जीवन में आरम्भ से ही व्यक्ति किसी न किसी गतिविधि से जुड़ा रहता है. उसका जीवन सक्रिय रहता है उनसे जुड़े कार्यों में. बचपन से शिक्षा, युवा होने पर करियर फिर नौकरी, परिवार और उससे जुड़ी जिम्मेदारियों को पूरा करते करते वह रिटायर्मेंट की उम्र तक आ जाता है.
अगर हम सोचें तो ये रिटायर्मेंट क्या है? जीवन में आने वाला एक अहसास और इस अहसास को हर व्यक्ति पाने ढंग से स्वीकार करता है और करना भी चाहिए लेकिन ये जीवन या जीवन की सक्रियता का अंत तो बिल्कुल नहीं है. हाँ वर्षों से चली आ रही एक जीवन शैली में परिवर्तन का समय होता है और जीवन के इस पड़ाव पर इसका आना भी जरूरी है.
मेरे पड़ोसी रिटायर्मेंट के एक साल पहले से ही - रोज उलटी गिनती दुहराने लगे
अब इतने दिन रह गए है.
बस अब इतने महीने रह हैं.
अब इसके बाद मैं क्या करूंगा?
अब दिन कैसे काटेंगे?
मैं तो फिर खाना और सोने के अलावा कुछ भी नहीं करने वाला आदि आदि .
और आखिर वह दिन भी आ गया. सुबह से ही बड़े मायूस दिख रहे थे. शाम को उनकी ऑफिस से विदाई हुई और घर आये. घर में भी अच्छा माहौल बनाया गया था. वह दिन तो गुजार गया लेकिन दूसरे दिन दिन चढ़े तक सोते रहे और फिर धीरे धीरे अपने सुबह के काम निपटाए 'अब कौन कहीं जाना है?' , 'अब कौन सी जल्दी है?' बस इसी तरह के जुमले सुनने को मिलते रहे.
रिटायर्मेंट थक कर बिस्तर पड़े रहने का नाम नहीं है. न ही व्यक्ति की क्रियाशीलता की इतिश्री है. यह एक ऐसा अवसर है जब कि आप पर थोपे गए बंधनों से मुक्ति का समय है. जिसमें बांध कर आप जीवन के ३५- ४० वर्ष गुजारे हैं. अब आपका अपनी इच्छा से समय गुजरने का समय आ गया है - ये सोच कर शेष जीवन एन्जॉय कीजिये. वक्त काटना नहीं पड़ता है अपितु पता नहीं चलता है कि कहाँ गुजार गया?
नौकरी करने वाले हर व्यक्ति को एक निश्चित उम्र पर रिटायर्मेंट तो मिलेगा ही, उसको आप किस दृष्टि से देखते हैं, यह आपके ऊपर निर्भर करता है. यदि आप इस उम्र तक सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं तब तो बहुत ही अच्छा है आप भाग्यशाली हैं. यदि नहीं मुक्त हुए हैं तब भी ये अच्छा समय है जब कि आप अपना सम्पूर्ण समय बिना किसी तनाव के इस कार्य में लगा सकते हैं. वक्त को काटने और न काटने के लिए परेशान नहीं होना चाहिए. यदि आप नौकरी के चलते कहीं आने और जाने के लिए सायं नहीं निकल पाए हैं तो अब उस समय का सदुपयोग कीजिये. अपने रिश्तेदारों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाइये. अपने हमउम्र लोगों के साथ समय गुजरिये, दूसरे लोगों के सुख दुःख में शरीक होइए. इस नियमबद्ध जीवन को जो आप अब त़क जीते आ रहे हैं दूसरे नियमों और कार्यों में समाहित कीजिये.
आप को अब वक्त मिला है कि आप अपनी पत्नी के साथ वक्त गुजरिये. विवाह से अब तक जीवन की भागदौड़ में जो साथ बिताने वाले पलों की कमी थी उसे अब पूरा कीजिये. उनके साथ शहर से बाहर दर्शनीय स्थलो तीर्थस्थलों और पहाड़ी स्थलों पर जाकर अपना समय बिताकर यादगार क्षणों को संजो सकते हैं. यह मत सोचिये कि अब आप थक चुके हैं या किसी काबिल नहीं रहे. इसका रिटायर्मेंट से कोई सम्बन्ध नहीं है. ये तो अपनी सोच होती है. साठ साल की उम्र में भी अपने को युवा महसूस करते हुए लोगों को देखा जा सकता है. ये भी तो सोचिये कि नौकरी के अतिरिक्त कार्य करने वाले लोग कभी रिटायर्मेंट की बात सोच ही नहीं पाते हैं और होते भी नहीं है व्यापारी, वकील, डॉक्टर जब तक ये सक्रिय रहते हैं कभी आराम या थकने की बात सोचते ही नहीं है. क्या ये ६० वर्ष के नहीं होते हैं होते हैं लेकिन उन्हें रिटायर्मेंट जैसा अहसास नहीं होता क्योंकि उनका कार्य सतत चलने वाला होता है और उम्र बढ़ने के साथ साथ ही उसमें परिपक्वता आती है और वे दूसरों का मार्गदर्शन करने में लग जाते हैं. उनके पास वक्त नहीं होता.
मेरे पड़ोसी की तरह नहीं कि बहुत नौकरी कर ली अब तो आराम और सिर्फ आराम ही करना है. इस सिद्धान्त पर चलने वाले खाना और सोना ही शेष जीवन का लक्ष्य बना कर रहने लगते हैं. एक अच्छे खासे सक्रिय शरीर को निष्क्रिय बनाने के लिए पर्याप्त है. इस अहसास को अपनी सोच से सकारात्मक स्वरूप प्रदान कीजिये यही जीवन कि अनिवार्यता है.
मंगलवार, 13 जुलाई 2010
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