कुछ लोग अपनी शख्सियत को सबसे अलग प्रस्तुत करने में माहिर होते हैं और वही अंदाज उनकी अपनी विशेषता होती है। सपने सभी ने देखे और अपने अपने सपनों के स्वरूप को शब्दों में ही ढाल कर भेजा लेकिन समीर जी ने उसे सबसे अलग कविता रूप देकर प्रस्तुत किया क्योंकि सपने तो सपने हैं और ये सबसे अलग हैं।
तो फिर अपने सपनों के साथ आये हैं -- समीर लाल 'समीर'
अधूरे सपने- अधूरी
चाहतें!!
मेरे कमरे की खिड़की
से दिखता
वो ऊँचा पहाड़
बचपन गुजरा सोचते कि
पहाड़ के उस पार होगा
कैसा एक नया
संसार...
होंगे जाने कैसे
लोग...
क्या तुमसे होंगे?
क्या मुझसे होंगे?
आज इतने बरसों बाद
पहाड़ के इस पार बैठा
सोचता हूँ उस पार को
जिस पार गुज़रा था
मेरा बचपन...
कुछ धुँधले चेहरों
की स्मृति लिए
याद करने की कोशिश
में कि
कैसे थे वो लोग...
क्या तुमसे थे?
क्या मुझसे थे?
तो फिर आज नया ख्याल
उग आता है
जहन में मेरे
दूर
क्षितिज को छूते
आसमान को देख...
कि आसमान के उस पार
जहाँ जाना है हमें
एक रोज
कैसा होगा वो नया
संसार...
होंगे जाने कैसे
वहाँ के लोग...
क्या तुमसे होंगे?
क्या मुझसे होंगे?
पहुँच जाऊँगा जब
वहाँ...
कौन जाने बता पाऊँगा
तब यहाँ..
कुछ ऐसे ही या कि
चलती जायेगी वो तिल्समि
यूँ ही अनन्त तक
अनन्त को चाह लिए!!
बच रहेंगे अधूरे
सपने इस जिन्दगी के
जाने कब तक...जाने
कहाँ तक...
तभी अपनी एक गज़ल में
एक शेर कहा था मैने
“कैसे जीना है किसी को ये
सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल
जाती है”
13 टिप्पणियां:
सोच के साथ सपने भी बदल जाते हैं ... आप बेहतरीन की एक परिभाषा हैं
बहुत सही ...सपने ..भी बदल जाते हैं काल दिशा देख कर ..बेहतरीन
सोच के साथ या समय के साथ सपने बदलते रहते हैं!
समय और सपने ..दोनों ही परिवर्तनशील.
कुछ सपने बेमुरव्वत होते हैं तो कुछ छलावे की तरह होते हैं ! गहन सोच लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति !
badal jana or badalte dekhna .aajkal ki duniya ki demand hain .............
badal jana or badalte dekhna .aajkal ki duniya ki demand hain .............
जीवन के अनुभव कुछ भी जैसा का तैसा कहाँ रहने देते हैं !
“कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है”
बिल्कुल सही कहा समीर जी ने
wakayee vakht ke saath har soch badal jati hai.....aur hum khud bhi hairaan rah jate hain.....
aap ideal ho sameer bhaiya:) hamare:)
और हर सोच के साथ ...सपने भी बदल जाते हैं
सपने जो अपने हैं ...कभी पूरे हुए वो यादे बन गई ..और जो अधूरे हैं वही तो सपने हैं :)))
शायद हम सभी के साथ ऐसा होता है ...हम कभी वर्तमान में नहीं जीते ..और बहुत ही प्यारे ..खुशगवार पल खो देते हैं ...इसी उहा पोह में की हमारा कल कैसा होगा ..या हमारा कल कैसा था ....इस भाव को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है .....
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