मेरी कल की पोस्ट "कल का सच - जो आज देखा" आज की एक समस्या है, जिसे आम तौर परहम कल झेलेंगे क्योंकि ये आज की पीढ़ी है जिसमें से सभी तो नहीं लेकिन कुछ तो हैं जो बिल्कुल ऐसे ही बच्चों केलिए विकल्प खोज कर अपने काम को कर रही हैं। इसके विकल्प नहीं है ऐसा नहीं है - विकल्प हैं लेकिन हम उसकोअब महसूस करने के लिए तैयार नहीं है। हमारी प्राचीन संस्कृति ऐसे ही नहीं परिवार संस्था को अस्तित्व में रखे है। बच्चे आज भी अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध करते हैं। कई बार तो अपने भविष्य को दांव पर लगा कर माता पिता केलिए नौकरी चुन लेते हैं।
संयुक्त परिवार - आज संयुक्त परिवार की परिभाषा लम्बे चौड़े परिवार की नहीं रह गयी है बल्कि घर में बच्चों के दादादादी को ही शामिल कर लिया जाय तो वह संयुक्त हो जाता है। चाचा और बुआ अगर अविवाहित हैं तो इसमें आ जातेहैं। फिर होने को तो कई भाई एक साथ एक व्यवसाय में लग कर उसको चलाते रहते हैं। बात हम सिर्फ नौकरी पेशामाता पिता की कर रहे हैं। आप की ये कोशिश होनी चाहिए की अगर संभव है तो बच्चे को दादा दादी के पास ही छोड़ें। अगर आप शहर में ही अलग रह रहे हैं तो भी वह अपने पोते को रखने से इंकार नहीं करेंगे। लेकिन अपनी सोच किमेरा बच्चा दादा दादी के पास बिगड़ जाएगा उसको वे अपने तरीके से सिखायेंगे ( आप उसको कुछ और सीखना चाहती हों) लेकिन वह वहाँ सुरक्षित और प्यार के बीच रहेगा। आपके दूर रहने पर भी उसे प्यार से वंचित नहीं होनापड़ेगा।
कितनी बहुएँ हैं जो बच्चो को कृच में छोड़ना पसंद करती हैं और दादा दादी तरसते रहते हैं। उस समय आप ही दोषी हैं , बच्चे के उस सवाल के कि पैसे से प्यार नहीं मिलता है।
पाश्चात्य संस्कृति - दोनों कामकाजी लोग अपने जीवन स्तर को अलग ढंग से बनाने के पक्षधर भी देखे गए हैं। वो दोनों नौकरी कर रहे हैं एक बेहतर जीवन जीने के लिए लेकिन अपने जीवन का सुख खोने के लिए नहीं।
'अब तुम बड़े हो गए हो , अपने कमरे में सोओ।'
'मम्मी सारे दिन काम करती है रात में तो उसे चैन लेने दिया करो।'
'प्लीज इस समय मुझसे कुछ मत बोलो, मैं अकेले रहना चाहती हूँ।'
'तुम जाओ दोस्तों के संग खेलो , मुझे परेशान मत करो।'
ये आम जुमले हैं, मैं मानती हूँ कि आप दिन भर में थक कर आती हैं लेकिन वह बच्चा भी तोदिन भर अकेले रहता है और चाहता है कि कब मम्मी आये और वह उसके साथ बैठे। उसकी गोद में खेले। उससे आपअपनी थकान या परेशानी की आड़ में उनका प्यार तो नहीं छीन रहीं है। अगर परिवार बनाया है तो अतिरिक्तदायित्वों और परिश्रम आपकी नियति बन चुकी है। फिर अपनी झुंझलाहट आप बच्चे पर निकलें तो वह खुदबखुद दूरहो जायेगा।
उसे भी समय चाहिए और आप आकर कुछ देर के लिए उसे गोद में लेकर प्यार कर लें आप कोआराम करना है तो उसको लेकर बेड पर लेट जाइए उसे भी लिटा लीजिये । देखिये उसके सानिंध्य में आप की थकानकितनी जल्दी उतर जाती है और वह कितना खुश हों जाता है? ये आपसे जोड़ने का एक तरीका है। दिन भर वह अलगरहता है तो उसके लिए माँ एक नियामत होती है।
अपनी पार्टी ये चीज तो कामकाजी ही नहीं बड़े घरों की महिलाओं के लिए एक मनोरंजन का साधनहोता है , के लिए बच्चों को छोड़ देना अकलमंदी नहीं है। उन्हें बड़ा होने का इन्तजार कीजिये और अपने बच्चे केमनोविज्ञान का भी आपको ज्ञान होना चाहिए कुछ बच्चे अतिसंवेदनशील होते हैं उनको दूसरे ढंग से देखना पड़ता है। उनके साथ बातचीत की भाषा और लहजा भी उनको आहत कर सकता है तो एक माता पिता होने के नाते इस बात काध्यान तो जरूर रखें। उन्हें ये अहसास न होने दें कि वे पता नहीं क्यों उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए आ जाते हैं। बाल मनउस कच्ची मिट्टी की तरह होता है की जिस पर एक बार जो छाप बन गयी न तो फिर जीवन भर नहीं मिट पाती है।
कामकाजी होने के साथ बच्चों को पर्याप्त समय दें। छुट्टी में उन्हें उनकी तरह से जीने का हक़दीजिये। आप रोज निकलती हैं तो आप को लगेगा की एक छुट्टी का दिन मिला है तो आराम कर लें लेकिन वे रोजएक ही जीवन जीते हाँ या घर में रहते हैं या फिर क्रच में - उन्हें भी तो चेंज चाहिए और फिर ऐसे क्षणों में वे अपनेआप को आपके बहुत करीब पाते हैं।
अगर कर सकती हों और आर्थिक परेशानी का सामना न करना पड़े तो कुछ सालों का आप ब्रेक भी लेसकती हैं और फिर दुबारा जॉब शुरू कर सकती हैं और नहीं संभव है तो फिर कोशिश ये करें कि बच्चे माँ की कमीदूसरे लोगों या फिर बेजान खिलौने में खोजने के लिए मजबूर न हों। ऐसे बच्चों को दूसरे लोग बरगला भी लेते हैं औरउनको गलत रास्ते पर भी ले जाने से नहीं चूकते हैं।
जिनके भविष्य के लिए आप इतना परिश्रम कर रहे हैं और कल को वो आपको ही कटघरे में खड़ाकरके सवाल पूछे तो फिर आपकी सारी मेहनत और प्रयास असफल हों जाता है। बच्चों को दूर न करें । यथासंभवउन्हें अपने करीब रखें। जब उनकी उम्र दूर जाने की होती है तो फिर तो वे दूर चले ही जाते हैं।
बच्चों को कभी भी प्रताड़ित करने के लिए उन्हें ऐसे न कहें -
'बहुत परेशान करोगे तो होस्टल में डाल दूँगा।'
'एक ही शहर में रहते हुए उन्हें होस्टल में यथासंभव न डालें।'
'घर की छत के नीचे जो सुख और प्यार है वह कहीं और नसीब नहीं होता, इस बात का अहसासे आप भी करें औरउन्हें भी करने दें। प्यार देंगे तो प्यार मिलेगा - दूरियां बनायेंगे तो फिर प्यार की आशा कैसे कर सकते हैं? वे वहीसीखते हैं जो हम उनको सिखाते हैं या बातें सिर्फ बोल कर ही नहीं सिखाई जाती है बल्कि इसको तो वे हमारे व्यवहार से भी सीख जाते हैं।
मंगलवार, 26 जुलाई 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
vikalp n dhoondha to visfot tay hai
meri tarf se boht boht boht dhanyawad, boht acha laga aapka ye post padh ke, itni important battein aapne hume batayi aapki boht abhari hu
'घर की छत के नीचे जो सुख और प्यार है वह कहीं और नसीब नहीं होता, इस बात का अहसासे आप भी करें औरउन्हें भी करने दें। प्यार देंगे तो प्यार मिलेगा ...yahi to hona chahiyen lekin aaj logon ke paas sochne ka samay hi nahi raha!
bahut badiya prastuti..aabhar
सम सामयिक और सुन्दर विचार .अच्छी प्रस्तुति
प्यार देंगे तो प्यार मिलेगा - दूरियां बनायेंगे तो फिर प्यार की आशा कैसे कर सकते हैं?
सुन्दर सार्थक विचारोत्तेजक प्रस्तुति.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर दर्शन दीजियेगा.
काश काश काश .... आज कल के बच्चे वैसा सोचते जैसा आपने लिखा है .... आपकी हर बात से सहमत हूँ ...
हकीकत तो ये है की हम बस भागते जा रहे हैं .... पारिवारिक मूल्यों की बलि चढ़ा देतें हैं चंद सुख सुविधाओं के आगे .... और अंत में जीवन के अलसी सुख से महरूम हो जाते हैं .......
ब्लॉग की दुनिया में नयी हूँ. . यदि आप मेरा लिखा हुआ पढेंगे तो अच्छा लगेगा ...
एक टिप्पणी भेजें