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गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

अधूरे सपनों की कसक (18)

                     सपने देखे जाते हैं और ये सपने कभी तो साकार होते हैं और कभी टूट कर बिखर जाते हैं। इन बिखरे हुए सपनों के टुकडे अपने अस्तित्व को यूँ ही नहीं जाने देते हैं और कभी कभी इन टुकड़ों से एक नयी उर्जा मिलाती है और फिर नए सिरे से अपने सपनों को आकर देने की प्रेरणा मिलाती है। हाँ हो सकता है की उसका स्वरूप कुछ बदला हुआ हो लेकिन इससे मिलने वाला जज्बा अद्भुत होता है। ऐसे जज्बे से अपने सफर पर आगे बढ़ने का नाम है अरुण चन्द्र राय !






मैं बचपन से ही दिन में सपने देखा करता था. कई सपने देखे और अधिकांश टूटे ही. अब किनकी किनकी कसक रखता. सो बस सपने देखने शुरू किये. जो टूट गए उन्हें पीछे छोड़ दिया और नए सपने को लेकर आगे चल दिया. अपने सपनो की यही कहानी है. जब रेखा जी ने बार बार  आग्रह किया तो वे सब टूटे सपने सामने आने लगे... लेकिन किसी कसक के साथ नहीं बल्कि नए सपने बनकर. 

मेरी पढाई एक स्कूल में नहीं हुई. टूट टूट कर हुई. पहली से तीसरी तक नौनिहाल में. चौथी से छटी तक अपने पैत्रिक गाँव में. छटी से आठवी तक फिर नौनिहाल में. आठवी के बाद धनबाद में. धनबाद में मजदूरों की बस्ती में रहा करता था. बढ़िया स्कूल तक नहीं थे तो पुस्तकालय कहाँ से होती. अखबार तीसरे दिन पहुचता था. पुस्तकालय पर केवल लेख पढ़ा था. लेख लिखता था. पुस्तकालय नहीं देखा था. मन हुआ कि एक पुस्तकालय शुरू किया जाय. अपनी पुरानी किताबों को लेकर एक पुस्तकालय शुरू किया जिसका नाम रखा था - स्टूडेंट्स लाइब्रेरी. अपने और दुसरे मोहल्ले में जाकर लोगों से किताबें मांग मांग पर लाया करता था. हमारी कालोनी के सड़क के दूसरी और आफिसर के घर थे. वह सड़क लक्षमण रेखा थी हमारे लिए. छोटी कालोनी के बच्चों के लिए. लेकिन मैं वो लक्ष्मण रेखा तोड़ के उस तरफ गया किताबें मांगने. १९८९ में यह सिलसिला शुरू हुआ था और १९९२ में हमारे पुस्तकालय में लगभग ५००० किताबें थी. 
उसी आफिसर के कालोनी में मुझे मिले थे मेरी कविताओं के पहले पाठक और गुरु भी. श्री एस पी साहू . वे भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के मुख्यालय में हिंदी अधिकारी थे. उन्होंने मुझे कई और श्रोत दिए किताबों के और लगभग एक हज़ार किताबें उनके श्रोत से मिली थी. १९९६ में मेरा ग्रैजुएशन अंग्रेजी साहित्य में पूरा हुआ और मुझे एम् ए के लिए धनबाद छोड़ना था. मैंने अपने कुछ नजदीकी मित्रों को पुस्तकालय को संचालित करने का जिम्मा सौपा लेकिन वे निभा नहीं पाए. और धीरे धीरे पुस्तकालय बंद हो गया. 

धनबाद के एक लेबर कालोनी जो कि एक समय एशिया की सबसे बड़ी लेबर कालोनी थी, भूली में उस समय २०  हज़ार की आबादी वाले कालोनी में यह एक मात्र पुस्तकालय था और सैकड़ो छात्र इस से लाभान्वित हुए थे. कम से कम सौ छात्र इस पुस्तकालय का लाभ उठा एस एस सी की परीक्षाएं पास की हैं. बड़ी बात यह थी कि यह पुस्तकालय निःशुल्क था. इस पुस्तकालय का एक सदस्य छात्र चंद्रशेखर सिंह आज एम्स, दिल्ली में आँखों का डाक्टर है, एक छात्र धनञ्जय बी एच यु से बी टेक करने के बाद पी डब्लू डी, बिहार में सिविल इंजिनियर है. एक और छात्र इन दिनों एन च पी सी में फाइनांस एक्ज्यूकेटिव है. एक छात्र प्रेम, हल्दीराम रिटेल में बड़े पद पर है. कई बच्चे रेलवे में टी टी, स्टेशन मास्टर आदि हैं, कुछ एल डी सी, यु डी सी आदि हैं.  पढने का एक नया ज़ज्बा इस पुस्तकालय से शुरू हुआ था. 

अपनी कैरियर को प्राथमिकता देने के कारण मैं पुस्तकालय को आगे नहीं ले जा सका इसका मुझे अफ़सोस होने के साथ साथ, यही अफ़सोस आज उर्जा भी बन गया है. पुस्तकों के लगाव के कारण ही  ज्योतिपर्व प्रकाशन शुरू किया हूँ .  ख्याति प्राप्त कथाकार राजेंद्र यादव ने हमारे प्रकाशन के एक लोकार्पण कार्यक्रम में कहा कि हिंदी प्रकाशकों को नए पाठको तक पहुचना चाहिए, तो मेरा वह स्वप्न फिर से जीवित हो उठा है और मैं जनवरी २०१३ में अपने पैत्रिक गाँव रामपुर, मधुबनी, बिहार में एक पुस्तकालय शुरू कर रहा हूँ और ऐसे कम से कम सौ पुस्तकालय अपने जीवन में खोलने का सपना पाल रहा हूँ .

9 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aapka sapna aapke aankho me jeevant ho raha hai... shubhkamnayen..:)

vandana gupta ने कहा…

खुली आँखों से देखा आपका ये सपना जरूर पूरा होगा …………हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं और मेहनती तो आप हैं ही।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

मैं तो यही कहूंगा कि सपना हो तो ऐसा।

shikha varshney ने कहा…

बहुत बढ़िया ..सपने भी और उनके लिए सकारात्मक सोच भी..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सपनों की एक खासियत होती है,जिनके परिणाम सही नहीं होते वे टूट जाते हैं .... हमारा उस क्षण दुखी होना लाजिमी है,पर ईश्वर की विशेष सोच वही जाने

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आपका यह सपना जो बहुतों के सपने पूरे होने का माध्यम बन जायेगा -अवश्य पूरा होगा !

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

आप अपने सपनों को थामे ऐसे ही आगे बढते रहे

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति ||

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

aapka sapna bahut se logo ko nayi disha dega ....... bahut bahut shubhkamnay