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सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

अधूरे सपनों की कसक (8)

                 अपनी बात कहने का सबका अपना अलग अंदाज होता है और वो ही उसके व्यक्तित्व और सोच को दर्शाती है। रश्मि प्रभा जी का अंदाज मुझे बहुत पसंद आता है .  उनके हर उत्तर में एक दर्शन छिपा रहता है और हो भी क्यों न? वे पन्त जी के सानिंध्य में पली बढ़ी हैं तो उसका ही प्रभाव है उनका छायावादी होना . इस दर्शन से उसका अर्थ निकालने का काम हमारा ही है। आज  की कड़ी रश्मि प्रभा जी के नाम --



अधूरे के साथ पूरा सपना -

सपना ! कितना अपना,कितना सलोना होता है .... कई सपने समय के फंदे में भगतसिंह की तरह बेवक्त खत्म हो जाते हैं - दुःख होता है,पर अनुभवों की कई पगडंडियाँ,कई शाखें - अनगिनत सपनों के साथ यह मानने पर विवश करती है और सच भी है कि यदि कुछ सपनों के टूटने का दुःख न हो,तो स्वभाव के कुछ पहलू सशक्त नहीं हो पाते . और सशक्त रास्तों के सपने मन को सुकून देते हैं कि जो हुआ अच्छा हुआ .... 
हुबहू कई सपने पन्नों पर उतरने से मना करते हैं,इसलिए नहीं कि कोई डर है या झिझक....बल्कि इसलिए कि सच का मूल्य भीड़ में हल्का हो जाता है...सारी तपस्या हास्यास्पद बना दी जाती है . मैंने अपरोक्ष से जो सत्य कहा है,उसे समझदार,अनुभवी लोग समझेंगे .

19 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बिल्कुल समझ सकते हैं रश्मि जी ……… ना कहकर भी बहुत कुछ कह दिया ।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत सही ढंग से आपने अपनी बात को समझा दिया

Archana Chaoji ने कहा…

अधूरे के साथ पूरा सपना..
आपने पकड़ रखा है बखूबी दामन अपना...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

जी बिल्कुल..
रश्मि दी के बाद करने का अपना एक अलग ही अंदाज है.. उनसे बात करो तो फिर बात बंद करने का मन ही नहीं होता..

shikha varshney ने कहा…

ठीक ही कह रही हैं.

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सच का मूल्य भीड़ में हल्का हो जाता है...सारी भावनाएँ हास्यास्पद बना दी जाती हैं

बस यही बातें हैं जो बहुत कुछ कहने से रोकती हैं...इससे बढ़कर कसक कोई नहीं| बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सही कहा रश्मि जी आप ने... ...

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |

Sadhana Vaid ने कहा…

बिलकुल सच कह रही हैं आप ! आपकी बातें आँखों के रास्ते मन मस्तिष्क पर उतर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं ! सार्थक पोस्ट के लिये आभार रश्मिजी !

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

सब कुछ तो कहा भी नहीं जा सकता -इतना भी काफ़ी है !

Asha Lata Saxena ने कहा…

रश्मी जी का लेखन बहुत भावुक कर जाता है |
आशा

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

कई सपने समय के फंदे में भगतसिंह की तरह बेवक्त खत्म हो जाते हैं -

sab kuchh to kah diya di ne.. bahut sach... !!

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

सारी तपस्या हास्यास्पद बना दी जाती है .....मुझे भी कई बार ऐसा ही लगता है।

सदा ने कहा…

हुबहू कई सपने पन्नों पर उतरने से मना करते हैं,इसलिए नहीं कि कोई डर है या झिझक....बल्कि इसलिए कि सच का मूल्य भीड़ में हल्का हो जाता है...
बिल्‍कुल सच कहा है आपने ...
सादर

वाणी गीत ने कहा…

सच्ची !

Saras ने कहा…

वाकई रश्मिजी.....कितने कम शब्द...कितनी गहन बात !!!

Saras ने कहा…

वाकई रश्मिजी.....कितने कम शब्द...कितनी गहन बात !!!

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

Kabhi kabhi unkaha bhi kah jaate hain kuch lafz ....... jeevan hain sapne bhi hain na ............shubh kamnaye

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

Kabhi kabhi unkaha bhi kah jaate hain kuch lafz ....... jeevan hain sapne bhi hain na ............shubh kamnaye