हैं लेकिन किसी लायक नहीं बना रही हैं। ऐसे में स्थिति विशेष में औपचारिक डिग्रियो के पीछे भागने से बेहतर तो यही होगा कि रोजगार की तरफ बढ़ा जाये।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

अपने घर का सुख तो बाहर रह के ही समझ में आता है न? इसी तरह अपने देश के काम की कीमत भी बाहर जा के ही समझ में आती है. कई युवा हैं, जिन्हें लगता है कि उनकी योग्यता की सही कीमत नही मिल रही, या काम न मिलने पर जल्दी ही धैर्य खो देते हैं, ऐसे युवा ही बाहर जाने के बारे में सोचते हैं.

P.N. Subramanian ने कहा…

कुछ बच्चों के माता पिता इस स्थिति में नहीं होते की वे अपने लाडले को सही दिशा दिखा सकें. मुझे मालूम है एक लड़के को मान बाप ने कष्ट झेलते हुए अभियांत्रिकी में स्नातक बनवा दिया. उस लड़के को ऑस्ट्रेलिया जाने की चाहत थी जो पूरी नहीं हुई. अब मानसिक रूप से विक्षिप्त सा रह रहा है. भारत में काम तो मिला था परन्तु वह अपनी जिम्मेदारी नहीं संभाल पाया. खयालों में खोया रहता है.

मनोज कुमार ने कहा…

सही समय पर सही मार्गदर्शन ही इन युवाओं को सही रास्ते पर ला सकता है, वर्ना इनमें से अधिकांश तो बस तुरत ढेर सारा पैसा कमा लेना चाहते हैं।

निर्मला कपिला ने कहा…

अपसे पूरी तरह सहम्त हूँ। मगर झांसे मे वही आते हैं जो वहाँ तो झाडू मरने को भी तयार हो जाते हैं यहाँ साधारण काम करना इज्जत के खिलाफ समझते है। यहाँ बहुत कुछ है अगर कोई इनका पथ प्रदर्शन करने वाला हो। धन्यवाद।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये सही है की अगर सही जानकारी न हो तो विदेश में नौकरी के नाम पर ठग लेते हैं लोग .... सहमत हूँ आपकी बात से .. जरुरत है सही मार्गदर्शन की ...