चिट्ठाजगत www.hamarivani.com

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

अधूरे सपनों की कसक (7)

                जिन्दगी में सपनों का रूप तो एक जैसा ही होता है , दिवा स्वप्न सिर्फ कल्पना की ही बात नहीं होती बल्कि उस व्यक्ति के जीवनके लक्ष्य से भी जुड़े होते हैं . इनके टूटने पर 
कोई आवाज नहीं होती लेकिन शेष लोग सोचते हैं की समय के साथ इन्सान उन सपनों के दंश से मुक्त हो जायेगा . पर ऐसा होता कहाँ है? जिसके सपने टूटते हैं या अधूरे रह जाते हैं उनकी कसक समय समय पर उठती है और फिर से वाही उसी मुकाम पर लाकर खड़ा कर सोचने को मजबूर कर देती है।  आज अपने सपनों की कसक लेकर आई हैं -- वंदना गुप्ता जी।



सपनों का संसार सुनहरी आभा लिए एक दिवास्वप्न सा ही तो होता है जिसमे हम जान नहीं पाते कि भविष्य के गर्त में क्या छुपा है बस अपने सपने को पोषित करने का हर संभव प्रयत्न करते हैं और शायद यही हर इन्सान की चाहत होती है अपने  सपनों को पूरे होते देखना ...........मगर जरूरी नहीं हर स्वप्न को वटवृक्ष की छाँव मिले , हर कदम  पर सितारों जड़ी राह मिले ...........कुछ स्वप्न सिर्फ स्वप्न ही रह जाते हैं आँखों की ओट में छुपे ही और ना चाहते हुए भी हमें उनकी राह तकनी छोडनी पड़ती है .

बचपन से पढाई लिखी में अव्वल रही तो एक सपना मन में पलने लगा वो  मेरे पिता का भी स्वप्न था ,वो भी चाहते थे कि बड़े होकर आत्म निर्भर बनूँ और नौकरी करूँ या आई ए एस अफसर बनूँ मगर वक्त ने ऐसे हालात पैदा किये कि चाहकर भी वो इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकी . जब इन्सान की ज़िन्दगी में परीक्षा का वो समय आता है जब आपके भविष्य की  नींव रखी जाती है उसी साल से मेरी मम्मी ज्यादा बीमार रहने लगीं और रात दिन हॉस्पिटल के चक्कर लगने लगे और कई कई महीनों तक उन्हें वहाँ रहना पड़ता था ऐसे में घर का सारा कम खुद करना और हॉस्पिटल भी जाना और फिर पढना सब जारी रहा और अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि  जो चाहती हूँ पा सकूँ मगर मेन सब्जेक्ट  में ही नंबर दगा दे गए जबकि उस पर आज भी विश्वास नहीं होता ऐसा मेरे साथ हुआ क्योंकि उस सब्जेक्ट  पर अच्छी पकड़ थी और दोबारा जांच करवाई मगर बोर्ड में कोई सुनवाई कहाँ होती है वहाँ से मेरे जन्मदिन पर तोहफे के रूप में ये खबर आई कि  जो हमने रिजल्ट दिया है वो सही है और चाहकर भी वो ना मिला जो चाहिए था मगर फिर भी हार नहीं मानी ना मैंने ना मेरे बाऊजी  ने और उसके बाद ग्रैजुएशन की . उसके बाद उस वक्त नयी नयी  कंप्यूटर कोर्स  के बारे में जानकारी मिली और पता चला आने वाला ज़माना कंप्यूटर कोर्स  का ही है तो बाऊजी ने उसमे दाखिला  दिलवा दिया मगर पिछले ३ साल ग्रैजुएशन के ऐसे गुजरे थे कि  मम्मी का यूँ लगता कि  ना जाने कितनी ज़िन्दगी बची है और बाऊजी  को भी दिल की बीमारी  हो गयी थी और अन्य बीमारियाँ तो साथ थीं ही ऐसे में  जब कोई रिश्ता आता तो वो सोचने को मजबूर हो जाते  कि हमारे बाद इसका क्या होगा इसलिए चाहने लगे कि हमारे जीते जी हमारी बेटी की शादी हो जाये और उसका घर बस जाये और हम उसे सुखी जीवन जीते हुए देख लें फिर चाहे जो कुछ हो जाये  और अभी मुश्किल से २-३ महीने ही गुजरे थे कोर्स करते कि शादी फिक्स हो गयी मगर कोर्स पूरी करने की अनुमति मिल गयी थी शादी के बाद भी इसलिए एक उम्मीद बनी हुई थी कि चलो कोई बात नहीं बाद में कर लेंगे नौकरी मगर हर उम्मीद परवान नहीं चढ़ा करती . कोर्स तो पूरा कर लिया मगर शादी के बाद राहें इतनी सहज किसी की कहाँ होती हैं जो मेरी होतीं और मैं समझ पाती कि ज़िन्दगी क्या चाहती है मुझसे . थोड़े वक्त एक नौकरी की भी तो हालात के चलते उसे छोड़ना पड़ा और वक्त काटे नहीं कटा करता था क्योंकि सारा दिन तो खाली ही होता था ऐसे में एक साल बाद फिर बैंक ऑफ़ राजस्थान में एक टेम्परेरी जॉब निकली तो वो करने लगी दो महीने के लिए सोचा चलो आगे जॉब की कोशिश करुँगी तो एक्सपेरिएंस के रूप में काम आएगा मगर किस्मत ना जाने क्या चाहती थी इसी बीच जब दूसरा महिना पूरा होने वाला था उससे कुछ ही दिन पहले मेरे घर में चोरी हो गयी जिसके बाद तो मन इस तरफ से हट सा गया बेशक बाद में भी कोशिश करती रही मगर कोई ढंग की अपने मतलब को जॉब जँची ही नहीं तो की ही नहीं ..........बस उस चोरी वाले हादसे ने मन इतना आहत सा कर दिया कि उसके बाद ज़िन्दगी जिस दिशा में लेकर चलती गयी , मैं बस उसके साथ चलती रही और अपनी गृहस्थी में खुश रहने की कोशिश करती रही क्योंकि हमें आदत हो जाती है सब भूलने की, हर हाल में खुश रहने की ........यही तो हमारी ज़िन्दगी की खासियत होती है क्योंकि हम इंसान हैं .
शायद तभी हमारे चाहने से सब कुछ नहीं होता , कभी कभी ज़िन्दगी एक इशारा देती है मगर हम समझ नहीं पाते और उस राह पर चल देते हैं जो हमारे लिए बनी ही नहीं .........बेशक अब ज़िन्दगी से कोई गिला शिकवा नहीं है मगर ये दर्द कभी बहुत सालों तक सालता रहा क्योंकि चाहत थी कुछ कर गुजरने की ............मगर वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा कुछ नहीं मिलता बस इसी मंत्र को गांठ मार ली और ज़िन्दगी जी ली .
मिले ना फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली
इसी तरह से बसर हमने ज़िन्दगी कर ली

चलिए इसी पर मेरे ख्याल कुछ इस तरह पढ़िए क्योंकि वक्त के साथ इन्सान की सोच और उसका नजरिया दोनों ही बदल जाते हैं और देखिये आज आप सबके सामने एक दूसरी ही वन्दना खडी है जिस राह के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था आज उस राह पर ईश्वर ने लाकर खड़ा कर दिया और आप सबसे परिचित करवा दिया .........तो ज़िन्दगी जो लेती है उससे कहीं ज्यादा देती भी है बस हम उसके लेने को याद रखते हैं और जो देती है उसे भूल जाते हैं ..........तो अब देखिये मेरे सपनों की ताबीर को जो वक्त के साथ करवट ले चुकी है..........कविताओं के रूप में :))))

मेरे सपनों का ताजमहल

देखना चाहती हूँ
अपने सपनों के ताजमहल को
हकीकत में बदलते हुए
मगर
अब सपने ही नहीं आते
ना दिवास्वप्न
ना रात्रिस्वप्न
फिर कौन सा ताज बनवाऊँ
जो मुझे मुमताज बना दे
जिसकी याद में कोई शाहजहाँ
मेरे सपनों की दुनिया आबाद कर दे
जो मुझे जानता हो
मेरे सपनो को जीता हो
घूँट घूँट कर पीता हो
हाँ उन्ही सपनों को
जो कभी मैंने देखे हों
किसी नीम बेहोशी में
या उसने पढ़े हों मेरी आँख में
मगर मैंने ना जिनका जिक्र किया हो........कभी खुद से भी
चाहती हूँ .........हो कोई मेरा ऐसा शाहजहाँ
जो शिलालेख पर अंकित
गूढ़ भाषा के अर्थ खोज डाले
और मेरे सपनों के ताजमहल को
हकीकत की दुल्हन बना दे
हाँ ...........ये भी तो एक सपना ही है ना
खुली आँखों से देखा दिवास्वप्न
एक बच्चे की ऊंगली में लिपटी चाशनी सा ...........

10 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…

रेखा जी, तकदीर बनाने वाले तुने कमी न की... किस को क्या मिला ये तो मुकदर की बात है... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

सबसे बड़ी बात तो यह है वंदना जी ,कि हम वहाँ तक पहुँचे और सपने देख सके.वह न पूरा सका तो क्या, जो उचित था वही किया-सबसे बड़ा संतोष ! परिणाम अपने हाथ में कब रहा है

Sadhana Vaid ने कहा…

आपका संस्मरण पढ़ कर अपने मन के ज़ख्म फिर से हरे हो गये ! दर्द की तस्वीरें कितनी मिलती जुलती होती हैं यह आज सिद्ध होता दिखाई दे रहा है ! वन्दना जी मेरी सारी शुभकामनायें आपके साथ हैं !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

जो पाया वो प्यारा है...:)

shikha varshney ने कहा…

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता:).कसक रह जाती है पर जो मिला उसमें खुश रह लें इससे अच्छा क्या हो सकता है.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

कुछ सपने अधूरे रह गए और कुछ पूरे हो गए ...ये ही तो जीवन है

vandana gupta ने कहा…

सही कह रहे हैं आप सब दोस्तों ……… अब नज़रिया बदल चुका है तो जीना बेहद आसान हो गया है ………रेखा जी हार्दिक आभारी हूँ जो आप हमारी ज़िन्दगी मे से कुछ ना कुछ निकलवा ही लेती हैं जिन्हे हम भूल चुके हैं एक तरह से ……… और याद आने पर सारी यादें दोबारा जी लेते हैं । हार्दिक आभार आपका और सभी दोस्तों का:)

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

जो पाया उसकी खुशी है...मगर न पाने के अफ़सोस का क्या करें....
शुभकामनाएं वंदना जी आने वाली जीवन के लिए...
कोई कसक/कसर न रहे ....

सस्नेह
अनु

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आपके शब्द ,आपके भाव, आपकी झरने सी हंसी- हकीकत की खूबसूरत धरती है

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

वक्त के साथ इन्सान की सोच और उसका नजरिया दोनों ही बदल जाते हैं सच कहा आपने ............ सपने भी रंग बदल लेते हैं वक़्त के साथ ...आपके नए सपनो के लिए शुभकामनाये ......