अनुशासन और सख्ती माँ बाप अपने बच्चों को संस्कारित और सुसंस्कृत बनाने के लिए रखना चाहते हैं और ये अपने बच्चों के हित में ही करते हैं. लेकिन ये अनुशासन और सख्ती अगर बच्चों को इतना डरपोक बना दे कि वे अपनी बात भी माँ बाप से न कह पायें तो कहना ही पड़ेगा ऐसा भी क्या अनुशासन?
वह अनुशासन जो माँ - बाप और बच्चों के बीच में एक दीवार खड़ी कर दे कोई अच्छे परिणाम तो नहीं दे सकती है. सख्त होने की तख्ती जो घर में लगा दी जाती है वो दूरियां बढ़ाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करती है. कभी कभी बच्चों को इससे बचने के लिए छोटी उम्र में ही कुछ ऐसे निर्णय लेने को मजबूर कर देते हैं जिसकी राह आसान नहीं होती है. कभी कभी इसका ही परिणाम होता है कि बच्चे अंतर्मुखी हो जाते हैं और अपने में घुटते हुए वे अपने जीवन के बारे में गलत निर्णय भी ले डालते हैं.
मिसेज सरन खुद एक सरकारी स्कूल कि टीचर और उनके पति सरकारी मुलाजिम. मिसेज सरन एकदम कड़क स्वभाव की - उनकी इच्छा के बगैर पत्ता भी न हिले. घर का वातावरण वैसा ही. उस दबे घुटे माहौल में बच्चे न तो बगावत कर सकते थे और न अपनी मर्जी जाहिर कर सकते थे. फिर वे ऐसा कृत्य कर डालते हैं कि हमें दोष इस अनुचित और सख्त अनुशासन को ही देना पड़ता है. मिसेज सरन का बेटा बाहर नौकरी कर रहा था और वह किसी लड़की से शादी करना चाहता था पर माँ के नियम कायदों में ये संभव ही नहीं था. इस लिए उसने वही शादी करके घर बसा लिया. घर आता रहा और शादी के लिए बहाने बनाता रहा लेकिन कहाँ तक? एक दिन माँ ने लड़की देखी और शादी पक्की कर दी. उसने कह दिया कि मेरे पास अभी समय नहीं है लेकिन नहीं उसको शादी के लिए मजबूर कर दिया और उसने क्या सोचा ? ये तो मुझे नहीं पता. उसने यहाँ पर माँ की तय की हुई लड़की से शादी की और फिर उसे माँ के पास छोड़ कर चला गया. लड़की भी उसके स्तर से पढ़ी लिखी और आत्मनिर्भर थी. एक दो महीने तक तो उसने इन्तजार किया और फिर एक दिन वह फ़ोन करके उसके पास के लिए निकल पड़ी. लड़के ने एक नया मकान किराये पर लिया और कह दिया कि मैं तो अभी तक पेइंग गेस्ट की तरह रह रहा था सो कोई भी सामान नहीं है. एक हफ्ते वह कभी रात में रहता और कभी नाईट शिफ्ट की बात कह कर गोल हो जाता. फिर एक दिन उसको शक हो गया और उसने भी पति के फ़ोन को रात में ट्रेस किया तो उसकी पत्नी ने उठाया. उसने उसके बारे में पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया कि वह उसकी पत्नी है और एक बच्चा भी है. वह लोग ३ साल से शादीशुदा जिन्दगी बिता रहे हैं.
एक दिन उसकी पहली पत्नी ने दूसरी का साथ दिया और उसको अपने यहाँ बुला लिया. ऑफिस से सीधे घर पहुंचा तो घर में ताला लगा था. वह हार कर अपने घर आ गया और वहाँ पर उसको दोनों एक साथ मिली तो हैरान. लेकिन इस बात का कोई हल नहीं था. वह सिर्फ अपनी माँ के भय से ये अपराध कर बैठा (हो सकता है कि आपको ये अविश्वसनीय लगे लेकिन ये सौ प्रतिशत सच घटना है.) शायद उसको दूसरी पत्नी को पति का दोष कम समझ आया हो. वह वहाँ से वापस आ गयी और उसने इस धोखे के लिए अपने सास ससुर के खिलाफ रिपोर्ट की और वे दोनों हवालात पहुँच गए. इस जगह मिसेज सरन को अपने अति अनुशासन और सख्ती की सजा मिली. हर व्यक्ति ने मिसेज सरन को दोष दिया.
ऐसे ही मिस्टर खन्ना सेना में काम करते करते इतने सख्त अनुशासन वाले कि उनके घर आने पर बच्चे अपने कमरे से बाहर न निकले और डायनिंग टेबल पर सिर झुका कर खाना खाकर चुपचाप उठ जाएँ. अपनी इच्छा भी व्यक्त करें तो माँ के माध्यम से और माँ पर भी कोई कम भय न था. वह भी बात करने में डरती थी. अपनी सोसायटी में मिस्टर खन्ना सीना ठोक कर कहते कि मेरे घर में देखो मैं रहूँ न रहूँ मेरी मर्जी के बिना कोई भी काम हो ही नहीं सकता है. मैं घर वालों को अधिक छूट नहीं देता. शायद सांस भी उनकी मर्जी से ली और छोड़ी जाती थी. उनके घर से बाहर होने पर घर वाले ज्यादा सुखी अनुभव करते . उनका बड़ा बेटा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था. उससे छोटा इंजीनियर था. सबसे छोटी बेटी. उन्होंने बेटी की शादी कर दी और बड़े बेटे से कहा तो उसने मना कर दिया कि पहले पीजी करूंगा उसके बाद , छोटे की कर लें. जब कि उसकी बात कुछ और ही थी. छोटे बेटे से मेरी सहेली की बेटी की शादी हुई. और जगहों की तरह यहाँ भी चर्चा की बड़े भाई ने शादी क्यों नहीं की?
इसके कुछ वर्षों तक तो वह छुट्टियों में घर आ जाता लेकिन कुछ वर्षों बाद उसने पूरे घर से संपर्क तोड़ लिया और एक बंगाली लड़की से शादी कर ली. बस वह अपने घर में बता नहीं पाया और इस कठोर अनुशासन ने उसको इतनी हिम्मत न दी कि वह अपने मन की बात घर वालों से कह पाता . इस अति के कारण एक बेटे ने अपने माँ बाप को छोड़ दिया या फिर माँ बाप ने अपने बेटे को खो दिया. अब वर्षों से वह कोई भी सम्बन्ध नहीं रखता और उन लोगों को ये भी पता नहीं है कि वह कहाँ है?
ये दो घटनाएँ आज के युग में अतिश्योक्ति लग सकती हैं लेकिन ये इतने करीब घटी हैं कि लगता है कि कभी कभी ये अनुशासन या सख्ती व्यक्ति के लिए प्रतिष्ठा का या फिर मानसिक असुरक्षा से बचने का कारण भी हो सकता है. मेरे विचार से तो सख्त अनुशासन के साथ बच्चों के साथ कुछ पल मित्र कि तरह भी गुजारने चाहिए जिससे कि वे अपने मन की बात अपने माँ बाप से बाँट तो सकें. बच्चों पर अपनी इच्छा थोपना आज की मांग नहीं है बल्कि अगर आप चाहते हैं कि बच्चे आपकी भावनाओं कि क़द्र करें तो आप भी उनके विचारों और भावनाओं कि क़द्र करने में पीछे न रहें. जिससे कि वो खाई तो न बने कि वे अपराधी बन जाएँ या फिर अपने कृत्य से आप स्वयं कोई अनजाने में गलती कर बैठे जिससे आप वाकिफ नहीं हैं. आप अपना जीवन अपने अनुसार जी चुके हैं तो उनके जीवन के बारे में उनके निर्णय को जानकर ही उनका भविष्य निश्चित करें.
सिर्फ अनुशासन ही नहीं बल्कि इसके दूसरे पक्ष पर भी अगर नजर डालें तो जरूरत से ज्यादा छूट या फिर बच्चों कि हर बात को आँख बंद कर स्वीकार कर लेना भी उनके ही नहीं बल्कि खुद माँ बाप के जीवन के लिए अभिशाप बन जाते हैं. अपनी संतान को हर माँ बाप प्यार करते हैं और उन्हें एक अच्छा जीवन ही देना चाहते हैं. फिर भी किशोर से लेकर तरुण होने तक उन पर नजर रखना बहुत जरूरी होता है . आप साये की तरह से उनके पीछे नहीं लगे रह सकते हैं फिर भी ये आप को पता होना चाहिए कि उनकी संगति कैसी है? वह किन दोस्तों के साथ उठता बैठता है और उसकी गतिविधियाँ क्या हैं? बस सही दिशा में लग जाने के बाद आप बेफिक्र हो सकते हैं.
इधर आए दिन अखबारों में युवकों के अपने ही दोस्तों के द्वारा मार दिए जाने की खबरे मिल रही हैं और इसमें ही एक परिचित के बेटे की हत्या भी शामिल हो गयी. बाद में पता चल गया कि उसके दोस्तों ने ही उसकी हत्या कर दी क्योंकि वह अपने पैसे को लेकर उनको अपमानित करता रहता था. बस इतनी सी बात ने उसके परिवार को चिराग से वंचित कर दिया.
प्यार अनुशासन, और उन पर नजर रखने का काम एक साथ करना चाहिए ताकि बाद में ऐसा कुछ न घटे कि आप खुद को ही दोषी मामने लगें.
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
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