औरों की बात तो मैं नहीं जानती लेकिन अपने बारे में निश्चित तौर पर कह सकती हूँ कि किसी भी रचना की नींव कभी एक दिन में नहीं रखी जाती है. हाँ कविता के विषय में जरूर कहा जा सकता है कि किसी घटना या एक वाकया ने अंतर को छुआ और रच गयी लेकिन कोई भी गद्य लेख कई घटनाओं और अनुभवों का संयोजन होती है. जिसमें सिर्फ और सिर्फ सत्य का आधार मान कर किसी सन्देश का संचार होता है. अपने स्वभाव और अपने कार्य के अनुरुप तमाम लोगों के अनुभव और उन सबके साम्य को मिलते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुँच कर ही किसी नई रचना का सृजन होता है.
पिछले दिनों मेरे एक लेख पर हमारे कुछ शुभचिंतक ब्लोगर साथियों ने कुछ और ही सोच लिया और फिर किसी और बन्धु को फोन करके बताया कि मैंने उनको इंगित करते हुए लेख लिखा है. वे मेरे अन्तरंग थे और उन्होंने सीधे मुझसे संपर्क कर ये बात पूछी और वह काफी समझदार और निकट सम्बन्ध रखने वाले थे , जिनसे कोई बात कहनी होती है तो मैं उन्हें भला बुरा भी कह देने का हक रखती हूँ. ये बात उन्हें पता थी तभी मुझसे पूछ डाला. मैंने उन्हें विस्तार से समझ दिया और उसे उस आधार को भी बता दिया जिससे प्रेरित होकर मैंने उसे लिखा था.
सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक विषयों पर लिखना मेरी रूचि में शामिल है और ये सभी विषय मेरी रूचि के साथ साथ मेरे अध्ययन में भी शामिल रहने वाले विषय हें. इन विषयों पर मैं सिर्फ ब्लोगर बनने के बाद ही नहीं लिख रही हूँ बल्कि इन पर मैं पत्र - पत्रिकाओं में भी लिखती रही हूँ. इसलिए किसी के लेखन को व्यक्ति विशेष से जोड़ कर देखना गलत है. कितने संयोग होते हें जो आपस में मिल जाते हें और कितने लोगों की जीवन चर्या भी मिल जाती है लेकिन इसका आशय यह बिल्कुल भी नहीं है कि वह किसी विशेष से ही सम्बंधित हो. इस लिए एक रचना को सिर्फ रचना की दृष्टि से ही पढ़ा जाय न कि उसके तार जहाँ आपको सही लगे वहाँ जोड़ कर देख लें. ये बात सिर्फ मेरे लेखन की ही बात नहीं है बल्कि औरों के साथ भी होती है. अरे हम सब बुद्धिजीवी है तो उसकी गरिमा का तो ख्याल रखना चाहिए.
7 टिप्पणियां:
आपका कहना बिल्कुल सही है मगर लोग अपनी कुंठित सोच के कारण सिर्फ़ उतना ही देखते हैं जितना देखना चाहते हैं । सोच को विस्तृत नही करते।
आप किसी की बात को दिल पे ना ले ...लगन से बस अपना काम करती जाए दीदी
हम समाज से प्रभावित होकर ही लिखते हैं, कभी कभी साम्यता मिल ही जाती है।
हम समाज से प्रभावित होकर ही लिखते हैं, कभी कभी साम्यता मिल ही जाती है।
हाँ अजित जी , आपका कहना सही है, लेकिन इस साम्य को लोग प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने में लग जाते हैं . यही कारण है कि मैं बहुत सीमित दायरे तक ही जा पाती हूँ.
रेखा जी श्रीवास्तव ,ब्लोगिये जो सोच लेन सो कम .सामूहिक घोषणा किया करें ब्लॉग पोस्ट पर यह आलेख किसी व्यक्ति विशेष का प्रोजेक्शन नहीं है कहीं साम्य दिखे तो उसे इत्तिफाक (इत्तेफाक )समझे , . जन्म अष्टमी की बधाई एक साथ क़ुबूल करें .सादर -वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
ram ram bhai
http://veerubhai1947.blogspot.com/
पूर्व में भी रेखा जी मैंने इस पोस्ट पर टिपण्णी की थी संभवतया स्पैम बोक्स में गई .पुन :क्या अब पोस्ट से पहले यह डिसक्लेमर लगाया जाए ,इस पोस्ट का किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है ,फिर भी किसी को कोई साम्य दिखलाई दे ,इसे इत्तेफाक समझा जाए .साइंस ब्लोगर पर आपके प्रति -जैविकी आलेख पर क्षेपक का इंतज़ार है . .कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 11 अगस्त 2012
Shoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approachhttp://veerubhai1947.blogspot.com/
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