शनिवार, 23 अक्तूबर 2010
करवा चौथ : एक सार्थक परिवर्तन !
करवा चौथ का सम्बन्ध हमेशा पति और पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनने वाला होता है. इसमें एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण के भाव को देखा जा सकता है. ये तो सदियों से चली आने वाली परंपरा है और कालांतर में इसमें सुधार भी होने लगा है और आज की पीढ़ी के तार्किक विचारों से कहीं सहमत भी होना पड़ता है क्योंकि उनके तर्क हमेशा निरर्थक तो नहीं होते हैं.
हमारी पड़ोसन उम्र के साथ साथ डायबिटीज और अन्य रोगों से ग्रस्त हैं , जिसके चलते उनको लम्बे समय तक खाली पेट रहना घातक हो सकता है. वह तो सदैव से बगैर पानी पिए ही इस व्रत को करती रहीं हैं. इस बार उनकी बहू ने बिना पानी डाले सिर्फ दूध की चाय उनको दी कि अब आपका पानी का संकल्प तो ख़त्म नहीं होता इसको आप पी लीजिये. फल भी ले सकती हैं. उनके इस तर्क को कि पति की दीर्घायु के लिए होता है और मैं नहीं चाहती कि ये खंडित हो. उनकी बहू का तर्क था कि आप देखिये मेरे माँ ने जीवन भर बिना पानी के व्रत रखा और मेरे पापा नहीं रहे बतलाइए इसमें कहाँ से ये बात सिद्ध होती है. अपनी निष्ठां को मत तोडिये लेकिन उसके लिए पूर्वाग्रह भी मत पालिए. सब कुछ वैसा ही चलता है कुछ नहीं बदलता है. कोई पति तो अपनी पत्नी के लिए व्रत नहीं रखता है तब भी पतिनियाँ उनसे अधिक जीती हुई मिलती हैं.
इस दिशा में नई पीढ़ी के विचार बहुत सार्थक परिवर्तन वाले मिलने लगे हैं. दोनों कामकाजी हैं तो फिर दोनों ही आपस में मिलकर तैयारी कर लेते हैं और पत्नी का पूरा पूरा ख्याल भी रखते हैं. पहले तो पत्नी दिन भर व्रत रखी और फिर ढेरों पकवान बनने में लगी रहती थी और चाँद निकलने तक तैयार ही नहीं हो पाती थी और फिर बस किसी तरह से तैयार होकर पूजा कर ली. फिर व्रत तोड़ कर सबको खाना भी खिलाना होता था. अब अगर अकेले होते हैं तो पति पत्नी कहीं भी बाहर जाकर खाना खा लेते हैं और अगर घर में भी हैं तो पति पूरा सहयोग खाने में भी करता है और तैयारी में भी. बल्कि अब तो ये कहिये की पत्नी के साथ पति ने भी व्रत रखना शुरू कर दिया है और उनकी दलील भी अच्छी है की अगर ये मेरे लिए भूखा रहकर व्रत कर सकती है तो क्या हम एक दिन भूखे नहीं रह सकते हैं. इससे पत्नी को भी मनोबल मिलता है और उनमें एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव भी बढ़ता है. आज की युवा पीढ़ी में ५० प्रतिशत युवा इसके समर्थक मिलते हैं.
पहले तो ये होता था की शादी के बाद ही करवा चौथ का व्रत किया जाता था किन्तु मुझे एक घटना याद है कि मेरे साथ एक इंजीनियर काम करता था और उसका अफेयर मेरे घर के पास रहने वाली लड़की से था. शादी के लिए संघर्ष चल रहा था क्योंकि वे दोनों ही अलग अलग जाति के थे. लड़की ने करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन अपने घर में तो नहीं बताया , उसने लड़की को शाम को मेरे घर आने के लिए बोल दिया और खुद भी आ गया. मेरे साथ उसने करवा चौथ की पूजा की और फिर व्रत तोड़ कर अपने घर चली गयी. ईश्वर की कृपा हुई और उनकी शादी हो गयी और अब दोनों बहुत ही सुखपूर्वक रह रहे हैं. ये तो भाव है, जिससे जुड़ चुका है उसके लिए ही मंगल कामना के लिए व्रत किया जा सकता है.
अगर हम पुरुषों को नारी उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराते हैं तो वे इतने निर्मल ह्रदय भी हैं कि वे अपनी पत्नी के लिए खुद भी त्याग करने में पीछे नहीं रहते हैं. मैं इस आज की पीढ़ी को सलाम करती हूँ जो कि एक दूसरे के लिए इतना सोचती है और इस दिशा में यह बहुत अच्छी सोच है. उनको पुरुष के अहंकार से दूर भी कर रही है. वह अब पत्नी को बराबरी का दर्जा देकर उसके हर कष्ट में खुद भी कष्ट उठाने के लिए तैयार रहता है. उम्मीद की जा सकती है कि आने वाली ये युवा पीढ़ी सदियों पुराने पूर्वाग्रह से मुक्त होकर एक खुशहाल जीवन व्यतीत करेगी. मेरी यही कामना है कि पाती पत्नी इसी तरह से एक दूसरे के प्रति भाव रखते हुए एक दूसरे का सम्मान करें. करवाचौथ का ये बदलता हुआ स्वरूप एक अच्छा सन्देश देता है.
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15 टिप्पणियां:
अच्छा आलेख . आपको करवा चौथ की अग्रिम शुभकामनाये
जब हमारी बीबी यह व्रत रखती हे, तो सब मिल कर उस की मदद करते हे, फ़िर शाम चार बजे के करीब, उसे पानी ओर चाय पिला देते हे, फ़िर हम सब (मै ओर बच्चे शाम को उसे पहा्डी पर ले जाते हे ताकि सब से पहले वो चंद्र्मा को देखे ओर जल्द ही खाना भी खाये, अरे हां हम सब टी वी ओर नेट पर समय भी देख लेते हे कि कब चांद निकले, ओर वो भी बिना चांद देखे कुछ नही खाती, कई बार कहा मत रखो... लेकिन उसे मजा आता हे. धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
आपने बिल्कुल सही कहा आज परिवर्तन आ रहा है और बेहद सुखद है जो इस ओर इंगित करता है कि आने वाला वक्त खुशहाल होगा…………अब मिथक टूटने लगे हैं मगर साथ ही परम्परा का निर्वाह भी हो रहा है मगर एक समझदारी के साथ्।
रेखा जी सही कहा आपने। परिवर्तन तो प्रकृ्ति का नियम भी है फिर भला रिती रिवाज़ों मे क्यों न हो।ाउर आजकल तो कई लडके भी व्रत रखने लगे हैं। वैसे भी हम लोग हर व्रत को खाने पीने से जोड लेते हैं जब कि व्रत तो कुछ अच्छे संकल्पों का लेना चाहिये। बीमारी मे शरीर को भूखे रह कर कष्ट देना भी तो शास्त्रों मे पाप गिना जाता है। हमे तो शुरू से आदत है कि चाँद निकलने तक पानी भी नही देना मगर अपने बच्चों को हम शाम को दूध आदि दे देते हैं। इसमे कोई बुराई नही। मेरी बेटी को प्रेगनेन्सी मे उसके पति ने मना कर दिया था व्रत रखने से मगर उसने फिर भी रखा मगर शाम को दूध पी लिया। अच्छा विषय है जागरुक करने के लिये। शुभकामनायें अग्रिम बधाई।
इस नयी पीढ़ी की नयी सोच को नमन.
जागरुक करने के लियेअच्छा विषय है|
राज जी,
हम अभी पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं हो पाए हैं और वैसे ही व्रत करते हैं जैसे अब तक करते आये हैं. अगर भविष्य में कभी जरूरत पड़ी तो इसको बदल भी सकते हैं . लेकिन नई पीढ़ी के लिए स्वागत है, उन्हें अपने परम्पराओं के साथ उसको परिष्कृत करने का पूरा अधिकार है और फिर अब जीवन शैली और कार्य क्षेत्र भी तो बढ़ चुका है. वैसे सबका सहयोग संबल देता है.
निर्मला जी,
अपने सही कहा है, इसमें बच्चों को अपने अनुसार और हमें भी समय के अनुसार सुधार लेन कि जरूरत है. जो परिवर्तन आ रहा है सुखद है. हाँ बहुत सारे लड़के रख रहे हैं इस व्रत को. सुनकर अच्छा लगता है.
आपने बहुत ठीक कहा समय केसाथ परिवर्तन हो जाने से कुछ बुरा नहीं होता |हमलोग व्रत रखते हें पर अन्य धर्म वाले नहीं |
पर मेरा सोच है अपनी आस्था बनाए रखने में क्या नुक्सान है |जहां परिवर्तन आवश्यक हो कर ही लेना चाहिए क्यूंकि हर समय एकसा नही रहता |
अच्छीपोस्ट के लिए बधाई
आशा
आपका आलेख बहुत अच्छा लगा ! जहां धार्मिक व्रत उपवास आत्म संयम और आस्था के पतीक हैं वहीं करवा चौथ के व्रत के साथ भावनात्मक पहलू भी जुड़ा होता है ! प्रेम की भावनाएं पति पत्नी दोनों की ही एक दूसरे से जुडी होती हैं ! इसीलिये आधुनिक दम्पत्तियों में ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो मन में अद्भुत सुख और संतोष की सृष्टि करते हैं ! इस तरह एक दूसरे के लिये समर्पित पति पत्नियों को हार्दिक बधाइयां और आशार्वाद ! व्रत उपवास से जुडी मान्यताओं को जहाँ तक निभा सकें अवश्य निभाएं लेकिन स्वास्थ्य की अनदेखी कर लकीर पीटने में कोई समझदारी नहीं !
सच कहा रेखा जी ! अच्छा लगता है ये बदलाव .
Di ko karwachouth ki subhkamnayen........:)
चलो कहीं तो किसी ने तो पुरुषों की तारीफ़ में कुछ कहा. वर्ना हम सब मिलकर उन्हीं में खोट निकलते हैं. अच्छी बात, अच्छी सोच,पुरूषों को बधाई
नहीं रचना, हर पुरुष और हमेशा बुरा हो ऐसा नहीं है. नहीं तो हम पोस्ट लिखने वाले इस हाल में न होते कि अच्छी अच्छी पोस्ट लिख पाते . पूछ प्रतिशत तो ख़राब होते है लेकिन सभी नहीं. आज का व्रत सभी कर रहे हैं कुछ अच्छे पुरुषों कि वजह से ही न.
परिवर्तन हमेशा सकारात्मक होता है।
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