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मंगलवार, 22 जनवरी 2013

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                     ये प्रश्न सिर्फ मेरे मन में ही उठा है या और भी लोगों के मन में उठा होगा ये तो मैं नहीं जानती लेकिन अपने समाज और युवाओं के बढते हुए आधुनिकता के दायरे में आकर वे उन बातों को बेकार की बात समझने लगे हैं ,जिन्हें ये दकियानूसी समाज सदियो से पालता  चला आ रहा है। 
                    आज के लडके और लड़कियाँ 'लिव इन रिलेशन ' को सहज मानने लगे हैं और सिर्फ वही क्यों ? अब तो हमारा क़ानून भी इसको स्वीकार करने में नहीं हिचक रहा है। उसके बाद जब तक एक दूसरे को झेल सके झेला और फिर उस रिश्ते को छोड़ने पर 'ब्रेक अप ' का नाम देकर आगे बढ़ लिए . दोनों के लिए फिर से नए विकल्प खुले होते हैं। कहीं कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता है सब कुछ सामान्य होता है। फिर यही लोग घर वालों की मर्जी से शादी करके अपने नए घर बसा कर रहने लगते हैं। 
                   इस समाज में अगर एक लड़की बलात्कार का शिकार हो जाती है तो उस पीड़िता को  समाज में  हेय दृष्टि से देखा जाता है जब कि उसमें कहीं भी वह दोषी नहीं होती है . वास्तव में इस काम के लिए दोषी लोगों को तो समाज सहज ही क्षमा करके भूल भी जाता है और वे अपने घर के लिए या तो पहले से एक लड़की ला चुके होते हैं या फिर इसी समाज के लोग उनके लिए अपनी लड़की लेकर खड़े होते हैं। इसके पीछे कौन सी सोच है? इस बात को हम आज तक समझ नहीं पाए हैं।
                    और उस पीडिता को कोई भी सामान्य रूप से विवाहिता बना कर अपने जीवन में लेने की बात सोच नहीं सकता है (वैसे अपवाद इसके भी मिल जाए हैं। ) आखिर इस हादसे में उस लड़की का गुनाह क्या होता है ? और क्यों उसको इसकी सजा मिलती है? वैसे तो अगर इस बात को गहरे से देखें तो सब कुछ सामने है कि  हमारे समाज में अब विवाह-तलाक-विवाह को हम स्वीकार करने लगे हैं . हमारी सोच इतनी तो प्रगतिशील हो चुकी है। हम विधवा विवाह को भी समाज में स्वीकार करने लगे हैं लेकिन फिर भी इस पीडिता में ऐसा कौन सा दोष आ जाता है कि  हम परित्यक्ता से विवाह की बात , विधवा से विवाह की बात तो स्वीकार कर रहे हैं  , उसमें भी वह लड़की किसी और के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत कर चुकी होती है भले ही उसकी परिणति दुखांत रही हो   हम उस लड़की को स्वीकार करते हुए देखे जा रहे हैं। लेकिन एक ऐसी लड़की जो न तो वैवाहिक जीवन जी चुकी होती है और न ही वह मर्जी से इस काम में शामिल होती है फिर भी वह इतनी बड़ी गुनाहगार होती है कि कोई भी सामान्य परिवार उसको बहू के रूप में स्वीकार करने का साहस करते  नहीं देखा सकता है। 
                एक बलात्कारी सामान्य जीवन जी सकता है और समाज में वही सम्मान भी पा  लेता है। लेकिन एक पीड़िता  उसके दंश को जीवन भर सहने के लिए मजबूर होती है। मैं अपने से और आप सभी से इस बारे में सोचने और विचार करने के लिए कह रही हूँ कि एक परित्यक्ता  या विधवा से विवाह करने में और एक पीड़िता से विवाह करने में क्या फर्क है? दामिनी के साथ हुए अमानवीय हादसे के बाद पूरे देश में युवा लोग उसके लिए न्याय की गुहार के लिए खड़े हैं और दूसरे लोग उसमें दोष निकाल  रहे हैं या फिर लड़कियों के लिए नए आचार संहिता को तैयार करने की बात कर रहे हैं। उस घटना के बाद देश में ऐसी घटनाएँ बंद नहीं हुई बल्कि और बढ़ गयी हैं या कहें बढ़ नहीं गयीं है बल्कि पुलिस की सक्रियता से सामने आने शुरू हो गये है। अब सवाल हमारा अपने से है और युवा पीढी से है कि  क्या वह ऐसी पीडिता से विवाह करने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगे। वे न्याय के लिए लड़ रहे हैं लेकिन इस अन्याय का शिकार लड़कियाँ क्या जीवन भर अभिशप्त जीवन जीने के लिए मजबूर रहेंगी। समाज इस दिशा में भी सोचे - ये नहीं कि वे पीडिता हैं तो उन मासूम बच्चियों को कोई चार बच्चों का बाप सिर्फ इस लिए विवाह करने को तैयार हो जाता है क्योंकि  उसको एक जवान लड़की मिल जायेगी और उसके चार बच्चों को पालने  के लिए एक आया भी। एक तो वह वैसे भी अभिशप्त और दूसरे उसको जीवन एक नयी सजा के रूप में सामने आ जाता है। अब इस समाज को इसा दिशा में भी सोचना होगा कि  इन्हें एक सामान्य जीवन देने की दिशा में भी काम करना चाहिए . पीडिता को रहत देने वाले इस काम को भी करने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। 
                   इस विषय में आप सबके विचार आमंत्रित हैं और सुझाव भी कि ऐसा क्यों नहीं सोचा गया है या क्यों नहीं सोचा जा सकता है ?

15 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत संवेदन शील मुद्दे को उठाया है आपने जो सच में विचारणीय है मैं भी खुद लिविंग इन रिलेशनशिप को भारतीय संस्कृति पर धब्बा मानती हूँ कहाँ जा रहा है हमारा देश इसकी सभ्यता, पश्चिम का अंधानुसरण है बस अपने को मार्डन कहकर खुश होते हैं ये नहीं सोचते की तुम क्या खो रहे हो एक तरफ तो मार्डन कहते हैं दूसरी और रेप की पीडिता को हेय द्रष्टि से देखते हैं जैसे इसमें उसी का दोष हो ,इस विषय पर हमें गंभीरता से सोचना होगा ,सर्व प्रथम हम स्त्रियों को घर से ही ये शिक्षा ,संस्कार अपने बच्चों में डालने होंगे ताकि आने वाला वक़्त सुधरे बहुत बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन आलेख के लिए

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत कुछ बदलाव लाने की जरूरत है हमारे समाज में मगर सारे बदलाव एकदम से नहीं आसकते सब कुछ धीरे-धीरे ही बदलेगा , वो भी यदि समाज के सारे युवा एक जुट होकर किसी एक विषय पर सोचेंगे और उसके प्रति लड़ेंगे। अभी तो सबसे पहली प्राथमिकता मेरी नज़र में कानून व्यवस्था में बदलाव अर्थात सख्ती लाने की है यदि यह होगया तो संभव है बहुत सी समस्याएँ स्वतः ही सुलझ जायें। क्यूंकि पीड़ित लड़की का विवाह होना या ना होना तो बाद की बात है पहले उसे एक समान्य जीवन में लौटने और बेखोफ़ जीने का मौका तो मिले और तभी संभव हो सकेगा जब कानून सख्त और ईमानदार बनेगा।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

लिव इन रिलेशन ....अभी उस तबके तक सीमित है जो बच्चे अपने शहरों को छोड़ कर बड़े शहरों का रुख करते है, साथ साथ पढ़ना और साथ साथ नौकरी करना और साथ साथ ही रहना ....ये सब ज्यादातर साथ साथ नौकरी करने वालो में अधिक प्रचलित है | ऐसा चलन एक नए समाज को उत्पन्न कर रहा है जो कि सबके लिए घातक है और इस तरह के रिलेशन में साथ रहने वाले बच्चे मानसिक तोर पर बहुत कमज़ोर पाए जा रहें हैं |

मैंने अपने दायरे में (business famlies mein ) अभी तक ऐसा कोई केस नहीं देखा कि बच्चे ऐसे किसी रिलेशन में बंधे हो |हो सकता है मेरी ये सोच गलत हो ...पर मेरे करीब १०० परिवार ऐसे है जिनके बच्चे उनके साथ है या शादी के बाद अपने परिवार के साथ अलग हुए हो |

और एक बलात्कारी को उसके घर वाले ही सबसे पहले ओटते हैं, उन्हें अपना बच्चा सही और बलत्कारी लड़की अधिक दोषी लगती है,जबकि ये सोच बहुत गलत है |

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

समाज में कालांतर से ही कुछ बातें अपवाद स्वरुप लोगों के मानसिकता में घर किये बैठे हैं | जैसे जात-पात , ऊँच - नीच, लड़का - लड़की , विधवा , परित्यक्ता आदि | पर धीरे - धीरे ये धाराएँ टूटने लगे हैं ,गाँव से गुजरते हुए शहरों तक लोगों की सोंच नयी उड़ान लेने लगी , और जो बंदिशें थीं सोच की , उसमे दरारें पड़ने लगीं | जिससे उम्मीद की किरणे कुछ हल लेकर आई | कुछ लकीरों को तोडने के क्रम में बहुत से सवालों को और भी रौशनी में ला गयी | बदलाव वास्तव में हुए हैं और ग्रामीण शहरी दोनों क्षेत्रों में हुए हैं , जिनमे विवाह से पूर्व एक छत के नीचे लड़के - लड़की का साथ रहना और कई बार तो दो लोग साथ रह कर कुछ महीनों सालों बाद अलग होकर अपनी अलग दुनिया बसाते देखे गए हैं | ये बात साक्ष्य पर कह रही | ग्रामीण क्षेत्रों में भी " लिव इन रिलेशन " और नहीं चलने पर "ब्रेक अप " का नाम दे अपने - अपने रास्ते चल दे रहे आज की पीढ़ी | विचारों में क्रांतिकारी प्रगति का ही नतीजा है विधवा का पुनर्विवाह, तलाकशुदा का फिरसे घर का बसाना | और सभी जानते हैं जहाँ ज्यादा दकियानूसी विचार और पुरातन पंथी हो , वहां कोई नयी बात जल्द गले नहीं उतरती लोगों के | विधवा विवाह , परित्यक्ता का विवाह ये सभी मामलों में लड़के लड़की के साथ परिवार की सहमति ही मायने और वजन रखती है | जब धीरे धीरे बात परिवार से संशोधित होकर समाज तक आती है ,लोग दबी जुबान से कुछ दिन तक दुहराते हैं फिर भूल कर सबकुछ सामान्य चलने लगता है , और ऐसा ही उठाया गया एक का कदम कई के मंजिल बन जाते हैं | तो फिर उस लड़की को सभी की स्वीकृति और सहानुभूति क्यों नहीं मिलती जिसके साथ बलात्कार जैसा घिनौना हरकत किया जाता है , जिसमे उसकी लेशमात्र भी दोष न हो फिर यहाँ पर कैसे पक्षपात ? और क्यूँ ? ये समाज उसे गन्दी निगाह से क्यों देखता है वो कल तक किसी की बेटी, बहन ,पत्नी ,मन होती है ,पर बलात्कार जैसे नाम जुड़ जाने पर वो सबसे बड़ी गुनाहगार बनकर घर-परिवार और समाज के कटघरे में सजा के लिए खड़ी कर दी जाती है ,या तो उसे तन सुन कर आत्महत्या ही रास्ता नज़र आता है या जीवनभर के लिए कमरी में बंद हो जाती है | उसके सामने यही सवाल दुहराता है समाज कौन थामेगा उसका हाथ ? कौन उसे जीवनभर साथ रखने को तैयार होगा पूरे सम्मान के साथ | क्योंकि वो एक जूठन हो जाती है | क्या विधवा ,परित्यक्ता औरत पवित्र ही रहती है | कई विवाहित स्त्री - पुरुष अपने जीवनसाथी को बताये बिना कई- कई के साथ शारीरिक सम्बन्ध तक बना बैठते हैं | फिर वैसे हालत में उनके मन में अवहेलना वाली बात नहीं आती क्योंकि यहाँ भी सम्बन्ध सोच और मन का होता है | मन जिसे एक बार स्वीकार कर ले उसे नहीं झूठा करार दे सकता है | इसी बात को यदि समाज के युवा पीढ़ी मन से सकारात्मक होकर सोचे तो ऐसी विचारों को समाज में फिर एक क्रांतिकारी परिवर्तन में लाया जा सकता है | बलात्कार पीड़ित लड़की भी सामान्य लड़की सी जीवन बीता सकती है | क्योंकि जब एक विधवा का दामन थामा जा सकता है , किसी के साथ रह कर उसे छोड़ कर अपनी पवित्रता भुला कर फिरसे घर बसाया जा सकता है प्यार और सम्मान के साथ , तो फिर बलात्कार से पीड़ित लड़की को क्यों नहीं समाज में सम्मान दिया जा सकता है | बस जरुरत है इस बात को यथार्थ रूप में जामा दिया जाये, और ये तभी संभव है जब आज की युवा पीढ़ी के साथ समाज भी अपनी दृष्टिकोण बदले |

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

"live in relation" ka samarthan nahi kiya ja sakta.. bhartiya samaj ke liye ye sambandh kahin se bhi behtar nahi hai...

balatkaar se peedit mahila ko samaj me uchit rehabilation dene ki jarurat hai....

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

'बलात्कार'से --नारी का जो अपमान होता है उसे भुलाना बहुत कठिन हो जाता है.लड़की का कोई दोष नहीं पर सब कुछ उसी पर बीतता है.
नारी मात्र के प्रति हमारे यहाँ के लोगों की मानसिकता साल दर साल मंचित होती है -
स्त्री के नाक-कान काटते योद्धाओं की जयकार !
उसके रक्त बहते तन की भयंकर पीड़ा से आनंदित-रोमांचित भीड़!
घायल स्त्री को 'यातुधानी' कह कर क्रूर कृत्य को जस्टीफ़ाई करना.
अब भी तो टोनही या डायन कह कर औरतों को जला दिया जाता या पत्थरो से मार डाला जाता है
शताब्दियाँ साक्षी हैं इस लीला की कभी कहीं से आपत्ति उठी ?
स्त्री को कोई भी दोष लगा दे तो निकाल दो घर से, सुयश के भागी बनोगे !
धर्म-शास्त्रों का मत -औरत है, अवगुन आठ सदा उर रहहीं -सतत ताड़ना की अधिकारी!

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

लिव इन रिलेशनशिप आज से नही पुराने ज़माने से हैं यह बात अलग हैं पहले कोई इक्का - दुक्का केस
होता था परन्तु अब इसे व्यापक स्तर पर देखा जा सकता हैं . कोई भी परिवार इस रिश्ते को मान्यता नही देता हैं
घर से दूर दराज़ नौकरी करने निकले लड़के -लडकियां अपनी शारीरिक मानसिक जरूरतों के लिये
इस तरह के रिश्तो को स्वीकार करती हैं , और भूल जाते हैं कि आने वाले समय में इसका क्या बुरा असर उनके भविष्य पर पड़ेगा , भौतिकवाद के इस युग में
सिर्फ आज को जीने वाले युवा ही इस तरह का रिश्ता मानते हैं कई स्थानों पर माँ- बाबा जानते भी नही कि उनके बच्चे किसी के साथ ऐसे रिश्ते मेंबंधे हैं
देहरादून जैसे स्थान पर भी बाहर से पढने के लिए आये , नौकरी के लिय आये कई युवा ऐसे रिश्ते में हैं जब उनके घर से कोई भी आता हैं तो कुछ दिन के लिए
उनका पार्टनर दूसरी जगह शिफ्ट कर जाता हैं , विदेश नौकरी के लिए गये बच्चे अक्सर इस तरह के रिश्ते में देखे गये हैं परन्तु मेरे हिसाब से इस तरह के रिश्ते होना
सही नही हैं सिर्फ मानसिक रूप से जुड़ना भी कितना पीड़ा देता हैं तो शारीरिक रूप से भी जुड़ जाना और भी गलत हैं . इस रिश्ते से उत्पन्न बच्चो का कोई अपना
नही होता , बलात्कार एक कोढ़ की तरह हैं . लोग चाहे इस घटना को भूल जाते हैं परन्तु उस स्त्री का शरीर और मन घुलता रहता हैं कोई मान सम्मान नही देता . गलती किसी की भी हो परन्तु अपराध बोध स्त्री के मन में ही पलता हैं , अनैतिक संबंधो का होना एक समाज को पतन की तरफ ले जाता हैं जरुरत आज तन- मन के संयम , और दृढ़ता की हैं साथ ही समाज को अपनी सोच बदलने की .

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

यह विचार मेरे मन में भी कई बार आया है कि ऐसा क्‍या हो जाता है,जो हम पीड़िता को स्‍वीकार कर नहीं पाते हैं। लेकिन समाज की मानसिकता धीरे-धीरे ही बदलेगी।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

मैंने अपने आलेख में न तो लिव इन रिलेशन के विषय को लिया है और ही उसकी वकालत कर रही हूँ . मेरा आशय था कि हमारे समाज में यह कहीं कहीं अब धीरे धीरे होने लगा है लेकिन हम उसको पचा लेते हैं मैं किसी विशेष परिवार या फिर उसके समाज में स्थापित होने की बात तो बिलकुल नहीं कर रही हूँ। मेरा आशय सिर्फ इतना है कि बलात्कार से पीड़ित व्यक्ति के एक सामान्य जीवन जीने के लिए समुचित माहौल और व्यक्ति के मिलने के विषय में पहल करने की है। पूरा समाज उस लड़की को न्याय दिलाने के लिए एक है चाहे युवा हों या प्रोढ़ हों या बुजुर्ग - उन सबमें से कोई अगर ऐसी लड़की जो जीवित हो और उसको सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार देने की बात पर पहल कोई करेगा . युवा उसे जीवनसाथी बनाने के लिए या बुजुर्ग अपने परिवार की बहू बनाने के लिए इतने ही उत्साह से तैयार रहेंगे?
मैं सभी से इसी बारे में विचार मांग रही हूँ।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

सार्थक सामयिक आलेख
Anju (Anu) Chaudhary जी ने कहा …

लिव इन रिलेशन ....अभी उस तबके तक सीमित है जो बच्चे अपने शहरों को छोड़ कर बड़े शहरों का रुख करते है, साथ साथ पढ़ना और साथ साथ नौकरी करना और साथ साथ ही रहना ....ये सब ज्यादातर साथ साथ नौकरी करने वालो में अधिक प्रचलित है | ऐसा चलन एक नए समाज को उत्पन्न कर रहा है जो कि सबके लिए घातक है ( बिलकुल सही है ) और इस तरह के रिलेशन में साथ रहने वाले बच्चे मानसिक तोर पर बहुत कमज़ोर पाए जा रहें हैं |


मैसूर में मुझे एक ऐसे ही *लिव इन रिलेशन* में रहने वाले को देखने का मौका मिला ..... जो जानकारी मिली उसके आधार पर मैं बता रही हूँ .... एक लड़की को किराये पर घर लेना था और एक लड़के को भी किराये पर घर लेना था .... दोनों का ऑफिस एक था .... घर भी एक ही मोहल्ले में लेना था ...... महंगाई भी बहुत है .... दोनों परिचित थे ... इसलिए एक साथ घर ले लिये ......... जब लम्बे समय तक का साथ हो और दुःख-सुख एक साथ काटना हो तो प्यार हो जाना सम्भव है ........ और रोक-टोक करने वाला भी तो नहीं होता .... लेकिन वे बच्चें मानसिक तौर पर कमजोर नहीं लगे ..........

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पीड़िता का दोष न होते हुये भी सारा जीवन एक अपराध बोध के साथ उसे जीना पड़ता है .... आपने बहुत सार्थक मुद्दा उठाया है .... समाज में और लोगों की सोच मेन परिवर्तन आ रहा है .... उम्मीद है की इस ओर भी सकारात्मक सोच बदलेगी ।

P.N. Subramanian ने कहा…

पश्चिम का अंधानुकरण भारतीय समाज के लिए कोढ़ है. बलात्कार से पीड़ित महिलाओं को एक सम्माननीय जीवन जीने का हक मिलना ही चाहिये जो धीरे धीरे ही हो पायेगा.

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया विश्लेषण ..