जीवन में अनुभव से धारणा बनती है और धीरे धीरे जब ये अनुभव बार बार होते जाते हैं तो ये धारणाएं मन में अपनी गहरी पैठ बना लेती हैं। बस ऐसा ही कुछ नए साल के पहले दिन से जुड़े मेरे मन के पूर्वाग्रह भी हैं और यह ऐसे ही नहीं बने हैं बल्कि पुख्ता सबूत के साथ बने हैं।
जैसा और जिस तरह से आप इस दिन को गुजारते हैं या कभी कभी ईश्वर भी अपनी कलाकारी देखा कर गुजारने के लिए मजबूर कर देता हैं , मेरे अपने अनुभव के अनुसार वह क्रम पूरे वर्ष बार बार होता है। वैसे तो अपना अपना अनुभव है। इसी के तहत मैं इस दिन वर्षों से यानि जब से कलम गंभीरता के साथ संभाली है लिखती जरूर हूँ। ताकि ये संरचनात्मक काम पूरे वर्ष चलता ही रहे।
कहा न कभी ईश्वर अपनी मर्जी से इस काम में व्यवधान डाल देता है तो फिर वह काम भी कभीकभी पूरे साल होता है। वर्ष १९७७ की बात याद आती है - उस दिन मेरे मकान मालिक का स्वर्गवास हुआ था और वे हमें बहुत प्रिय थे। हम बच्चों को अपने बच्चों की तरह ही प्यार करते थे। उस दिन हम लोग बहुत रोये थे। फिर उस साल मेरी दादी भी नहीं रहीं। पूरे साल ऐसे ही हालत पैदा होते रहे कि मैं अपने बारे में जानती हूँ कि पूरे वर्ष ही रोते रोते गुजर गया।
कभी भी इस दिन को बेकार के कामों में नहीं गुजारा और न ही कोई गलत काम किया है। कुछ वर्षों से तो संकल्प दिवस के रूप में मना लेती हूँ। इस बार भी संकल्प किया है कि किसी संस्था से जुड़ कर सेवा कार्य करूंगी। वैसे भी करती ही हूँ लेकिन अब एक साथ मिल जाएगा तो दिशा निश्चित हो जायेगी कि घर से निकल कर वहां तक उसके लिए यह काम करना है।
सभी को प्रथम दिवस ऐसा ही कुछ करने का संकल्प करना चाहिए। बहुत फलित होता है।
जैसा और जिस तरह से आप इस दिन को गुजारते हैं या कभी कभी ईश्वर भी अपनी कलाकारी देखा कर गुजारने के लिए मजबूर कर देता हैं , मेरे अपने अनुभव के अनुसार वह क्रम पूरे वर्ष बार बार होता है। वैसे तो अपना अपना अनुभव है। इसी के तहत मैं इस दिन वर्षों से यानि जब से कलम गंभीरता के साथ संभाली है लिखती जरूर हूँ। ताकि ये संरचनात्मक काम पूरे वर्ष चलता ही रहे।
कहा न कभी ईश्वर अपनी मर्जी से इस काम में व्यवधान डाल देता है तो फिर वह काम भी कभीकभी पूरे साल होता है। वर्ष १९७७ की बात याद आती है - उस दिन मेरे मकान मालिक का स्वर्गवास हुआ था और वे हमें बहुत प्रिय थे। हम बच्चों को अपने बच्चों की तरह ही प्यार करते थे। उस दिन हम लोग बहुत रोये थे। फिर उस साल मेरी दादी भी नहीं रहीं। पूरे साल ऐसे ही हालत पैदा होते रहे कि मैं अपने बारे में जानती हूँ कि पूरे वर्ष ही रोते रोते गुजर गया।
कभी भी इस दिन को बेकार के कामों में नहीं गुजारा और न ही कोई गलत काम किया है। कुछ वर्षों से तो संकल्प दिवस के रूप में मना लेती हूँ। इस बार भी संकल्प किया है कि किसी संस्था से जुड़ कर सेवा कार्य करूंगी। वैसे भी करती ही हूँ लेकिन अब एक साथ मिल जाएगा तो दिशा निश्चित हो जायेगी कि घर से निकल कर वहां तक उसके लिए यह काम करना है।
सभी को प्रथम दिवस ऐसा ही कुछ करने का संकल्प करना चाहिए। बहुत फलित होता है।