सपने तो सपने है जिन्हें मन में सजाना मानव जाति का स्वभाव है , कुछ सपने ऐसे ही होते हैं जिन्हें देखते देखते बहुत कुछ पा जाते हैं और फिर भी मन में कहीं न कहीं कोई कसक शेष रह जाती है भले ही वह बहुत महत्वपूर्ण न हो फिर वक्त के साथ या फिर दूसरे को उस कलेवर में देख कर सर उठाने लगते हैं कुछ पुराने सपने।
आज अपने संस्मरण से दो चार हो रही हैं - शिखा वार्ष्णेय
मनुष्य का सपनो से बहुत गहरा नाता है। जब तक जीवित रहता है सपने देखता है।कुछ पूरे होते हैं कुछ नहीं होते .जो पूरे हो जाते हैं तो कोई नया सपना आँखों में पलने लगता है . वक़्त दर वक़्त करवटें बदलते सपनो के साथ हम चलते रहते हैं .ऐसे ही मेरे सपने थे। एक नहीं अनगिनत। जो साल दर साल बदल जाया करते। पर सबमें एक भावना अहम् रहती कि कुछ ऐसा करना है जो मम्मी पापा को बेटी पर नाज हो .हम पर कभी किसी चीज़ को लेकर बंदिश नहीं थी . न विषयों को चुनने की, न कैरियर की, तो समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों के प्रति आक्रोश रहता था। बचपन और लड़कपन का मन, हमेशा सोचा करता कोई ऐसा पॉवर फुल कैरियर हो कि इसके बारे में कुछ किया जा सके ।तो मन चाहे विषय चुन लिए यह सोच कर कि आई ए एस में बैठेंगे। फिर धीरे धीरे यह मन पत्रकारिता और लेखन की तरफ मुड़ गया।और नया सपना जन्म लेने लगा की पत्रकारिता से सबके परदे फाश कर देंगे।परन्तु फिर हालातों ने करवट बदली और वही हुआ जो भारतीय समाज में होता है शादी करो , फिर बच्चे हो गए तो उन्हें पालो, इसी सबके साथ साथ सपने बदलते गए और मेरा अपना सपना पिछली सीट पर जा बैठा। मुझे हमेशा लगता रहता की वो तो अब टूट गया है।परन्तु वह मुझे गाहे बगाहे कचोटता रहता, उकसाता रहता। मुझे कहता सपने कांच के नहीं मिटटी के होते हैं टूट भी गए तो फिर से गला कर आकार दे दो, कोशिश तो करो!! हो सकता है पहले जैसा आकार न आये परन्तु कुछ न कुछ तो जरुर बन ही जायेगा। थोड़ी जिम्मेदारियां कम हुईं तो मन की मानी और शुरू किया टूटे सपनो को पुन: आकार देना। जाहिर है जो टूट गया वो तो फिर से नहीं बन पाया,और वो एक कसक शायद हमेशा रहेगी, पर जो बना वो भी बहुत प्यारा है और मैं खुश हूँ। आज भी हर रोज़ एक नया सपना देखती हूँ। और किसी न किसी रूप में वह पूरा भी हो जायेगा यह यकीन खुद को दिलाती हूँ। कहते हैं न ईश्वर और कहीं आपके अपने अन्दर ही होता है और सच्चे दिल से की गई आरजू जरुर उसतक पहुँचती है।
मनुष्य का सपनो से बहुत गहरा नाता है। जब तक जीवित रहता है सपने देखता है।कुछ पूरे होते हैं कुछ नहीं होते .जो पूरे हो जाते हैं तो कोई नया सपना आँखों में पलने लगता है . वक़्त दर वक़्त करवटें बदलते सपनो के साथ हम चलते रहते हैं .ऐसे ही मेरे सपने थे। एक नहीं अनगिनत। जो साल दर साल बदल जाया करते। पर सबमें एक भावना अहम् रहती कि कुछ ऐसा करना है जो मम्मी पापा को बेटी पर नाज हो .हम पर कभी किसी चीज़ को लेकर बंदिश नहीं थी . न विषयों को चुनने की, न कैरियर की, तो समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों के प्रति आक्रोश रहता था। बचपन और लड़कपन का मन, हमेशा सोचा करता कोई ऐसा पॉवर फुल कैरियर हो कि इसके बारे में कुछ किया जा सके ।तो मन चाहे विषय चुन लिए यह सोच कर कि आई ए एस में बैठेंगे। फिर धीरे धीरे यह मन पत्रकारिता और लेखन की तरफ मुड़ गया।और नया सपना जन्म लेने लगा की पत्रकारिता से सबके परदे फाश कर देंगे।परन्तु फिर हालातों ने करवट बदली और वही हुआ जो भारतीय समाज में होता है शादी करो , फिर बच्चे हो गए तो उन्हें पालो, इसी सबके साथ साथ सपने बदलते गए और मेरा अपना सपना पिछली सीट पर जा बैठा। मुझे हमेशा लगता रहता की वो तो अब टूट गया है।परन्तु वह मुझे गाहे बगाहे कचोटता रहता, उकसाता रहता। मुझे कहता सपने कांच के नहीं मिटटी के होते हैं टूट भी गए तो फिर से गला कर आकार दे दो, कोशिश तो करो!! हो सकता है पहले जैसा आकार न आये परन्तु कुछ न कुछ तो जरुर बन ही जायेगा। थोड़ी जिम्मेदारियां कम हुईं तो मन की मानी और शुरू किया टूटे सपनो को पुन: आकार देना। जाहिर है जो टूट गया वो तो फिर से नहीं बन पाया,और वो एक कसक शायद हमेशा रहेगी, पर जो बना वो भी बहुत प्यारा है और मैं खुश हूँ। आज भी हर रोज़ एक नया सपना देखती हूँ। और किसी न किसी रूप में वह पूरा भी हो जायेगा यह यकीन खुद को दिलाती हूँ। कहते हैं न ईश्वर और कहीं आपके अपने अन्दर ही होता है और सच्चे दिल से की गई आरजू जरुर उसतक पहुँचती है।
तो-
मैंने माँगा तो था चाँद
ताकि फैला सकूँ चांदनी
वहां जहाँ अँधेरा है बहुत
परन्तु शायद उड़ान में ही
रह गई कुछ कमी
न मिला चाँद
तो क्या
एक दिया ही जला लो
कुछ तो राहें रोशन होंगी।
26 टिप्पणियां:
एक दीये से बढकर कोई सपना नहीं .... जिसमें चेतना की वर्तिका कंचन की लौ बनकर जलती है
बिल्कुल शिखा एक दीया काफ़ी है रौशनी के लिये ……बस बढे चलो , बढे चलो ,बढे चलो।
सपनो की लौ जलाएं रखें, कारवां निकल पड़ा है तो मंजिल मिलेगी ही . शुभकामनायें
badhte chalo bas yahi shubhkamna hai ..:)
mujhe to lagta hai manjil ka milna kya tum to manjil se aage chal rahi ho...:) shubhkamnayen...!!
kuchh din pahle maine ek news clipping dekhi thi tumhare wall par Shikha...."aligarh ki beti" yahi likha tha.... ab wo newspaper kya tha, kaisa tha, mujhe nahi pata... par itni badi baat se nawaja jana... ye manjil se kam nahi hai dost:)
shubhkamnayen...:)
supelike
behtreen prastuti! badhai kabule!
बढ़िया है !!! :) :)
एक दिया ही बहुत है अँधेरों के लिए .....
गढ़ते जाइए सपने कुछ तो आकार मिलेगा .... शुभकामनायें
सपने शायद जीवन में सफल होने की आस लिए भी होते है ...
पर हमारे यहाँ जीवन के हर क्षेत्र में इतनी विषमताएं और
लाँच-रिश्वत, भ्रष्टाचार है कि एक ओनेस्ट और
संवेदनशील व्यक्ति के लिए यहाँ कोई स्पेस नहीं रखा जाए ।
सेवा कम और आमदनी ज्यादा ...यहाँ ऐसे-ऐसे बुद्धिहीन
सेवक बने फिरे कि जो सही काम करनेवालों के प्रति
दुश्मनावट भरा रवैया रखे ... और वैसे कुटिल व् स्वार्थी
लोगों की अहम पूर्ति, हम जैसे अपने आत्मसम्मान के एवज़
में नहीं कर सकते। 'सेवा' का concept शायद गाँधी जी अपने
साथ ही ले गए ...हालांकि कोई इक्का-दुक्का संस्थाओं के बारे
में सुना-पढ़ा है जो नितांत सेवाकार्य में अपना योगदान दे रहे
हैं ।
क्षेत्र चाहे धार्मिक हो, राजनीतिक हो, सामाजिक हो
या सांस्कृतिक या अन्य कोई, सभी जगह अहंकारियों का और
पैसा उगाही करनेवालों का ही बोलबाला है ...हमारे सपने
शिखा जी यहाँ तो खो ही जाए ...!
जोकि यहाँ पर सामूहिक न सही, हम जैसे लोग छोटी मोटी
हिडन सेवाएँ तो ज़रूरतमंदों की कर ही सकते हैं ... जो हम
कर रहे हैं, कर लेते हैं ...
:-)
हर ख्वाब पूरा हो......
और ख़्वाबों का खूब आना जाना हो....
ढेर सा प्यार...
अनु
अँधेरे रास्तों को रोशन करते हैं दिए
चाँद तो अमावस में रोशन होता नहीं
चाँद तो ख़्वाबों की बात है सबके लिए
दिया तो जब चाहे जला कर चल दिए .
दिया ही संकल्प को सतत बनाये रखने का प्रतीक है मंजिलें जरूर मिलेंगी।
बहुत सुन्दर बात कही शिखा जी ! एक गीत याद आ गया ....
जो मिल गया उसीको मुकद्दर समझ लिया,
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया !
शायद सपने देखने वाले हर व्यक्ति की नियति यही होती है ! आपके संस्मरण से बड़ी प्रेरणा मिली ! आभार !
वाह............... तुम्हारे इन विचारों पर मुझे अपने पापा की एक कविता याद आ रही है-
सौ-सौ दीप जलाए इस धरती के प्रांगण पर,
फिर भी ताम की गहराई का रंग नहीं बदला...
प्रिय शिखा ,सार्थक सोच वालों के सपने जरूर पूरे होते हैं ।देख लेना --पिछली सीट पर बैठा तुम्हारा सपना एक न एक दिन कुदककर आगे जरूर आन बैठेगा ।
जिंदगी में हम सोचते कुछ और हैं , हो कुछ और जाता है . हर हाल में समझौता कर आगे बढ़ जाना चाहिए. शिखा जी कर भी रही हैं.
आज ही का दिन क्यूँ , हर दिन आपके नाम | बधाई एवं शुभकामनाएं | आपकी रचनाएं जुगनुओं से भरी रहे बस |
ये सपने ही ऊर्जा का संचार करते हुये राह रोशन किये हैं शिखा,और आपके क्रिय-कलाप के संचालक भी!
मैं ने माँगा तो था चाँद ...
................................
एक दिया ही जलालो ,कुछ तो राहें रोशन होंगी . .
बढ़िया रचना है .सपने देखो और बड़े और बड़े और प्रत्नशील रहो उन्हें पूरा करने में .
मनुष्य का सपनों से बहुत गहरा नाता है सपनो शब्द भूमिका भाग में ठेक कर लें असल शब्द है सपनों .......
मेरी टिप्पणी ??????? :(:(
upar hai na apaki tippani.
ugta suraj dhire dhire dhalta hae dhal gaye ga
निश्चय में दृढ़ता हो तो हलकी सी रौशनी भी ......राह समझने के लिए काफ़ी है .....इसके बाद तो बचा हुआ काम ....विश्वास पर छोड़ दो ......
कुछ अंशों में ही सही , सपने पूरे तो हुए !
सच ही तो हैं ....
पर हर कोई आप जैसे नहीं सोच सकता ....सादर
एक टिप्पणी भेजें