सपने और वह एक लड़की के सपने हाँ ये तो सच है कि सपने लड़की होने तक ही देखे जाते हैं, उसके बाद तो वह किसी दूसरे रूप में आते ही अपने सपनों को अपने परिवार और घर संसार के आगे न्योछावर कर देती है। शायद उसे ख़ुशी भी उसी में मिलती है। वे सपने कभी उसने लड़की होने पर देखे थे , ऐसे बीच बीच में आकर उदास कर जाते हैं और बीच बीच में कभी क्षण भर के लिए लगता है कि काश !.............
हसरते तो हसरते हैं हसरतो का क्या ?
सपने जीवन के आधार होते हैं | हर उम्र सपने देखती हैं |छोटा सा बच्चा सपना देखता है की मेरे पास ढेर सारे खिलौने हों ..... किशोर उम्र में ,समवयस से दोस्ती के सपने | जवानी में अच्छी जिन्दगी के सपने ........ प्रौढ़ उम्र में बच्चों की जिन्दगी के सपने | अंतिम पहर में ईश्वर प्राप्ति के सपने ........
... कुछ सपने ऐसे होते हैं जिनका यथार्थ से कुछ लेना-देना नही होता ,बस मन खुली आँखों से सपने देखता है . सपने जरुर उस मन के होते हैं पर उसको हौसला दूसरो से मिलता हैं पूरा करने का ......
संयुक्त भरे पूरे परिवार में जन्मी मैं ७ भाई-बहनों में ५ वे नंबर पर रही | सब दूध जैसे गोर रंग के ,मैं सांवली सूरत लिए .... सब मजाक में कहते कि यह सावली क्यों हैं .उम्र ही ऐसी थी ,कि हर बात दिल पर लग जाती थी | बस खुद को कमरे में बंद कर लेती थी और किताबें मेरी सबसे अच्छी दोस्त होते थे | कोई भी किताब मिल जाये .,सरिता , मनोरमा ... कादम्बिनी ...............उस दौर में मैं रानू के कुछ नोवेल्स भी पढ़े | हर साल अच्छे मार्क्स लाकर पास होना और अपने में खोये रहना ..... घर में मैं या तो चुप रहती या इस आक्रोश रहती कि मैं सब जैसे गोरी क्यों नही सुंदर क्यों नही ..माँ कहती ,हु मेरी इच्छा है कि , मेरा कोई बच्चा नौकरी करे सरकारी नौकरी लेकिन भाइयो को बिज़नस में रूचि थी तो मुझे लगता कि मै करूंगी नौकरी |
पापा को लगता कि यह बेटी मेरी बहुत मेधावी हैं यह P .C .S .पास करेगी ...... सपने देखने शुरू कर दिए मेरे मन ने .कई बार खुद को सरकारी जीप मे हिचकोले खाते देखा पर भूल गयी थी कि मैं एक लड़की हूँ ,उनके सपनो की कोई बिसात नही रहती ,जब कोई अच्छा लड़का मिल जाता हैं |बस पापा ने मेरे लिय वर खोजा और कहा कि अगर लड़की पढ़ना चाहे तो क्या आप पढ़ने देंगे बहुत ही गरम जोशी से वादे किये गये |. दुल्हन बनकर मैं ससुराल आ गयी .... अगले दिन मेहमान चले गये और मैं घर भर में पिया संग अकेली ............. भीड़ में रहने की आदत थी मुझे और मैं बुक्का फाड़ कर रो पड़ी ...... एक महीने तक यह छुट्टी लेकर मेरे साथ
आज अपने सपने से रूबरू करवा रही हैं -- नीलिमा शर्मा जी
हसरते तो हसरते हैं हसरतो का क्या ?
सपने जीवन के आधार होते हैं | हर उम्र सपने देखती हैं |छोटा सा बच्चा सपना देखता है की मेरे पास ढेर सारे खिलौने हों ..... किशोर उम्र में ,समवयस से दोस्ती के सपने | जवानी में अच्छी जिन्दगी के सपने ........ प्रौढ़ उम्र में बच्चों की जिन्दगी के सपने | अंतिम पहर में ईश्वर प्राप्ति के सपने ........
... कुछ सपने ऐसे होते हैं जिनका यथार्थ से कुछ लेना-देना नही होता ,बस मन खुली आँखों से सपने देखता है . सपने जरुर उस मन के होते हैं पर उसको हौसला दूसरो से मिलता हैं पूरा करने का ......
संयुक्त भरे पूरे परिवार में जन्मी मैं ७ भाई-बहनों में ५ वे नंबर पर रही | सब दूध जैसे गोर रंग के ,मैं सांवली सूरत लिए .... सब मजाक में कहते कि यह सावली क्यों हैं .उम्र ही ऐसी थी ,कि हर बात दिल पर लग जाती थी | बस खुद को कमरे में बंद कर लेती थी और किताबें मेरी सबसे अच्छी दोस्त होते थे | कोई भी किताब मिल जाये .,सरिता , मनोरमा ... कादम्बिनी ...............उस दौर में मैं रानू के कुछ नोवेल्स भी पढ़े | हर साल अच्छे मार्क्स लाकर पास होना और अपने में खोये रहना ..... घर में मैं या तो चुप रहती या इस आक्रोश रहती कि मैं सब जैसे गोरी क्यों नही सुंदर क्यों नही ..माँ कहती ,हु मेरी इच्छा है कि , मेरा कोई बच्चा नौकरी करे सरकारी नौकरी लेकिन भाइयो को बिज़नस में रूचि थी तो मुझे लगता कि मै करूंगी नौकरी |
पापा को लगता कि यह बेटी मेरी बहुत मेधावी हैं यह P .C .S .पास करेगी ...... सपने देखने शुरू कर दिए मेरे मन ने .कई बार खुद को सरकारी जीप मे हिचकोले खाते देखा पर भूल गयी थी कि मैं एक लड़की हूँ ,उनके सपनो की कोई बिसात नही रहती ,जब कोई अच्छा लड़का मिल जाता हैं |बस पापा ने मेरे लिय वर खोजा और कहा कि अगर लड़की पढ़ना चाहे तो क्या आप पढ़ने देंगे बहुत ही गरम जोशी से वादे किये गये |. दुल्हन बनकर मैं ससुराल आ गयी .... अगले दिन मेहमान चले गये और मैं घर भर में पिया संग अकेली ............. भीड़ में रहने की आदत थी मुझे और मैं बुक्का फाड़ कर रो पड़ी ...... एक महीने तक यह छुट्टी लेकर मेरे साथ
रहे
.........फिर वापिस जॉब पर कोटद्वार चले गये .......अब मैं घर भर में बूढ़े
सास -ससुर के साथ अकेली ............... न किसी ने कहा कि इसे साथ ले जाना
है , न किसी ने कहा कि इसे साथ भेजना है ............. मैं मूक सी सब
देखती रही वातावारण एक दम अलग , रहन सहन में बहुत फर्क .......... उस पर
कही आना -जाना नही ............ मैं भीतर घुलने लगी | अचानक एक दिन हब्बी
ने बी.एड का फार्म ला दिया मैंने भर दिया मेरिट में मेरा नाम आ गया .......
मैंने B.ed भी फर्स्ट इन फर्स्ट devison से देहरादून के सबसे अच्छे
college से की | पर अंदर अंदर मुझे यही लगता कि मैं टीचर नही बन सकती
....कुछ दिन केंद्रीय विद्यालय में जॉब की फिर सरकारी जॉब मिल गयी
......... सप्ताह में एक बार घर आना संभव था . बच्चे मेड के हाथ का खाना
खाने को तैयार नही थे सासु माँ तब तक स्वर्ग सिधार चुकी थी | समय का पहिया
तेजी से घूम रहा था और मैं चक्करघिन्नी से उसके साथ बहुत मीठे क्षण भी आये
जो मुझे सुवासित किये रहे साथ साथ . पर ...... मन कसकता रहा कि मुझे
सरकारी जीप में घूमना था ..मुझे कुछ ऐसा करना था कि मेरे नाम की तख्ती लगे
कहीं पर | मुझे मेरे नाम से जाना जाये ,पहचाना जाये ....... और एक दिन मैं
नौकरी छोड़ कर घर आ गयी ,कि मैं अब वापिस कलसी नही जाऊंगी | किसी ने एतराज
नही किया | सबको घर पर एक औरत चाहिए थी
और
साथ में बच्चों को माँ , बाबूजी को बहु |हब्बी तब भी डेल्ही में पोस्टेड
थे ....उम्र फिसल रही थी धीरे धीरे और मैं अपने सपने से कोसो दूर बहुत दूर
चली गयी थी ........... मुझे जरा भी अफ़सोस नही कि मैंने सरकारी नौकरी छोड़
दी एक अध्यापिका की ....... बस अफ़सोस यही है कि मैं अच्छी माँ बन जाने के ,
अच्छी वाइफ ,अच्छी बहु बन जाने के चक्कर में अपने लिये नही लड़ पाई अगर मैं
पति के साथ रहती तो शायद मुझे वक़्त मिल जाता .................... पर घर
के जिम्मेदारियों ने ऐसे बेड़ियाँ डाली पैरों में कि मैं खुद को भूल ही गयी
........ अब जब भी मन कसकता है तो पति कहते हैं कि कोई बात नहीं ,अब तक
सपने भी कभी अपने हुए ......... सो अपनों के लिये सपने देखा करो ,वही सच
होते हैं .............
34 टिप्पणियां:
सपनों के पूरे न होने पाने की कसक हमेशा रह जाती है। मैं खुद कई सपनों की टूटन के साथ जी रहा हूं। पर सपने देखने मैं नहीं छोड़ता। जब सपने देखना नहीं छोड़ता तो जाहिर है कि कई सपनों के टूटने की चुभन झेलनी पड़ती है। हर सपना समय के साथ परवान चढ़ता ठीक बच्चे की तरह आपकी आंखों में पलता है..दिल में रहता है..औऱ जब सपना टूटता तो आंखों में चुभन औऱ दिल में कसक हमेशा के लिए दे जाता है।
पर अगर अपना सपना पूरा होने से अच्छे नागरिकों को निर्माण होता है तो इन अधूरे सपनों की कसक कम हो जाती है।
sundar v sarthak abhivyakti.neelima ji se milvane ke liye shukriya.
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अब जब भी मन कसकता है तो पति कहते हैं कि कोई बात नहीं ,अब तक सपने भी कभी अपने हुए ......... सो अपनों के लिये सपने देखा करो ,वही सच होते हैं ......
wo aap ki jagah hotae tab bhi kyaa yahii kehtae
बहुत अच्छा लेख
---
अपने ब्लॉग को ई-पुस्तक में बदलिए
सटीक प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||
जो कुछ अपने पास है, करिए उसपर गर्व |
किस काया की कल्पना, पूर्ण हुई क्या सर्व ?
पूर्ण हुई क्या सर्व , घटा उपलब्धि दीजिये |
सपनो के संग तौल, इन्हें इक बार लीजिये |
खुद के सपने सत्य, हुआ घाटा है थोडा |
उनके क्या हालात, जिन्हें इस खातिर छोड़ा ??
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
अधूरे सपनों की पगडंडियों पर जो हकीकत के वृक्ष फले , ज़मीन तो उन सपनों की ही है न
mujhe lagta hai ek house wife ka job sabse tough hota hai, kyonki ye full time 24 ghante ka job hai... wo alag baat hai, is kaam ke ke liye ham apne sahchari ko utna value de nahi pate, par samajhte jarur hain... ek din khana na mile to pata chal jata hai!!
aap aur aapki family safalta ki unchai ko chhuye... shubhkamnayen..:)
ये कसम उम्र भर सालती है।
aapki aur meri kasak ek :-(
सपने पुरे नही होते तो मन में
कसक तो उठती ही है...
कोई बात नही जो मिला वो भी कम नही....
खुश रहिये .....
शुभकामनाएँ.....
:-) :-) :-)
जिनदगी तो हर मोड पर एक स्वाल है और सवालों का सही जवाब हर बार कहाँ मिलता है ? और हर मंजिल के साथ दुःख सुख का रेला साथ है तमन्नाएँ कब पूरी होती है एक के साथ चलते २ भी दूसरे कि ख्वाइश करती है इसलिए जो दमन में है उसे ही समट लो | अपने जीवन को शब्दों में बयाँ करने का प्रयास अच्छा लगा |
हर ख्वाहिश पूरी नहीं होती और बस फिर एक वही अधूरा सपना ...
आपका यह प्रयास सराहनीय है ..
सादर
सबसे पहले तो आप सब से क्षमा चाहती हूँ के समय से यहाँ पर आप सबको धन्यवाद नही कर पाई
यह सच हैं के सपनो के टूटने की कसक दिल मई रहती हैं पर अफ़सोस नही रहना चाहिए उनका . क्युकी अफ़सोस निराशा मैं बदल जाता हैं और मुझे अफ़सोस बिलकुल नही हैं .
आप सबका तहे दिल से शुक्रिया
Boltobindas ...... ab sapne hain toot'te bhi hain or naye bhi bune jate hain hain kya kiya jaye . shukriya aap ka
shalini jee aapse milkar bhi behad khushi huyi Dhanywad
Rachna jee ....sapne to sapne hi hote hain .woh male/female ka bhed nhi karte .... kya sapne sirf females ki hi adhure rahte hain ? ab jab sapna poora nhi ho paya to sirf avsaad liye to nhi jiya jata na ....tab yahi kahkar sathi ko dilasa diya jaya jana chahiye k ab apno ke liy sapne dekho .......mujhe unki Approach Positive hi lagi
Vinay jee bahut bahut dhanywad
ravikar jee shukriya aapka
Rahmiprabha jee sahi kaha aapne ........... shukriya aapka
vandana gupta jee .........han kasak to umar bhar rahti hi hain na .....Aabhar aapka
sonal ................ thank you ........ meri kasak ko samajhne ka
Renna Morya jee .......aapki shubhkamnao ke liy bahut bahut dhanywad
Minakshi pant jee ........... kotish dhanywad
Thank you SADA JEE......
सबसे पहले तो आप सब से क्षमा चाहती हूँ के समय से यहाँ पर आप सबको धन्यवाद नही कर पाई
यह सच हैं के सपनो के टूटने की कसक दिल मई रहती हैं पर अफ़सोस नही रहना चाहिए उनका . क्युकी अफ़सोस निराशा मैं बदल जाता हैं और मुझे अफ़सोस बिलकुल नही हैं .
आप सबका तहे दिल से शुक्रिया
Mukesh sinha jee ............ aapka shukriya
shukriya ravikar jee लिंक-लिक्खाड़ par meri post share karne ka
सोमवारीय चर्चामंच-1040.........is post ko shamil kiye jane par gafil jee ko dhanwad .
नीलिमा जी आज आपका सपना पढ़ा बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है और यही दृढ इच्छा पैदा करता है की हम अपने बच्चे का हर सपना पूरा करें ताकि जीवन में कोई कसक ना रहे बहुत अच्छा संस्मरण बधाई आपको
ये जिंदगी ही ऐसी है ...जो सपने पूरे होने के लिए देखे वो अधूरे रहे गए
और जो सोचा ही नहीं कभी ख्याबो ख्यालों में ...वो सपनों सा पूरा हो जाता है .....अजीब सा है जीवन का लेखा जोखा :))))
शुक्रिया अंजू
shukriya Rajkumari jee
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